पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोविंद-२ केशव केशव गोपाल गोपाल माघव माधव। हरि हरि हरि वंशीधर श्याम । नारायण वासुदेव नंदनन्दन जगबंदन । वृंदावन चारु चंद गरे गुजदाम । 'हरीचंद' जन रंजन सरन सुखद मधुर मूर्ति । राधापति पूर्ण करन सतत भक्त काम । (नृत्य और गीत) (जवनिका गिरती है) Sata 613 Com सबै जाति गोपाल की संवादात्मक प्रहसन है। रूद्र जी के अनुसार अंग्रेजी के केर्टेन रेजर के अनुसरण पर लिखा गया है। हरिश्चंद्र मैगजीन जिल्द संख्या ६ बर १८७३ में पहली बार छपा।" सबै जातिगोपाल की" "बसंत पूजा" "ज्ञाति विवेकिनीसभा", संड्. भढ्योः संवाद" ये चारों सं. १९३० से ८०के बीच कमी प्रकाशित " प्रहसन पंचक" में संग्रहीत हैं। सं० सबै जात गोपाल की (एक पडित जी और एक क्षत्री आते हैं) एक बेर बड़ा यज्ञ किया था, उसी यज्ञ में से चर्मण्ववती निकली है । अब कर्म भ्रष्ट होने से अन्त्यज हो गए हैं क्षत्री-महाराज देखिये बड़ा अंधेर हो गया कि नहीं तो हैं असिल में ब्राह्मण, देखो रैदास इन में कैसे ब्राह्मणों ने व्यवस्था दे दी कि कायस्थ भी क्षत्री हैं। भक्त हुए हैं लाओ दक्षिणा लाओ । 'सबै.' कहिए अब कैसे कैसे काम चलेगा । क्ष.- और डोम । पंडित- क्यों इसमें दोष क्या हुआ ? 'सबै पं.- डोम तो ब्राह्मण क्षत्रिय दोनों कुल के हैं, जात गोपाल की" और फिर यह तो हिंदुओं का शास्त्र विश्वामित्र-वशिष्ट वंश के ब्राह्मण डोम हैं और पनसारी की दुकान है और अक्षर कल्प वृक्ष है इस में तो हरिश्चंद्र और वेणु वंश के क्षत्रिय हैं । इस में क्या सब जात की उत्तमता निकल सकती है पर दक्षिणा पूछना है लाओ दक्षिणा 'सबै जा.' । आपको बाएं हाथ से रख देनी पड़ेगी फिर क्या है फिर क्ष.- और कृपा निधान ! मुसलमान । तो "सबै जात गोपाल की।" प. मीयाँ तो चारों वर्गों में हैं। वाल्मीकि क्ष.- भला महाराज जो चमार कुछ बनना चाहे रामायण में लिखा है जो वर्ण रामायण पढ़े मीयाँ हो तो उसको भी आप बना दीजिएगा । जाय । पं.- क्या बनना चाहै , पठन् द्विजो वाग ऋषभत्वमीयात् । क्ष.-कहिये ब्राह्मण । ख्यात् क्षत्रियों भूमिपतित्वमीयात् ।। पं. हां, चमार तो ब्राह्मण हई है इस में क्या अल्लहोपनिषत् में इनकी बड़ी महिमा लिखी है। संदेह है, ईश्वर के चर्म से इनकी उत्पत्ति है, इनको द्वाराका दो भांति के ब्राह्मण थे जिनको बलदेव जी यह दंड नहीं होता . चर्म का अर्थ ढ़ाल है इससे ये दंड (मुशली) मानते थे। उनका नाम मुशलिमान्य हुआ रोक लेते हैं । चमार में तीन अक्षर हैं 'च' चारों वेद और जिन्हें श्रीकृष्ण मानते उनका नाम कृष्णमान्य 'म' महाभारत 'र' रामायण जो इन तीनों को पढ़ावे वह | हुआ । अब इन दोनों का अपभ्रंश मुसलमान और चमार । पद्मपुराण में लिखा है कि इन चर्मकारों ने कृस्तान हो गया। भारतेन्दु समग्र ५४२