पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५७

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अंग अंग काहे को सकुचात । काह की गहि कंचुकि छोरत काहू को घूघट खोले । उनि फूलन माल जा पै भंवर-गन की भीर । 'हरीचंद' सब लाज गवाई बात कहै अनमोले ।४२ हाथ कमल लिए फिरावत राधिका बलबीर । साँझ समय सोहावनो तहँ बहन त्रिविध समीर । राग गौरी ताल चर्चरी आजु नंदलाल पिय कुंज ठाढ़े भए बारने 'हरिचन्द' छबि लखि श्याम गौर मगर ।४५७ श्रवत सुभ सीस पै कलित कुसुमावली । राग केदारा मनहु निज नाथ ससि भूमि-गत देखिकै मेरेई पौरि रहत ठाढ़ो टरत न टार खसित आकास तै तरल तारावली । नन्दराय जू को ढोटा। बहत सौरभ मिलित सुभग बिधि पवन पाग रही भुव ढरकि छबीली गुंजरत महारस मत्त मधुपावली । जामै बाँध्यौ है मंजुल चोटा । दास 'हरीचंद' ब्रजचंद ठाढे मध्य चितवत मो तन फिरि फिरि राधिका बाम दक्षिण सुचन्द्रावली ।४३| हेरत कर ले बेनु बजावत । राग केदारा धरि अधरन वह ललन छबीलो फूलन के सब साज सजि गोरी नाम हमाराइ गावन । कित बदन दुराए जात । सुन्दर कमल फिरावत चहें दिसि फूलन की तन सारी फूलनि की मो तन दष्टि न टारे । छवि भारी फूली न हृदय समात । 'हरीचंद' मन हरत हमारो फूल्यो श्री बूंदाबन फूलै तेदे हँसि हँसि पाग सँवार १४८ मारग रोकि भयो ठाढ़ो जान न देत 'हरीचंद' हम जानि पिय जू सों रति मोहि पूछन है तु को री। मानी प्रीति छिपे न छिपात ।४४। कौन गांव कहा नाव तिहारो राग सारंग चर्चरी ठाढ़ि रहि नेक गोरी। आजु ब्रजचन्द्र तन लेप चन्दन किए. कित चली जात तू बदन दुराए ठाढ़े अति रस-भरे जमुना तीरे । एरी मति की भोग। फूल के आभरन बसन झीने बने, साँझ भई अब कहाँ जायगी खौर चन्दन दिए सीरे सीरे । नीकी है यह साँकरी खोरी । तैसही संग वृषभानु-नृपनदिनी, बहुत जतन करि हारी ग्वालिनी धारि चन्दन के तन चोली चीरे । जान दियो नहि तेहि घर ओरी । दास 'हरीचंद' बलि जात छबि देखि कै. 'हरीचंद' मिलि बिहरत दोऊ रैननि जयति बृजराज-सुत गोप बीरे ।४५ नंदकुँवर बृषभानु किशोरी ।४९ राग सारंग नैना वह छबि नाहिंन भूले । नटवर रूप निहार सखी री नटवर रूप निहार । गोहन लगी फिरत जाके हित कुल की लाज बिसार । दया भरी चहुँ दिसि की चितवनि नैन कमल-दल फूले। ललित त्रिभंग काछनी काछे अमल कमल से नैन । वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुसकनि चित चोरै। कर लै फूल फिरावत गावत मोहत कोटिक मैन । वह बतरानि मुरनि हरि की वह वह देखन चहुँ कोरै । वह धोरी गति कमल फिरावन कर ले गायन पाछे । जग उपहास सहे बहु भाँतिन जा दरसन के हेत । सो हरि नीके नैननि भरि के काहे देखि न लेत । वह बीरी मुख बेनु बजावनि पीत पिछौरी काछे । तुमरी प्रीति अलौकिक सजनी लखि न परै कछु ख्याल । पर-बस भए फिरत हैं नैना एक छन टरत न टारे । 'हरीचन्द' धनि धनि तुम दोऊ राधा अर गोपाल ।४६ 'हरीचंद' ऐसी छबि निरखत तन मन धन सब हारे ।५० बैठे लाल नवल निकुंजन माहीं । राग हमीर अति रस भरे दोऊ अंग जोरि कै हिलि मिलि दैगलबाही ठाढ़े हरि तरनि-तनैया-तीर । तैसे श्री गिरिराज शिला में फूले कुसुम अनेकन भाँती। संग श्री कीरति-कुमारी पहिनि झीने चीर । तैसी वै जमुना अति सोभित राग गौरी 'प्रम मालिका १७