पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५५८

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चौथा दृश्य पुरश्री- रहूंगा । तुम ही न इस मुकद्दमे के होने के पहिले मुझे कुत्ता कहा करते थे। अच्छा मैं तो तुम्हारे कहने स्थान – बिल्वमठ पुरधी के घर का एक कमरा अनुसार कुत्ता हो ही चुका पर नेक मेरे पंजों से डरते रहना ; मंडलेश्वर साहिब मेरा विचार करेंगे ! मुझे तो (पुरधी, लवंग, जसोदा और बालेसर आते हैं) ऐ दुष्ट प्रधान तुझ पर आश्चर्य होता है कि तुझे क्या लवंग-प्यारी यद्यपि आप के मुंह पर कहना मूर्खता सूझी है जो इसकी बातों में आकर इसे बेखटके सुश्रूषा है पर आप में ठीक देवताओं का सा सच्चा और इधर उधर लिए फिरता है। पवित्र प्रेम पाया जाता है और इसका बड़ा प्रमाण यह है अनंत- भगवान के वास्ते एक बात तो मेरी सुन कि आपने इस भांति अपने स्वामी का विरह सहन लो। किया किंतु यदि आपको विदित हो कि आपने किस पर शैलाक्ष- मुझे अपने तमस्सुक से काम है. मैं इतनी कृपा की है और वास्तव में कैसे सच्चे सभ्य को | कदापि तुम्हारी बात न सुनूंगा, मुझे केवल अपने सहायता भेजी है और उसको मेरे स्वामी अर्थात आपके | तमस्सुक से काम है; बस अब अधिक गिड़गिड़ाने से स्वामी से कैसी प्रीति है तो आपको अपने इस कृत्य पर क्या लाभ । मैं कुछ ऐसा चित्त का दुर्बल अथवा आँखों और साधारण कर्तव्यों की अपेक्षा कहीं बढ़कर का अंधा थोड़े ही है जो सिर हिला कर खेद करूं. आहे प्रसन्नता हो। भरूँ और आर्यों के समझाने बुझाने में आकर पिघल - मैं अच्छे काम करके न आज तक जाऊँ । मेरे पीछे न आओ, मैं कदापि सुनने का नहीं. पछताई हूँ और न अब पछताऊँगी क्योंकि ऐसे मित्र जो मुझे अपने तमस्सुक से काम है। हर क्षण मिले जुले रहते हैं और जिनके चित्त में एक (शैलाक्ष जाता है) दूसरे का समान प्रेम है मानो एक प्राण दो देह हैं उनकी सलारन-- -मनुष्य की आकृति में ऐसा पाषाण चाल हाल रहन सहन और चित्त भी अवश्य ही एक सा हृदय कुत्ता काहे को निकलेगा । होगा तो मैं समझती हूँ कि यह अनंत जो मेरे स्वामी के अनंत जाने दो. अब मैं उसके पीछे व्यर्थ अंतरंग मित्र हैं उन्हीं के सदृश्य होंगे । यदि ऐसा है तो गिड़गिड़ाता न फिरूँगा । वह मेरे प्राण लेने की चिता में मैंने अपने स्वामी के चित्त को महा आपत्ति के पंजे से है और इसका कारण भी मैं भली भाँति जानता हूँ। कैसे थोड़े व्यय में छुड़ा पाया । पर इससे तो मेरी ही प्राय : मैने बहुतेरे लोगों को जो मेरे पास आकर रोए हैं प्रशंसा निकलती है इसलिये अब इस प्रकरण को उसके पंजे से छुड़ाया है और इसी कारण से वह मेरा छोड़कर दूसरी बातें सुनो । लवंग मैं अपने घर और प्राणघातक शत्रु हो रहा है। गृहस्थी का सारा प्रबंध अपने स्वामी के लौट आने तक सलारन मुझे निश्चय है कि मंडलेश्वर तुम्हारे आधीन करती हूँ । रही मैं सो मैंने अपने मन में उसकी शर्त को कदापि स्थिर न रहने देंगे। ईश्वर के सामने एक मन्नत मानी है कि नरश्री को साथ अनंत-क्यों नहीं मंडलेश्वर कानून के उद्देश्य लेकर उसके स्वामी और अपने स्वामी के आने तक को जिससे विदेशी वशनगर में आकर बेखटके लेन देन प्रार्थना करती और उसकी ओर लौ लगाए रहूँ । यहाँ से करते हैं क्योंकर बदल सकते हैं। यदि अस्वीकार किया दो मील पर एक मठ है, उसी में जाकर हम लोग जाय तो यहाँ के राज्य का अपवाद है क्योंकि इस नगर रहेंगी । मैं आशा करती हूँ कि तुम मेरी इस प्रार्थना से का वाणिज्य और लाभ सब जाति वालों के मिलाप होने जिसे अपनी प्रीति और कुछ अधिक आवश्यकता होने के कारण है । अच्छा तो अब तुम जाओ । जो दु:ख के कारण करती हूँ अनंगीकार न करोगे। और क्षतियाँ मैंने इधर उठाई हैं उनके कारण मेरी लवग- प्यारी मैं तन मन से आप की आज्ञा का अवस्था ऐसी नष्ट हो गई है कि कदाचित कल तक मेरे अनुगामी हूँ। रक्त के प्यासे ऋणदाताओं के लिये मेरे शरीर में आध पुरश्री- मेरे नौकर चाकर इस इच्छा को जान सेर मांस भी शेष न रहे । आओ प्रधान चलो। ईश्वर करे चुके हैं और वह तुम्हें और जसोदा को महाराज बसंत कहीं बसंत आ जाय और मुझे अपना ऋण चुकाते हुए और मेरे स्थानापन्न समझेगे । अच्छा अब मैं तुम लोगों देख ले, फिर मेरे जी में कोई लालसा शेष न रहेगी। से विदा होती हूँ. जब तक कि भगवान तुमसे फिर न (सब जाते हैं। लवंग- भगवान आपको उच्च मनोरथ और उत्तम साहस दें। भारतेन्दु समग्र ५१४ मिलाए ।