पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५५७

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सलोने-महाराज एक भी नहीं । तिस पर यह | धिक्कार है । उस छोटे ऋण को चुका देने के लिये और आपत्ति है कि यदि वह जैन को नकद रुपया देने उनका बीस गुना रुपया लेते जाइए और उसे देकर का कहीं से प्रबन्ध भी करें तो वह न लेगा । मेरी दृष्टि अपने मित्र को यहाँ साथ लेते आइए । इस बीच में मैं में तो ऐसा व्यक्ति मनुष्य की उन्नति तथा उसकी और मेरी सहेली नरश्री कुमारी और विधवा स्त्रियों की अवनति का साथ अब तक नहीं आया ! इसी सोच में भाँति अपना समय काटेंगी । आइए चलिए क्योंकि वह प्रति दिन सायं प्रात: मण्डलेश्वर को जाकर घेरता आपको आज ही अपने व्याह के दिन यहाँ से जाना है 1 है और कहता है कि यदि मेरे साथ न्याय न बरता अपने मित्रों से प्रसन्नतापूर्वक मिलिए और अपना मन जायगा तो इस राज्य के इस सिद्धांत पर कि वह विकसित रखिए । आप से मिलने में जितनी कठिनता प्रतिवर्ण के लोगों को एक दृष्टि से देखता है बट्टा लग होवेगी उतने ही अधिक आप मुझे प्यारे प्रतीत होंगे । जायगा । बीस सौदागरों और कितने और बड़े बड़े नामी | परंतु तनिक अपने दोस्त का पत्र तो सुनाइए । लोगों ने और मंडलेश्वर ने आप भी उसे समझाया पर बसंत- (पढ़ता है) उसने एक की मी न सुनी । अब बतलाइए क्या किया मेरे प्यारे बसंत, सब जहाज नष्ट हो गए मेरे जाय । उस पर तो ईर्षा के मारे यही धुन सवार है कि ऋणदाता निर्दयता से वर्तते हैं, मेरे अवस्था अत्यंत ही बस जो कुछ होना था सो हो चुका अब तमस्सुक के प्रण नष्ट है और मेरी प्रतिज्ञा जैन के साथ टल गई और जो के अनुसार मेरा विचार हो । ऋण चुका | देने में संभव नहीं कि मैं जीता बचूँ, जसोदा-जब कि मैं उनके साथ थी मैंने उन्हें इसलिये मैं सब हिसाब अपने और तुम्हारे बीच साफ प्राय : दुर्बल और अक्रर अपने स्वदेशियों से इस बात समझूगा कि मैं अपने मरने के समय तुम्हें एक आँख की सौगद खाते हुए सुना था कि यदि मुझे कोई ऋण के देख लूँ । परन्तु हर हालत से यह तुम्हारी इच्छा पर बीस गुने रुपये भी दे तो अनंत के मांस के अतिरिक्त निर्भर है । यदि मेरा प्रम तुम्हें यहाँ तक न खींच ला उसकी ओर आँख उठा कर न देखूगा और महाराज मुझे सके तो मेरे पत्र का कुछ ध्यान न करना । निश्चय है कि यदि वहाँ के विचाराधीन कानून के पुरश्री- मेरे प्यारे सब काम को झटपट पूरा अनुकूल उसे हठपूर्वक रोक न रक्खेंगे तो विचारे अनत | करके एकबारगी चले ही जाओ । के सिर पर बुरी बीतेगी। बसंत -जब तुमने प्रसन्नता से जाने की आज्ञा पुरश्री क्या वह आपके कोई प्यारे मित्र हैं | दी तो अब मुझे क्या विलंब है । परंतु जब तक कि मैं जिन पर यह आपत्ति आई है 1 लौट न आँज मेरे लिये नींद हराम और सुख दु:ख से बसंत-(आह भरकर) यह वही मेरा सबसे अधम है। प्यारा मित्र है जो उपकार करने में अपना जोड़ी नहीं रखता, उपकार करने में कभी नहीं थकता और शील का राजा है । इस समय मारवाड़ में वही अकेला एक मनुष्य है जिसमें मारवाड़ के प्राचीन समय के लोगों की उत्तम बातें और उच्च विचार पूरे पूरे पाए जाते हैं । पुरश्री उन्हें उस जैन का कितना देना है? स्थान-वंशनगर की एक सड़क बसंत- मेरे ही कारण छ हजार रुपये के ऋणी | शैलाक्ष, सलारन, अनंत और कारागार के प्रधान आते हो गए हैं। है) पुरश्री- बस इतना ही ? आप बारह सहस्र शैलाक्ष - प्रधान इससे सचेत रहो ; मुझसे देकर तमस्सुक फेर लीजिए । यदि आवश्यकता हो तो दया का नाम न लो । यही वह मूर्ख है जो लोगों को बारह सहल के भी दूने कर डालिए और इस दूने के बिना ब्याज रुपये ऋण दिया करता था । प्रधान इससे तिगुने, पर ऐसा कदापि न होने पावे कि बसंत के सावधान रहो । कारण उनके ऐसे अनुपम मित्र का एक रोम भी टेढ़ा हो। अनंत- मेरे सुहृद् शैलाक्ष कुछ तो मेरी सुन चलिए अभी मंदिर में चल कर व्याह की रीति कर लो। लीजिए और इसके उपरांत सीधे अपने मित्र के शैलाक्ष- मैं तमस्सुक के प्रणों को नहीं तोड़ने पास वंशनगर को चले जाइए ; क्योंकि जब तक | का, उसके विरुद्ध कुछ मत कहो । मैं इस बात की आपका शोच दूर न हो लेगा, मुझे आप के साथ सोना | शपथ खा चुका हूँ कि अपने तमस्सुक की शर्तों पर दृढ $ He दुर्लभ बन्धु ५१३ तीसरा दुश्य