पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६०

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जायगे तो थोड़े दिनों में बहुत दाम देने से भी उस जसोदा- उनकी प्रशंसा अनिर्वचनीय है । मेरी स्वादिष्ट मांस का एक टुकड़ा भी हाथ न आवेगा । जान में तो उचित होगा कि राजकुमार बसंत को अब (लवंग आता है) अपना जीवन निरी पवित्रता के साथ बिताना चाहिए जसोदा-गोप, मैं तुम्हारी सब बातें अपने क्योंकि जो पदार्थ कि उन्हें अपनी स्त्री में मिला है वह स्वामी से कहूँगी ; देखो वह आते हैं। ऐसा है कि मानों उन्हें पृथ्वी पर स्वर्ग का सुख जीते जी लवंग-गोप, यदि, तुम इस भाँति मेरी स्त्री हाथ लगा और यदि वह इसका आदर न करें तो स्पष्ट से परोक्ष में बात किया करोगे तो मुझ से कैसे देखा है कि उन्हें स्वर्ग का सुख भी क्या उठेगा । मेरी समझ जायगा। में तो यदि दो देवता आपस में कोई स्वर्गीय कौतुक करें जसोदा-नहीं लवंग हम लोगों की ओर से ओर दो सांसारिक स्त्रियों की होड़ बढ़े और इनमें से संदेह मत करो ; मुझ से और गोप से कहासुनी हो रही एक पुरश्री को अपनी ओर से बाजी में लगावें तो दूसरे है क्योंकि वह मुझसे स्पष्ट कहता है कि मुझको को अपनी शर्त में एक स्त्री के साथ और भी बहुत कुछ भगवान न क्षमा करेगा क्योंकि मैं जैन की पुत्री हूँ और बदना होगा । क्योंकि इस उजाड़ संसार में पुरश्री का तुम्हारे विषय में कहता है कि तुम अपनी जाति के सा दूसरा तो मिलना नहीं । शुभचिंतक नहीं हो क्योंकि जैनियों को आर्य बना कर लवंग-जैसा कि राजकुमार बसंत को स्त्री सूअर के मांस का भाव बिगाड़ते हो । लब्ध हुई है वैसा ही मैं भी तुम्हें स्वामी मिला हूँ। लवग-अबे जा उन लोगों से भोजन की तैयारी जसोदा- -- सत्य बचन । परंतु इसके विषय में के लिये कह दे। भी तनिक मेरी सम्मति पूछ देखो 1? गोप- साहिब वह सब प्रस्तुत है क्योंकि लवंग- हाँ अभी पूछता हूँ । पहिले चलो खाना उनको भी तो पेट है। खा लें। लवंग- ईश्वर का कोप हो तुझ पर, तू क्या ही जसोदा-नहीं, अभी मुझे पेट भर तुम अपनी हँसोड़ है । अच्छा उन्हें थाली परोसने के लिये कह दे । प्रशंसा कर लेने दो भोजन के उपरात समाई न रहेगी। लवंग -भगवान के वास्ते यह कथा खाने के गोप- यह भी हो चुका है केवल आच्छादन करना शेष है। समय के लिये रहने दो । उस समय तुम मुझे कैसा ही लवंग-तो शीघ्र आच्छादित करो । कुछ कहोगी मैं उसे और पदार्थों के साथ पचा जाऊँगा । गोप - यह मेरा सामर्थ्य नहीं कि स्वामी के जसोदा- बहुत अच्छा मैं आपकी प्रशंसा की सामने आच्छादन करूं। पोथी वहीं खोलूंगी। लवंग-फिर भी अपना ही राग गाए जाता है । (दोनों जाते हैं) क्या तू एक ही क्षण में अपना कुल हँसोड़पन खर्च कर डालेगा मैं तुझसे विनय करता हूँ कि मेरी सरल बातचीत के सीधे अर्थ समझ । जा अपने साथियों से चौथा अंक कह दे कि थाली में मांस चुन कर ढंपना, छुरी काँटा इत्यादि रख दे । हमलोग भोजन आते हैं। गोप-महाराज थाली तो परस दी जायगी और (स्थान - वंशनगर राजद्वार) मांस भी लगा दिया जायगा पर बिना चुहल के खाना अलोना प्रतीत होगा इससे इसका तार न तोड़िये । (मंडलेश्वर वंशनगर, प्रधान लोग अनंत, बंसत, लवंग- ईश्वर की शरण, इस दुष्ट में तो | गिरीश, सलारन. सलोने और दूसरे लोग आते हैं। हँसोड़पन कूट कूट कर भरो है मानो इसके सिर में मंडलेश्वर- अनंत आ गए हैं ? श्लेष की सेना पैतरा बाँधे हर समय उपस्थित है । मैं अनंत-धर्मावतार उपस्थित हूँ। बहुतेरे दुष्टों को जानता हूँ जो इससे अधिकार में कहीं मंडलेश्वर-मूझे तुम पर अत्यंत शोच होता बढकर हैं परंतु शब्दों के प्रयोग में अर्थ का सत्यानाश | है क्योंकि तुम ऐसे दुष्ट कठोर वज्रहृदय वादी (मुबई) करते हैं । जसोदा तुम किस विचार में हो । भला प्यारी | के उत्तर देने के लिये बुलाए गए हो, जिसे दया नाम को तुम अपनी सम्मति तो वर्णन करो कि तुम राजकुमार | भी नहीं छू गई है। बसंत की अर्द्रागिनी को कैसा समझती हो ? अनंत-मैं सुन चुका हूँ कि महाराज ने उसके PROctik भारतेन्दु समग्र ५१६ पहला दृश्य