पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६१

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क्रूर बरताव के नम्र करने के प्रयत्न में कितना श्रम मिला ? यदि मेरे घर में किसी घूस ने बहुत सिर उठा किया परंतु उस पर किसी बात की सिद्धि नहीं होती रक्खा हो और मैं उसके नष्ट करने के लिये बीस सहन और न मैं किसी उचित रीति से उसकी शत्रुता की मुद्रा व्यय कर डालूं तो मुझे कौन रोक सकता है । अब परिधि के बाहर जा सकता हूँ । अत : मैं अपना संतोष मी महाराज ने उत्तर पाया या नहीं? कितने लोगों को उसके अनर्थ के प्रति प्रकट करता हूँ और उसका सूअर के मांस से घृणा होती है, कितने ऐसे हैं कि अत्याचार सहने को सब प्रकार से प्रस्तुत हूँ और कदापि बिल्ली को देखकर आपे से बाहर हो जाते हैं, तो अब मुख से आह न निकालूंगा। आप मुझ से उत्तर लीजिए कि जैसे इन बातों का कोई मंडलेश्वर :- कोई जाय और उस जैन को | मूल कारण नहीं कहा जा सकता कि वह सूअर के मांस न्यायालय में उपस्थित करे। से क्यों दूर भागते हैं और यह बिल्ली सदृश दीन और सलोने-महाराज वह पहिले ही से द्वार पर सुखदायक जंतु से क्यों इतना घबराते हैं वैसे ही मैं भी खड़ा है, वह देखिए आ पहुँचा । इसका कोई कारण नहीं कह सकता और न कहूँगा । (शैलाक्ष आता है) सिवाय इसके कि मेरे और उसके बीच एक पुरानी मंडलेश्वर-सब लोग स्थान दो जिसमें वह | शत्रुता चली आती है और मुझे उसके स्वरूप से घृणा है हमारे सम्मुख आकर खड़ा हो । शैलाक्ष, सारा संसार | जिसके कारण से मैं एक ऐसे विषय का जिसमें मेरा सोचता है और मैं भी ऐसा ही समझता हूँ कि यह हठ इतना घाटा है उद्योग करता हूँ। कहिए अब तो उत्तर तुम उसी क्षण तक स्थिर रक्खोगे जब तक कि उसके | मिला ? पूरे होने का समय न आ जायगा और तब लोगों का यह वसंत-ओ निर्दय यह बात जिससे तू अपने विचार है कि तुम जितनी अब प्रकट में कठोरता अत्याचार को उचित सिद्ध करता है कोई उत्तर नहीं दिखला रहे हो उसकी अपेक्षा कहीं अधिक खेद और है। दया प्रकाश करोगे और जहाँ कि अभी तुम उससे शैलाक्ष- मेरा कुछ तेरी प्रसन्नता के लिये प्रतिज्ञा भंग होने का दंड लेने पर प्रस्तुत हो (जो इस उत्तर देना कत्र्तव्य थोड़े ही है । दीन व्यापारी के शरीर का आध सेर मांस है) वहाँ उस बसंत- क्या सब लोग ऐसे पशु को मार डालते समय तुम केवल इस दंड ही के छोड़ने पर अभिमत न | है जिसे वह बुरा समझते हैं । हो जाओगे वरंच मनुष्य धर्म और शील का अनुकरण शैलाल-संसार में कोई भी ऐसा मनुष्य है जो करके मूल ऋण में से आधा छोड़ दोगे । यदि उसकी | किसी जंतु के मारने से जिससे वह घृणा करता हो हाथ हानियों की ओर जो इधर थोड़ी देर में उसके ऊपर फट उठावे । पड़ी हैं ध्यान दिया जाय तो वही इतने बड़े व्यापारी की बसंत-हर एक अपराध से पहिली बार घृणा कमर तोड़ देने के लिये बहुत हैं और कोई मनुष्य कैसा उत्पन्न हो जाती है। ही कठोर चित्त क्यों न हो और पत्थर का हृदय क्यों न शैलाक्ष- क्या तुम चाहते हो कि मैं साँप को रखता हो यहाँ तक कि कोल और भिल्ल भी जिन्होंने | दूसरी बार डसने का अवसर दें। कभी शील का नाम नहीं सुना उसकी दशा को देख कर अनंत-- भगवान के निहोरे नेक विचारों तो कि अत्यंत ही शोक करेंगे, तो ऐ जैन हम लोग आशा करते | तुम किससे विवाह कर रहे हो । इसको मार्ग पर लाना हैं कि तुम इसका उत्तर नम्रता पूर्वक दोगे । तो ठीक वैसी बात ही है जैसा कि समुद्र के किनारे खड़े शैलाल 1- महाराज को अपने उद्देश्य से सूचित होकर तरंगों को आज्ञा देना कि तुम इतनी ऊँची मत कर चुका हूँ और मैंने अपने पवित्र दिन रविवार की | उठो, या भेड़िये से पूछना कि उसने बकरी के बच्चे को शपथ खाई है कि जो कुछ मेरा दस्तावेज के अनुसार खा कर उसकी माँ को दु:ख में क्यों फंसाया, या पहाड़ी चाहिए वह भग्नप्रतिज्ञ होने के दंड के सहित लूंगा । खजूर के वृक्षों को कहना कि वह अपनी ऊँची फुन्गियों यदि महाराज उसको दिलवाना अनंगीकार करें तो | को वायु के झोंके से न हिलने दें और न पत्तों की इसका अपवाद महाराज के न्याय और महाराज के नगर खड़खड़ाहट का शब्द होने दें, ऐसे ही तुम संसार के की स्वतंत्रता के सिर पर । महाराज मुझ से यही न कठिन से कठिन काम कर लो इसके पूर्व कि इस जैन पूछते हैं कि मैं इतना मृतमास छ हजार रुपयों के | के चित्त को (जिस से कठोरतर दूसरा पदार्थ न होगा) बदले लेकर क्या करूँगा । इसका उत्तर मैं यही देता हूँ | द्रव करने का यत्न करो । इसलिये मैं प्रार्थना करता हूँ। कि मेरे मन की प्रसन्नता । बस अब महाराज को उत्तर | कि न तो तुम उससे अब कुछ देने दिलाने की बातचीत दुर्लभ बन्धु ५१७