अभी सरबमुहर पकड़ लाओ। क्यौं बे कोतवाल! तैंने सवारी ऐसी धूम से क्यौं निकाली कि गड़ेरिये ने घबड़ा कर बड़ी भेड़ बेचा, जिस से बकरी गिर कर कल्लू बनियाँ दब गया? कोतवाल–– महाराज महाराज! मैं ने तो कोई कसूर नहीं किया मैं तो शहर के इन्तजाम के वास्ते जाता था। मंत्री–– (आप ही आप) यह तो बड़ा ग़जब हुआ, ऐसा न हो कि बेवकूफ, इस बात पर सारे नगर को फूंक दो या फांसी दे। (कोतवाल से) यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं निकाली? राजा–– हां हां, यह नहीं, तुम ने ऐसे धूम से सवारी क्यौं निकाली कि उसकी दबरी दबी। कोतवाल–– महाराज महाराज–– राजा–– कुछ नहीं, महाराज महाराज ले जाओ, कोतवाल को अभी फांसी दो। दरबार बरखास्त। (लोग एक तरफ से कोतवाल को पकड़ कर ले जाते हैं, दूसरी ओर से मंत्री को पकड़ कर राजा जाते हैं) (पटाक्षेप) (राग काफी) अंधेर नगरी अनबूझ राजा।
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झूठे बहुबिधि पदवी पावैं॥ (बैठकर मिठाई खाता है) गुरुजी ने हमको नाहक यहाँ रहने को मना किया था। माना कि देस बहुत बुरा है। पर अपना क्या? अपने किसी राजकाज में थोड़े हैं कि कुछ डर है, रोज मिठाई चाभना, मजे में आनन्द से राम-भजन करना। (मिठाई खाता है) (चार प्यादे चार ओर से आकर उस को पकड़ लेते हैं) १ प्या.–– चल बे चल, बहुत मिठाई खा कर मुटाया है। आज पूरी हो गई। २ प्या.–– बाबा जी चलिए, नमोनारायन कीजिए। गो.दा.–– (घबड़ा कर) हैं! यह आफ़त कहां से आई! अरे भाई, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मुझको पकड़ते हौ। १ प्या.–– आप ने बिगाड़ा है या बनाया है इस से क्या मतलब, अब चलिए। फांसी चढ़िए। गो.दा.–– फांसी। अरे बाप रे बाप फांसी!! मैंने किस की प्राण मारे कि मुझ को फांसी! २ प्या.–– आप बड़े मोटे हैं, इस वास्ते फांसी होती है। गो.दा.–– मोटे होने से फांसी? यह कहां का न्याव है! अरे, हंसी फकीरों से नहीं करनी होती। १ प्या.–– जब सूली चढ़ लीजिएगा तब मालूम होगा कि हंसी है कि सच। सीधी राह से चलते हो कि घसीट कर ले चलें? गो.दा.–– अरे बाबा, क्यों बेकसूर का प्राण |
भारतेन्दु समग्र ५३४