पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५८२

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देखो इस पर फूल कैसे सुन्दर फूले हैं जैसे किसी ने | जयन्ती नगर के राजा अश्वपति की कुमारी सावित्री के देवता की फूल मण्डली बनाई हो । साथ फूल बीनने आई हैं। सुरबाला- और उधर से हवा कैसी ठंढी आती सत्यवान- (स्वगत) राजकुमारी ! बामन को चंद्रस्पर्श । लवंगी- और हवा में सुगंध कैसी है मधुकरी -कृपानिधान । आप सदा यहीं मधुकरी-सखी ! एकटक उधर ही क्यों निवास करते हैं । देख रही हो! सत्यवान-जब तक दैव अनुकूल न हो यही सुरबाला- सच तो सखी । वहां क्या है जो | निवास है । उधर ही ऐसी दृष्टि गड़ा रही हौ ? मधुकरी- इससे तो बोध होता है कि लवंगी-तू क्या जानै । तपोवन में सैकड़ों | किसी राजभवन को सूना करके आप यहां आए हैं । वस्तु ऐसी होती हैं। सत्यवान-सखी! उन बातों को जाने दो । सावित्री- (रागसोरठ) मधुकरी- हमारे अनुरोध से कहना ही होगा । लखो सखि भूतल चन्द खस्यो । दयाल सज्जनगण अतिथि की याञ्चा व्यर्थ नहीं करते । राहु केतु भय छोड़ि रोहिनिहि या बन आइ बस्यौ ।। विशेष कर के पहले ही पहल । कै सिव जय हित करत तपस्या मनसिज इत निबस्यौ । सत्यवान- हम शाल्व देश के राजा धुमत्सेन के कोऊ बनदेव कुंज में बनबिहार बिलस्यौ ।। के पुत्र हैं । हमारा नाम चित्राश्व वा सत्यवान है । इस मधुकरी-सच तो, तपसियों में ऐसा रूप ! भेध्यारण्य नामक बन में पिता की सेवा करते हैं । सुरबाला जाने दे । वनवासी तपस्वी में ऐसा मधुकरी 1-(आप ही आप) तभी । गंगा समुद्र रूप कहां? छोड़कर और जलाशय की ओर नहीं झुकती । (प्रकट) सावित्री -यह मत कहो। विधना की | तो आज्ञा हो तो अब प्रणाम करूं । कारीगरी जैसी नगर में वैसी ही बन में । सत्यवान (कुछ उदास होकर) यह क्यों ? (सत्यवान की ओर सतृष्ण दृष्टिपात) बिना आतिथ्य स्वीकार किए हुए ? सुरबाला- देखती हो ? एक मन एक प्रान मधुकरी - इसका तो मैं सखी से पूछ लूं तो होकर कैसी सोच रही है? उत्तर + । (सावित्री के पास आकर) सखी ! कुमार लवंगी-(परिहास से) आज जो यह तापस- तापस कहते हैं कि आतिथ्य स्वीकार करना होगा । कुमार के बदले राजकुमार होते तो घर बैठे गंगा बही सावित्री- (सखियों का मुंह देखती है)। थी। लवंगी-(परिहास से) अवश्य अवश्य ! इसमें क्या हानि है। मधुकरी- सखी, इसका कुछ नेम नहीं है कि राजकुमारी का ब्याह राजकुमार ही से हो । सावित्री- (कुछ लज्जा करके) सखी ! उनसे सावित्री-विधाता ने जिस भाव में राजपुत्र को निवेदन कर दे कि हम लोग माता पिता की आज्ञा लेकर सिरजा है उसी भाव में मुनिपुत्र को । और फिर | तब किसी दिन आतिथ्य स्वीकार करेंगे, आज विलम्ब भी राजधन से तपोधन कुछ कम नहीं होता । हुआ सत्यवान-(आप ही आप) यह क्या बनदेवी मधुकरी 1- (सत्यवान के पास जाकर) कुमारी आई हैं। कहती है कि किसी दिन माता पिता की आज्ञा लेकर हम मधुकरी- हम उनके पास जाकर प्रणाम तो आवेगे तब आतिथ्य स्वीकार करेंगे । आप तो जानते ही कर आवै। हैं कि आर्यकुल की ललनागण किसी अवस्था में भी (मधुकरी का कुंज की ओर बढ़ना और सत्यवान का स्वतंत्र नहीं हैं। इससे आज क्षमा कीजिए। लतामंडप से निकलकर बाहर बैठना) सत्यवान-(कुछ उदास होकर) अच्छा । मधुकरी- (सत्यवान के पास जाकर) प्रनाम (सखियों के साथ सावित्री का प्रस्थान) (उधर ही देखता (हाथ जोड़कर सिर झुकाना) है) यह क्या ? चित्त में ऐसा विकार क्यों ? क्या स्वर्ण सत्यवान- आयुष्मती भव । आप लोग कौन | और रत्न में भी मलिनता ? क्या अग्नि में भी कीट की हैं? उत्पत्ति ? उह ? फिर वही ध्यान ? यह क्या ? अब मधुकरी- हम लोग अपनी सखी मद्रदेश के | तो जी नहीं मानता । चलें आगे बढ़कर बदली में छिपते । - ** Sh भारतेन्दु समग्न ५३८