पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५९१

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(कलऊ गड़ेरिया दक्षिणा देता है पंडित लोग लेते हैं। कलह-सब महरजवन से मोरी इहै बिनती हो कि किछु कहा कराना हो तवन पक्का पाढ़ा कर दिह: । हाँ महरज्जा जिहमा कोऊ दोषैन । विपिनराम-दोखै का सारे ? कलहु- अरे इहै कि धरम सास्तरवा में होइ तौने एहिमा लिखिहः । विपिनराम- अरे सरवा धरमसास्तर फास्तर का नाम मत लेइ ताइ तोप के काम चलाउ सास्तर का परमान दँदै सरऊ तो तोहार कतहूँ पता न लागी । अरे फिर आज काल धरमसास्तर को पूछत को है। कलहु- अरे महरज्जा पोथी पुरान के अश्लोक फश्लोक लिख दीहा इहै और का महरज्जा तोहार परजा हौं। विपिनराम- अरे सरवा परजा का नाँव मत लेइ । अस कहु कि हम क्षत्री हई । कलह-अच्छा महरज्जा हम क्षत्री हई तोहरे सबके पायन परत हुई। विपिनराम- अच्छा चिरजूचिरंजू सुखी रहा । अच्छा कलऊ तुम दोऊ प्रानी एक विरहा गाइ कै सुनाइ दो तो हम सब विदा होहिं । कलह बहुत अच्छा महरज्जा (अपनी स्त्री से) आठरे पवरी धीहर। (दोनों स्त्री पुरुष मिलकर नाचते गाते हैं) आउ मोरी जानी सकल रसखानी । धरि कंध बहियां नाचु मनमानी । मैं भैलों छतरि तु धन छतरानी । अब सब छुटि गैरे कुल के रे कानी ।। धन धन बम्हना ले पोथिया पुरानी । जिन दियो छतरी बनाई जगजानी ।। (सब का प्रस्थान भया) 6116 CAM संड़ भंड़यो संवाद "विद्यार्थी' में फाल्गुन सं. १९३५ मे प्रकाशित "प्रहसन पंचक' का चौथा प्रहसन। - सं. संडभडंयोः संवाद: संड: .-क: कोत्र भो : ? (आप यहाँ कौन ?) भं.-- अत्र क : संदेह : केवलं वसंतौ, भंड: अहमस्सि भंडाचार्य : । (मैं हूं वसंतन्नदन : । (इसमें सन्देह क्या ? खालिस वसंत भण्डाचार्य ।) हैं; वसंतनन्दन है।) सं.-- कुतो भवान् ? (कहां से आ रहे हैं ?) सं.- मधुनन्दनोवा माधवनंदनों वा ? (चैत्रनंदन भं.-- अहं अनादियवनसमाधित उत्थित : । या वैशाखनंदन ) (मैं अनादि कब्रिस्तान से उठा हूँ) भं.--आ: किमामाक्षिपसि! नाह मधो: सं.-- विशेष : । (विशेषता क्या है ?) कैटभाग्रजस्व नंदन :! अहं तु हिंदू पदवाच्य अतएव भं.--क अभिप्राय : । (क्या मतलब ) माधवनन्दन: । (ओह ! आक्षेप क्यों करता है? मैं सं.- तर्हितु भवान् वसंत एव । (तब तो आप | मधुकैटभ के बड़े भाई का बेटा नहीं हूँ। मैं हिंद बावसंत ही हैं । नामधारी हूँ अत : माधवनंदन हूँ।) HXHGK शांति विवेकिनी सभा ५४७