पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।

मारते हौ? भगवान के यहाँ क्या जवाब दोगे?

१ प्या.–– भगवान को जवाब राजा देगा। हम को क्या मतलब। हम तो हुक्मी बन्दे हैं।

गो.दा.–– तब भी बाबा बात क्या है कि हम फकीर आदमी को नाहक फांसी देते हौ?

१ प्या.–– बात है कि कल कोतवाल को फांसी का हुकुम हुआ था। जब फांसी देने को उस को ले गए, तो फांसी का फन्दा बड़ा हुआ, क्योंकि कोतवाल साहब दुबले हैं। हम लोगों ने महाराज से अर्ज किया, इस पर हुक्म हुआ कि मोटा आदमी पकड़ कर फांसी दे दो, क्योंकि बकरी मारने के अपराध में किसी न किसी की सजा होनी जरूर है, नहीं तो न्याव न होगा। इसी वास्ते तुम को ले जाते हैं कि कोतवाल के बदले तुमको फांसी दें।

गो.दा.–– तो क्या और कोई मोटा आदमी इस नगर भर में नहीं मिलता जो मुझ अनाथ फकीर को फांसी देते हैं!

१ प्या.–– इस में दो बात है –– एक तो नगर भर में राजा के न्याव के डर से कोई मुटाता ही नहीं, दूसरे और किसी को पकड़ै तो वह न जानैं क्या बात बनावै कि हमी लोगों के सिर कहीं न घहराय और फिर इस राज में साधू महात्मा इन्हीं लोगों की तो दुर्दशा है, इस से तुम्हीं को फांसी देंगे।

गो.दा.–– दुहाई परमेश्वर की, अरे मैं नाहक मारा जाता हूँ! अरे यहाँ बड़ा ही अन्धेर है, अरे गुरू जी महाराज का कहा मैंने न माना उस का फल मुझ को भोगना पड़ा। गुरुजी कहां हौ! आओ, मेरे प्राण बचाओ, अरे मैं बेअपराध मारा जाता हूँ गुरुजी गुरुजी ––
(गोवर्धन दास चिल्लाता है, प्यादे लोग उस को पकड़ कर ले जाते हैं)

(पटाक्षेप)

छठां दृश्य
(स्थान श्मशान)


(गोवर्धन दास को पकड़े हुए चार सिपाहियों का प्रवेश)

गो.दा.–– हाय बाप रे! मुझे बेकसूर ही फांसी देते हैं। अरे भाइयो, कुछ तो धरम विचारो। अरे मुझ गरीब को फांसी देकर तुम लोगों को क्या लाभ होगा? अरे मुझे छोड़ दो। हाय! हाय! (रोता है और छुड़ाने का यत्न करता है)

१ सिपाही–– अबे, चुप रह –– राजा का हुकुम भला कहीं टल सकता है? यह तेरा आखिरी दम है, राम का नाम ले –– बेफाइदा क्यों शोर करता है? चुप रह ––

गो.दा.–– हाय! मैं ने गुरुजी का कहना न माना, उसी का यह फल है। गुरुजी ने कहा था कि ऐसे––नगर में न रहना चाहिये, यह मैं ने न सुना! अरे! इस नगर का नाम ही अंधेरनगरी और राजा का नाम चौपट्ट है, तब बचने की कौन आशा है। अरे! इस नगर में ऐसा कोई धर्मात्मा नहीं है जो इस फकीर को बचावै। गुरु जी! कहाँ हौ? बचाओ –– गुरुजी गुरुजी –– (रोता है, सिपाही लोग उसे घसीटते हुए ले चलते हैं)

(गुरु जी और नारायण दास आते हैं)

गुरु.–– अरे बच्चा गोवर्धन दास! तेरी यह क्या दशा है?

गो.दा.–– (गुरु को हाथ जोड़कर) गुरु जी! दीवार के नीचे बकरी दब गई, सो इस के लिए फांसी देते हैं, गुरु जी बचाओ।

गुरु.–– अरे बच्चा! मैंने तो पहिले ही कहा था कि ऐसे नगर में रहना ठीक नहीं, तैं ने तो मेरा कहना नहीं सुना।

गो.दा.–– मैं ने आप का कहा नहीं माना, उसी का यह फल मिला। आप के सिवा अब ऐसा कोई नहीं है जो रक्षा करै। मैं आप ही का हूं, आप के सिवा और कोई नहीं (पैर पकड़ कर रोता है)।

महन्त–– कोई चिन्ता नहीं, नारायण सब समर्थ है। (भौं चढ़ाकर सिपाहियों से) सुनो, मुझको अपने शिष्य को अन्तिम उपदेश देने दो, तुम लोग तनिक किनारे हो जाओ, देखो मेरा कहना न मानोगे तो तुम्हारा भला न होगा।

सिपाही–– नहीं महाराज, हम लोग हट जाते हैं। आप बेशक उपदेश कीजिए।

(सिपाही हट जाते हैं। गुरु जी चेले के कान में कुछ समझाते हैं)

गो.दा.–– (प्रगट) तब तो गुरु जी हम अभी फांसी चढ़ेंगे।

महन्त–– नहीं बच्चा मुझको चढ़ने दे।

गो.दा.–– नहीं गुरु जी, हम फांसी पड़ैंगे।

महन्त–– नहीं बच्चा हम। इतना समझाया नहीं मानता, हम बूढ़े भए, हमको जाने दे।

गो.दा.–– स्वर्ग जाने में बूढ़ा जवान क्या?

अंधेर नगरी ५३५