पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५८७

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पं.-जाठर क्षत्रिय । क्ष.-और कोल। पं.-कोल ब्राह्मण । क्ष. धरिकार । पं.. क्षत्रिय शुद्ध शब्द धर्यकार है । क्ष. और कुनबी और भर और पासी । पं.-तीनों ब्राह्मण बंश में हैं, भरद्वाज से भर, कन्व से कनुबी, पराशर से पासी । क्ष.-भला महाराज नीचों को तो आपने उत्तम बना दिया अब कहिए उत्तमों को भी नीच बना सकते प.- क्ष.- तो क्या आप के मत से कृस्तान भी ब्राहमण हैं? पं.- हई है इसमें क्या पूछना है - ईशावास उपनिषत में लिखा है कि सब जगत इंसाई है। क्ष. और जैनी? पं.-बड़े भारी ब्राहमण हैं। "अहैन्नित्यपि जैनशासनरता" जैन इनका नाम तब से पड़ा जब से राजा अलर्क की सभा में इन्हें कोई जैन कर सका ! क्ष.-और बौद्ध? बुद्धि वाले अर्थात ब्राह्मण । और धोबी। पं.-अच्छे खासे ब्राह्मण जयदेव के जमाने तक धोबी ब्राह्मण होते थे । 'धोई कवि : क्षमापति: । ये शीतला के रज से हुए हैं इससे इनका नाम रजक पड़ा । और कलवार । पं. क्षत्री हैं, शुद्ध शब्द कुलवर है, भट्टी कवि इसी जाति में था । क्ष.- और महाराज जी कुहार । पं. -ब्राह्मण, घटखर्पर कवि था । -और हां, हां वैश्या । पं. क्षत्रियानी-रामजनी, और कुछ बनियानी अर्थात वेश्या . क्ष. पं.-वैश्य-नंदादिकों के बालकों का द्विजाति संस्कार होता था । "कुरु द्विजाति संस्कार स्वस्ति- वाचनपूर्वक" भागवत में लिखा है। क्ष मुइंहार । प.-ब्राह्मण । क्ष. द्रसर । पं.-ब्राह्मण, भृगुवंश के, ज्वालाप्रसाद पंडित का शास्त्रार्थ पढ़ लीजिए । क्ष.-जाठ। पं.-ऊँच नीच क्या, सब ब्रह्म है. आप दक्षिणा दिए चलिए सब कुछ होता चलेगा । क्ष.- दक्षिणा मैं दूंगा, आप इस विषय में भी कुछ परीक्षा दीजिए। पं.-पूछिए मैं अवश्य कहूंगा । क्ष. कहिए अगरवाले और खत्री । पं.- दोनों बढ़ई हैं, जो बढ़िया अगर चंदन का काम बनाते थे उनकी संज्ञा अगरवाले हुई और जो खाट बीनते थे वे खत्री हुए वा खेत अगोरने वाले खत्री कहलाए। क्ष.- और महाराज नागर गुजराती । पं.- सपेरे और तैली, नाग पकड़ने से नागर और गुल जलाने से गुजराती । क्ष. और महाराज भुइहार और भाटिये और रोड़े। पं.- तीनों शूद्र, भूजा से भुंइहार, भट्टी रखने वाले भाटिये, रोड़ा ढोने वाले रोड़े। क्ष.- (हाथ जोड़कर) महाराज आप धन्य हो लक्ष्मी वा सरस्वती जो चाहे सौ करै चलिए दक्षिणा अहीर । लीजिये। पं.-चलो इस सब का फल तो यही था । (दोनों गए) सने जाति गोपाल ५४३