पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/५९५

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कृतार्थ होते हैं । फिर तो आनन्द का समुद्र श्री रामजन्म श्री रामलीला चम्पूविधा मे वर्णित रामनगर की लीला का वर्णण। पहली बार इसे खंड्ग विलास प्रेस बांकीपुर ने छापा। सं. श्री रामलीला अतिरोचक गद्य और पद्य में श्री राम जी की बाललीला 1 भारत भूषण भारतेन्दु श्री हरिश्चद्र कृत जिसको हिन्दी भाषा के प्रेमी तथा रसिकजनों के मनोविलास के लिये क्षत्रियपत्रिका सम्पादक म. कु. बाबू रामदीन सिंह ने प्रकाशित किया पटना -'खंगविलास' प्रेस बांकीपुर । चंडीप्रसाद सिंह ने मुद्रित किया । १९०४ हरिश्चन्द्राब्द २० प्रथम बार दाम ।।) श्री रामलीला। की बात नहीं हैं। पद- हरि लीला सब विधि सुखदाई । कवित्त-राम के जनम मांहि आनंद उछाह कहत सुनत देखत जिअ आनत देति भगति अधिकाई । जौन सोई दरसायो ऐसी लीला परकासी है। तैसे ही प्रेम बढ़त अघ नसत पुन्यरति जिय मैं उपजत आई । भवन दसरथ राज रानी आदि तैसो ही अनन्द भयो दुख याही सो हरिचन्द करत सुति नित हरि चरित बड़ाई ।१ निसि नासी है ।। सोहिलो बधाई द्विज दान गान बाजे गद्य- आहा ! भगवान की लीला भी कैसी दिव्य | बजै रंग फूल वृष्टि चाल तैसी निकासी है । कलिजुग और धन्य पदार्थ है कि कलिमल ग्रसित जीवों को सहज त्रेता कियो नर सब देव कीन्हें आजु कासीराज जू ही प्रभु की ओर झुका देती है और कैसा भी विषयी जीव | अजुध्या कीनी कासी है ।।२।। क्यों न हो दो घड़ी तो परमेश्वर के रंग में रंग ही देती फिर श्री रामचन्द्र की बाललीला, मुण्डन कर्णबेध है । विशेष करके धन्य हम लोगों के भाग्य कि श्रीमान | जनेऊ शिकार खेलना आदि ज्यों का त्यौं होता है देखने महाराज काशिराज भक्त शिरोमणि की कृपा से सब से मनुष्य भव दुख मूल से खोता है । फिर विश्वामित्र लीला बिधिपूर्वक देखने में आती है। पहले आते हैं संग में श्री राम जी को सानुज ले जाते हैं । मार्ग मंगलाचरण होकर रावण का जन्म होता है फिर देवगण | में ताड़िका सुबाहु का बध और फिर चरण रेणु से की स्तुति और बैकुण्ठ और क्षीरसागर की झाँकी से नेत्र अहिल्या का तारना । आहा! धन्य प्रभु के पदपदम जिसके स्पर्श से कहीं मनुष्य पारस होता है देवता बनता का महोत्सव है जो देखने ही से सम्बन्ध रखता है कहने ' है कहीं पत्थर तरता है । इस प्रभु की दीन दयाल पर

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रणधीर प्रेम मोहिनी ५५१