पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५६२

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करूंगा। (एक पत्र देती है। मांस काटने के लिये। 'करो और न इस विषय में अधिक चिंता करो वरच थोड़े | कैसे मनुष्य हो ! साहस न हारो । पहिले इसके कि में भाग्य पर संतोष करके मुझे दंड भुगतने और इस तुम्हारा एक बाल भी टेढ़ी हो मैं अपना मांस, त्वचा,

  • जैन को अपना मनोरथ पूरा करने दो ।

अस्थि और जान प्राण वो धन उस जैन के अर्पण बंसत-तेरे छ हजार रुपयों के बदले यह ले बारह तयार हैं। अनंत-गल्ले भर में मन्नत की दुर्बल भेड़ मैं शैलाक्ष-यदि इन बारह हजार रुपयों का ही हूँ. मेरा ही मरना श्रेय है । कोमल फल सब के हरएक रूपया बारह भागों में बाँट दिया जाय और हर पहले पृथ्वी पर गिरता है तो मुझी को गिरने दो । एक भाग एक रुपये के बराबर हो तो भी मैं उनकी ओर तुम्हारे लिये इससे बढ़कर कोई बात उचित न होगी आँख उठा कर न देखू, मुझे केवल दस्तावेज के प्रण से कि मेरे पश्चात मेरा जीवनचरित्र लिखो । काम है। (नरश्री वकील के लेखक के भेस में आती है। मंडलेश्वर- मला तू किसी पर दया नहीं मंडलेश्वर- तुम पांडुपुर से बलवंत के पास करता तो तुझे दूसरों से क्या आशा होगी ? से आते हो? शैलाक्ष- जब मैंने कोई अपराध ही नहीं किया नरश्री-जी महाराज वहीं से उन्हीं के पास से है तो फिर किस बात से डरूं? आप लोगों के पास बलवंत ने आपको प्रणाम कहा है। कितने मोल लिए हुए दास और दासियाँ उपस्थित हैं जिन्हें आप गधों, कुत्तों और खच्चरों की भाँति तुच्छ बंसत- क्यो, तू ऐसे उत्साह से छुरी क्यों विस्था में रख कर उनसे सेवा कराते हैं और यह तीक्ष्ण कर रहा है? क्यों ? केवल इस लिये कि आपने उन्हें मोल लिया शैलाक्ष- उस दिवालिये के शरीर से दंड का है । यह मैं आप से यह कहूँ कि आप उन्हें स्वतंत्र करके अपने कुल में व्याह कर दीजिए, या यह कि उन्हें गिरीश- अरे निर्दयी जैनी तू अपनी जूती के बोझ के नीचे दबा हुआ पसीने से घुला घुला कर मारे तल्ले पर छुरी को क्यों तेज करता है, तेरा पाषाण तुल्य क्यों डालते हैं, उन्हें भी अपनी सदृश कोमल शैया पर हृदय तो प्रस्तुत ही है । पर कोई शस्त्र यहाँ तक कि सुलाइए और स्वादिष्ट भोजन खिलाइए तो इसके बधिक की तलवार भी तेरी शत्रुता के वेग को नहीं पहुंच उत्तर में आप यही कहिएगा कि वह दास हमारे हैं हम सकती । क्या तुझ पर किसी की विनती काम नहीं जो चाहेंगे करेंगे, तुम कौन ? इसी भाँति मैं भी आपको | आती ? उत्तर देता हूँ कि इस आध सेर मास का जो मैं इससे शैलाक्ष- नहीं, एक की भी नहीं जो तू अपने माँगता हूँ बहुतमूल्य दिया गया है, वह मेरा माल है और मैं उसे अवश्य लूंगा । यदि आप दिलवाना अस्वीकार गिरीश- हा ! ओ कठोर कुत्ते, ईश्वर तेरा बुरा करें तो आप के न्याय पर थुड़ी है । जाना गया कि वंश करे, यह केवल न्याय का दोष है जिसने अब तक तुझे नगर के कानून में कुछ भी सार नहीं । मै राजद्वार की जीता रख छोड़ा है, तूने तो आज मेरे धर्म में बट्टा लगा आजा सुनने के लिए उपस्थित हूँ, कहिए मुझे मिलेगा दिया क्योंकि तेरे लक्षणों को देखकर मुझे गोरक्ष के इस या नहीं? विचार को कि पशुओं की आत्मा मनुष्य के शरीर में मंडलेश्वर- मुझे निज स्वत्व के अनुसार प्रवेश करती है मानना पड़ा । तेरी हिंसक आत्मा एक अधिकार है कि मुकद्दमे के दिन को टाल दें। यदि | भेड़िये की छाया में थी जो कितने मनुष्यों के जीव बंध बलवंत नामी एक सुयोग्य वकील जिसकी मैंने इस के लिए सूली चढ़ा दिया गया था । इस अवस्था को मुकद्दमें के विचार के लिये बुलाया है आज न आया तो पहुंचने पर भी उस नारकी आत्मा को तोष न हुआ और मैं इस मुकद्दमे को टाल दूंगा । वहां से भाग कर जिस समय तू अपनी माता के अपवित्र सलारन-महाराज बाहर उस वकील का एक | गर्भ में था तुम में पैठ गई क्योंकि तेरा मनोरथ भी मनुष्य खड़ा है, जो उसके पास से पत्र लेकर अभी भेड़ियों की भांति घातक हिंसक है । पांडुपुर से चला आता है। शैलाक्ष- जब तक कि तेरे धिक्कार में इतनी मंडलेश्वर- शीघ्र पत्र लाओ और दूत को | शक्ति न हो कि अनंत की मुहर को मेरी दस्तावेज पर से मिटा दे सके तब तक इस विचार से क्या फल बंसत-अनंत अपने चित्त को स्वस्थ रक्खो. निकल सकता है। व्यर्थ को तू चिल्ला चिल्ला कर

भारतेन्दु समग्र ५१८ बुद्धि से गढ़ सकती हो । भीतर बुलाओ।