पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५७७

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मन्त्री–– (राजा का हाथ पकड़कर) नहीं नहीं, यह कहता है कि पान खाइए महाराज!

राजा–– दुष्ट लुच्चा पाजी! नाहक हमको डरा दिया। मन्त्री इसको सौ कोड़े लगैं।

मन्त्री–– महाराज! इसका क्या दोष है? न तमोली पान लगाकर देता, न यह पुकारता।

राजा–– अच्छा, तमोली को दो सौ कोड़े लगैं।

मन्त्री–– पर महाराज, आप पान खाइए सुन कर थोड़े ही डरे हैं, आप तो सुपनख के नाम से डरे हैं, सुपनखा को सजा हो।

राजा–– (घबड़ाकर) फिर वही नाम? मन्त्री तुम बड़े खराब आदमी हौ। हम रानी से कह देंगे कि मन्त्री बेर बेर तुमको सौत बुलाने चाहता है। नौकर! नौकर! शराब।

२ नौकर–– (एक सुराही में से एक गिलास में शराब उझल कर देता है) लीजिए महाराज। पीजिए महाराज।

राजा–– (मुँह बनाकर पीता है) और दे। (नेपथ्य में –– दुहाई है दुहाई –– का शब्द होता है।)

कौन चिल्लाता है –– पकड़ लाओ।
(दो नौकर एक फर्यादी को पकड़ लाते हैं)

फ.–– दोहाई है महाराज दोहाई है। हमारा न्याव होय।

राजा–– चुप रहो। तुम्हारा न्याव यहाँ ऐसा होगा कि जैसा जम के यहाँ भी न होगा। बोलो क्या हुआ?

फ.–– महाराजा कल्लू बनिया की दीवार गिर पड़ी सो मेरी बकरी उसके नीचे दब गई। दोहाई है महाराज न्याव हो।

राजा–– (नौकर से) कल्लू बनिया की दीवार को अभी पकड़ लाओ।

मन्त्री–– महाराजा, दीवार नहीं लाई जा सकती।

राजा–– अच्छा, उसका भाई, लड़का, दोस्त, आशना जो हो उसको पकड़ लाओ।

मन्त्री[१]––महाराज! दीवार ईंट चूने की होती है, उसको भाई बेटा नहीं होता।

राजा–– अच्छा कल्लू बनिये को पकड़ लाओ।
(नौकर लोग दौड़कर बाहर से बनिए को पकड़ लाते हैं)
क्यों बे बनिए! इसकी लरकी, नहीं बरकी क्यों दबकर मर गई।

मन्त्री–– बरकी नहीं महाराज बकरी।

राजा–– हां हां, बकरी क्यों मर गई–– बोल नहीं अभी फांसी देता हूँ।

कल्लू–– महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं। कारीगर ने ऐसी दीवार बनाया कि गिर पड़ी।

राजा–– अच्छा, इस मल्लू को छोड़ दो, कारीगर को पकड़ लाओ। (कल्लू जाता है, लोग कारीगर को पकड़ लाते हैं) क्यों बे कारीगर! इसकी बकरी किस तरह मर गई?

कारीगर–– महाराज, मेरा कुछ कसूर नहीं, चूनेवाले ने ऐसा बोदा बनाया कि दीवार गिर पड़ी।

राजा–– अच्छा, इस कारीगर को बुलाओ, नहीं नहीं, निकालो, उस चूनेवाले को बुलाओ। (कारीगर निकाला जाता है, चूनेवाला पकड़कर लाया जाता है) क्यों बे खैर सुपाड़ी चूनेवाले! इसकी कुबरी कैसे मर गई?

चूनेवाला–– महाराज! मेरा कुछ दोष नहीं, भिश्ती न चूने में पानी ढेर दे दिया, इसी से चूना कमजोर हो गया होगा।

राजा–– अच्छा, चुन्नीलाल को निकालो, भिश्ती को पकड़ो। (चूनेवाला निकाला जाता है, भिश्ती लाया जाता है) क्यों बे भिश्ती! गंगा जमुना की किश्ती! इतना पानी क्यों दिया कि इसकी बकरी गिर पड़ी दीवार दब गई।

भिश्ती–– महाराज! गुलाम का कोई कसूर नहीं, कस्साई ने मसक इतनी बड़ी बना दिया कि उसमें पानी जादे आ गया।

राजा–– अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती निकालो।
(लोग भिश्ती को निकालते हैं और कस्साई को लाते हैं)

क्यौं बे कस्साई, मशक ऐसी क्यौं बनाई कि दीवार लगाई बकरी दवाई?

कस्साई–– महाराज! गड़ेरिया ने टके पर ऐसी बड़ी भेंड़ मेरे हाथ बेंची की उसकी मशक बड़ी बन गई।

राजा–– अच्छा, कस्साई को लाओ, भिश्ती को लाओ।
(कस्साई निकाला जाता है गड़ेरिया आता है)
क्यौं बे ऊखपौंड़े के गड़ेरिया! ऐसी बड़ी भेड़ क्यौं बेचा कि बकरी मर गई?

गड़ेरिया–– महाराज! ऊधर से कोतवाल साहब की सवारी आई, सो उस के देखने में मैंने छोटी बड़ी भेड़ का ख्याल नहीं किया, मेरा कुछ कसूर नहीं।

राजा–– अच्छा, इस को निकालो, कोतवाल को

  1. यहाँ टंकण की अशुद्धि से मूल पाठ में राजा छप गया है।

अंधेर नगरी ५३३