पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५८५

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तज्यो ।। हुमत्सेन कन्या के अनुरोध से संबंध करने के लिये कहते हैं मोहि न धन को सोच भाग्य बस होत जात धन । (हरिनाम गान करते हुए नारद जी का आगमन) पुनि निरधन सो दोष न होत यही गुन गुनि मन ।! नारद- (नाचते और वीणा बजाते हुए) मोकह इक दुख यहै जु प्रेमिन हु मोहि त्याग्यौ ।। (चाल नामकीर्तन महाराष्ट्रीय कटाव) बिना द्रव्य के स्वानहु नहिं मोसों अनुराग्यौ ।। जय केशव करुणाकंदा । जय नारायण गोविंदा । सब मित्रन छोड़ी मित्रता बंधुन ह्र नातो नज्यौ । जय गोपीपति राधानायक । जो दास रह्यौ मम गेह को मिलनहुँ मैं अब सो तन्यौ।। कृष्णकमल लोचन सुखदायक ।। माधव सुरपति रावण-हंता । सीतापति जदुपति श्रीकता ।। प. ऋषि- तो इसमें आपकी क्या हानि है ? ऐसे लोगों से न मिलना ही अच्छा है । बुद्ध नृसिंह परशुधर बावन । मच्छ-कच्छा-बपुधर जग-पावन ।। युमत्सेन - नहीं, उनके न मिलने का मुझको | कल्कि बराह मुकुन्दा । जय केशव करुणा कंदा ।। अणुमात्र सोच नहीं है । मुझको तो ऐसे तुच्छमना लोगों जय जय विष्णु भक्त भयहारी । बृंदावन बैकुंठ-बिहारी।। के ऊपर उलटी दया उत्पन्न होती है । मुझको अपनी जसुदा-सुअन देवकीनंदन । जगबंदन प्रभु कंसनिकंदन। निर्धनता केवल उस समय अति गढ़ाती है जब किसी शंख-चक्र-कौमोदकि-धारी। वंशीधर बकबदन बिदारी।। सत्पुरुष कुलीन को द्रव्य के अभाव से दु:खी देखता जय वृंदावन चंदा । जय केशव करुणा-कंदा ।। हूँ । उस समय मुझको निस्संदेह यह हाय होती है कि जय नरायण गोविंदा । आज द्रव्य होता तो मी उसकी सहायता करता । (सब लोग प्रणाम करके बैठाते हैं) दु. ऋषि-आपके मन में इसका खेद होता है युमत्सेन हमारे धन्य भाग कि तो मानसिक पुण्य आपको हो चुका । और आपकी दीनावस्था में आपके दर्शन हुए। मनोवृत्ति ऐसी है तो वह अवश्य एक न एक दिन फलवती होगी। नारद-राजन् ! तुम्हारे पास सत्यधन, तपोधन, धैर्यधन अनेक धन हैं, तुम क्यों दीन हौ । प. ऋषि- सज्जनगण स्वयं दुर्दशाग्रस्त रहते और आज हम तुमको एक अति शुभ संदेश देने को आए है, तब भी उनसे जगत में नाना प्रकार के कल्याण ही हैं । तुम्हारे पुत्र का विवाह संबंध हम अभी स्थिर किए होते हैं। आते हैं । सावित्री के पिता को भी समझा आए हैं कि युमत्सेन- अब मुझसे किसी का क्या कल्याण उनकी कन्या सावित्री अपने उज्ज्वल पातिव्रत धर्म के होगा ! बुढ़ापे से शरीर में पौरुष हई नहीं । एक आँख प्रभाव से सब आपत्तियों को उल्लंघन करके सुखपूर्वक थी सो भी गई । तीर्थ भ्रमण और देवदर्शन से भी कालयापन करेगी और अपने पवित्र चरित्र से दोनों कुल रहित हुए। का मान बढ़ावेगी । तुमसे भी यही कहने आए हैं कि सब संदेह छोड़कर विवाह का संबंध पक्का करो। प. ऋषि -आपके नेत्रों के इतने निर्बल हो जाने का क्या कारण है ? अभी । कुछ आपकी अवस्था ग्रामत्सेन मुझको आपकी आज्ञा कभी अति वृद्ध नहीं हुई है 1 उल्लय...य नहीं है। किन्तु अत्मसेन- वही कारण जो हमने कहा था । नारद-किंतु फितु कुछ नहीं । विशेष हम इस (उदास होकर) पुत्रशोक से बढ़कर जगत में कोई शोक समय नहीं कह सकते । इतना मात्र निश्चय जानो कि नहीं है । गणक लोगों ने यह कहकर कि तुम्हारा पुत्र अन्त में सब कल्याण है। अल्पायु है, मेरा चित्त और भी तोड़ रखा है । इसी से न धुमत्सेन-जो आज्ञा । मैं ऐसा घर, ऐसी लक्ष्मी सी बहु पाकर भी अभी विवाह नारद-अब हम जाते हैं। -संबंध नहीं स्थिर करता । (गान चाल भैरव, ताल इकताला वा बाउल दू. ऋषि- अहा ! तभी महाराज, अश्वपति भजन की चाल पर ताल आडा) और उनकी रानी इस संबंध से इतने उदास हैं । केवल बोलो कृष्ण कृष्ण राम राम परम मधुर नाम सती प्रताप ५४१