पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वाजत बीन तीन सुर ग्राम । 'हरीचंद' यह छवि लखि प्रमुदित तृन तोरत ब्रज-वाम ।२४ राग देस बेगा आवो प्यारा बनवारी म्हारी ओर। दीन बचन सुनताँ उठि धावौ नेकु न करहु अबारी ।१ कृपासिंधु छाँडो निठुराई अपनो बिरद सँभारी । थानै जग दीनदयाल कहै छै क्यौं म्हारी सुरत बिसारी । प्राण दान दीजै मोहि प्यारा हौछं दासी थारी । क्यौं नहिं दीन बैण सुनो लालन कौन चूक छे म्हारी । तलफै प्रान रहैं नहिं तन मैं बिरह-विथा बढ़ी भारी । 'हरीचंद' गहि बाँह उबारौ तुम तौ चतुर बिहारी ।२५ राग सारंग जयति वेणुधर चक्रधर शंखधर, पदाधर गदाधर शृंगधर वेत्रधारी । मुकुटधर क्रीटधर पीतपट-कटिनधर, कंठ-कौस्तुभ-धरन दु:खहारी । मत्स को रूप धरि बेद प्रगटित करन, कच्छ को रूप जल मचनकारी । दलन हिरनाच्छ बाराह को रूप धरि, दन्त के अग्र धर पृथ्वि भारी । रूप नरसिंह धर भक्त रच्छा-करन, हिरनकश्यप-उदर नख बिदारी ! रूप बावन धरन छलन बलिराज को, परसुधर रूप छत्री संहारी । राम को रूप धर नास रावन करन, धनुषधर तीरधर जित सुरारी । मुशलधर हलधरन नीलपट सुभगधर, उलटि करषन करन जमुन-वारी । बुद्ध को रूप धर बेद निंदा करन, रूप धर कल्कि कलजुग-संघारी । जयति दश रूपधर कृष्ण कमलानाथ, अतिहि अज्ञात लीला बिहारी । | गोपधर गोपिधर जयति गिरराजधर, राधिका का बाहु पर बाहु धारी । भक्तधर संतधर सोइ 'हरिचंद' धर. बल्लभाधीष द्विज वेषकारी ।२६ ये बहु-नायक मिलत भाग्य सों यह लै चिन बिचारी । 'हरीचंद ब्रजचंद पिया वे तू चन्द्रावलि नारी ।२ राग बिहाग आजु नव कुंज बिहरत दो रस भरे प्रिया ब्रजचद सँग चतुर चन्द्रावली । सुरति श्रम स्वेद मुख परस्पर बढ्यो सुख टि रही उरसि मुकुतानि हारावली । गिरत तन बसन नहिं थिरत बेसरि तनिक खसित सुभ सीस ते कलित कुसुमावली । सखी 'हरिचंद' लखि मूदि दृग दोउ रही पाइ आनंद परम बुद्धि भई बावली ।२८ जयति राधिकानाथ चंद्रावली-प्रानपति घोष-कुल-सकल-संताप-हारी । गोपिका-कुमुद-बन-चंद्र सांवर बरन हरन बाहु बिरह आनंदकारी । त्रिखित लोचन जुगल पान हित अमृतवपु विमल-वृन्दाविपिन-भूमिचारी । गाय गिरिराज के हृदय आनंद करन नित्य बिहवल-करन जमुन-बारी । नंद के हृदय आनंद वर्धित-करन भरनि जसुदा-मनसि मोद भारी । बाल क्रीड़ा-करन नंद-मन्दिर सदा कुंज मैं प्रौढ़ लीला बिहारी ।। गोप-सागर-रतन सकल गुन-गन भरे क्वनित स्वर सप्त मुख मुरलिधारी । मंजु मंजीर पद कलित कटि किकिनी उरसि बनमाल सुन्दर सँवारी । सदा निज भक्त संताप आरति-हरन करन रस-दान अपनो बिचारी । दास 'हरिचंद' कलि बल्लभाधीश हवे प्रगट अज्ञात लीला बिहारी ।२१ कछु गातो राग देव स्थामा जी देखो आवे छे थारो रसियो। सैन बतातो कछु लखिकै हँसियो । मोर मुकुट वाके सीस सोहणों पीतांबर कटि कसियो । 'हरीचंद' पिय प्रेम रंगीलो थाके मन बसियो ।३० म्हारी सेजाँ आवो जू लाल बिहारी । रंग रंगीली सेज संवारी लागी छे आशा धारी । बिरह-बिथा बाढ़ी घणी हो मैंसों नहिं जात संभारी । 'हरीचंद' सो जाय कहो कोउ तलफै छे धारे बिन प्यारी । राग कान्हरा दोउ कर जोरे ठाहो बिहारी । मान कयौ तजि मान मया करि सुनि चन्द्रावलि प्यारी। प्रम मालिका १५