पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

W*ABY ही रहे थे। हम लोगों के रुधिर नहीं निकलता ? क्या यदि तुम | सन्ती मिलने की आशा और न बदला निकलने की गुदगुदाओ तो हम लोगों को हँसी नहीं आती ? क्या किसी और के घर दु:ख भी दृष्टि पड़ता जिसे देख कर यदि तुम विष दो तो हम लोग मर नहीं जाते ? तो फिर धीरज हो । हाँ यदि है तो मेरी गर्दन पर सवार, कहीं से जो तुम हम पर अत्याचार करोगे तो क्या हम बदला न आह भी नहीं सुनाई देती सिवाय उसके जो मेरे हृदय से लेंगे ? यदि हम लोग और बातों में तुम्हारे सदृस है तो निकलती है, और न सिवाय मेरे किसी के आँसू गिरते इस बात में भी तुम्हारे तुल्य होंगे । यदि कोई जैनी | है ? किसी आर्य को दु:ख दे तो वह किस भाँति अपनी दुर्घल- ऐसा तो नहीं और लोग भी अपने अपने नम्रता प्रकट कर सकता है ? बदला लेकर । तो यदि | दु:ख से खाली नहीं है । अभी मैंने जयपुर में समाचार कोई आर्य किसी जैन को क्लेश पहुंचावे तो इसे उसके पाया कि अनंत का - उदाहारण के अनुसार किस प्रकार से सहन करना शैलाक्ष-क्या, क्या, क्या ? दुःख दु:ख ? चाहिए ? अवश्य बदला लेकर । जो पाजीपन तुम लोग दुर्बल-- उसके जहाजों का एक बेड़ा त्रिपुल से मुझे अपने उदाहरण से सिखलाते हो उसे मैं कर आते समय राह में नष्ट हो गया । दिखलाऊंगा और कितनी ही कठिनता क्यों न पड़े मैं शैलाक्ष- धन्य है ईश्वर को, धन्य है ईश्वर बदला लेने में अवश्य तुमसे बढ़कर रहूँगा । को, क्या यह समाचार सच्चा है ? क्या यह समाचार (एक मृत्य आता है) सच्चा है? भृत्य-महाशयो मेरे स्वामी अनंत अपने घर दुर्बल - मैं आप उन खलासियों के मुंह से सुन पर हैं और आप दोनों से कुछ बातचीत किया चाहते आया हूँ जो जहाज के नष्ट होने से बच कर आए हैं? शैलाक्ष- मैं तुम्हारा धन्यवाद करता हूँ अच्छे सलारन- हम लोग तो उनको चारों ओर खोज | दुर्बल, बड़ा अच्छा समाचार लाए, बड़ा अच्छा समाचार ला, अहाहा - कहाँ ? जयपुर में ? (दुर्बल, आता है) दुर्बल- मैंने जयपुर में सुना कि तुम्हारी बेटी ने सलारन-यह देखो एक दूसरा जैनी आया ; एक रात में अस्सी अशरफियाँ व्यय की । अब तीसरा इनकी बराबरी का नहीं निकल सकता पर शैलाक्ष -तू मेरे कलेजे में छुरी मारता है । अब मैं फिर अपनी अशरफियों को इन आँखों से न देखूगा; हाँ उस दशा में कि भूत आप ही एक जैन बन जाय । हाय ! अस्सी अशरफियाँ ! एक बार में अस्सी (सलोने, सलारन और भृत्य जाते हैं) अशरफियाँ! शैलाक्ष 1- कहो जी दुर्बल जयपुर से क्या दुर्बल- -अनत के कई ऋणदाता मेरे साथ समाचार लाए ? मेरी बेटी का पता लगाया ? वशनगर को आए जो शपथ खा कर कहते थे कि अब दुर्बल-मैंने जहाँ जहाँ उसका समाचार सुना, उसके काम का बिगड़ना किसी भांति नहीं रुक वहाँ वहाँ पहुंचा परंतु कहीं पता न लगा ? सकता। शैलाक्ष-वही, वही, वही वह हीरा ले गई जो शैलाक्ष-बड़े हर्ष की बात है ; मैं उसे बहुत मैनो दो सहन अशरफी को फरीदकोट में लिया था ! रुलाऊँगा, मैं उसे कोच कोच कर मारूंगा ; बड़े हर्ष ऐसा बड़ा ईश्वर का कोप हमारी जाति पर आज तक न गिरा या । मुझे तो आज तक उसका अनुभव न हुआ | का विषय है। दुर्बल-उनमें से एक ने मुझे एक अंगूठी था -दो सहन अशरफी का एक हीरा और दूसरे अमूल्य रत्न अलग । अच्छा होता कि मेरी लड़की मेरी | दिखलाई जो तुम्हारी बेटी ने उसे एक बंदर के मोल आंखों के सामने मर गई होती और वह रत्न उसके शरीर दी है। पर होते । अच्छा होता कि उसका शव मेरे पावों के शैलाक्ष- - उसका नाम मत लो दुर्बल ! तुम मेरे नीचे गड़ता और अशरफियाँ उसके कफन में होती । हृदय में रह रह के घात करते हो ! वह मेरी नीलम की उनका कुछ पता नहीं लगा ? यही परिणाम हमारे | अंगूटी थी ; मैंने उसे कमलाक्षी से पाया था, जबकि प्रयत्नों का है और विदित नहीं कि खोज में कितना | मेरा ब्याह नहीं हुआ था ; यदि मुझे कोई बंदरों का व्यय पड़ा – हाय यह हानि पर हानि ! "मुफलिसी | जंगल देता तो भी मैं इस अंगूटी को अपने से पृथक न में आटा गीला!" इतना तो चोर ले गया और इतना करता। चोर की खोज में नष्ट हुआ । तिस पर न कुछ उसके दुर्बल- लेकिन अनंत तो निस्संदेह नष्ट हो भारतेन्दु समग्र ५००