पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६०१

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आदि इसके आचार्य हैं । इनमें भरतभूमि इस शास्त्र के किन्तु इसका उपाख्यान लौकिक हो । नायक कोई मुख्य प्रवर्तक हैं। मन्त्री धनी वा ब्राह्मण हो । इसकी नायिका मत्रिकन्या, अर्थ भेद किसी के घर में आश्रित भाव से रहनेवाली, वा वेश्या नाटक शब्द की अर्थग्नाहिता यदि रंगस्थ खेल ही में हो । प्रथामावस्था में शुद्ध और द्वितीयावस्था में प्रकरण की जाय तो हम इसके तीन भेद करेंगे । काव्यमिश्र, की संकर संज्ञा होती है। उदाहरण मल्लिकामारुत शुद्ध कौतुक औ भ्रष्ट । शुद्ध कौतुक यथा कठपुतली वा मालतीमाधव और मृच्छकटिक । खेलौने आदि से सभा इत्यादि का दिखलाना, गूंगे- ३ भाण। बहिरे का नाटक, बाजीगरी वा घोड़े के तमाशे में संवाद, भाण में एक ही अंक होता है । इसमें नट ऊपर भूत-प्रेतादि की नकल और सभ्यता की अन्यान्य देख देख कर जैसे किसी से बात करे आप ही सारी दिल्लगियों को कहेंगे । भ्रष्ट अर्थात जिनमें अब कहानी कह जाता है। बीच में हंसना, गाना. क्रोध नाटकत्व नहीं शेष रहा है यथा भाँड, इंद्रसभा, स, करना, गिरना हत्यादि आप ही दिखलाता है ।। यात्रा. लीला और झांकी आदि । पारसियों के नाटक, इसका उद्देश्य हंसी, भाषा उत्तम और बीचों बीच में महाराष्ट्रों के खेल आदि यद्यपि काव्यमित्र हैं तथापि संगीत भी होता है। उदाहरण "विषस्य विष- काव्यहीन होने के कारण वे भी भ्रष्ट ही समझे जाते हैं । मौषधम् ।" काव्यमिन नाटकों को दो श्रेणी में विभक्त करना ४ व्यायोग उचित है । प्राचीन और नवीन - युद्ध का निदर्शन, स्त्री पात्र रहित और एक ही दिन अर्थ प्रचीन की कथा का होता है । नायक कोई अवतार १ वा वीर प्राचीन समय में अभिनय नाट्य, नृत्य, नृत्त, ताडव होना चाहिए । ग्रंथ नाटक की अपेक्षा छोटा । उदाहरण और लास्य इन पांच भेदों में बंटा हुआ था । इनमें नृत्य 'धनंजय विजय ।' भावसहित नाचने को, नृत्त केवल नाचने को और तांडव ५ समवकार और लस्य भी एक प्रकार के नाचने ही को कहते हैं। यह तीन अंक में हो । इसमें १२ तक नायक हो इससे केवल नाट्य में नाटक आदि का समावेश होगा ; | सकते हैं । कथा दैवी हो । छन्द वैदिक हो । युद्ध शेष चारों नाचनेवालों पर छोड़ दिए जायगे । नाट्य आश्चर्य मात्रा इत्यादि इसमें दिसलाई जाती है। रूपक और उपरूपक में दो भेदों में बंटा है । रूपक के उदाहरण भाषा में नहीं है। दश भेद हैं। यथा -- ६ डिम १नाटक। यह भी वैसा ही किन्तु इसमें उपद्रव दर्शन विशेष काव्य के सर्वगुण संयुक्त खेल को नाटक कहते होता है। अंक चार नायकदेवता वा दैत्य का हैं । इसका नायक कोई महाराज (जैसा दुष्यन्त) वा अवतार । (उदाहरण नहीं) । ईश्वरांश (जैसा श्रीराम) वा प्रत्यक्ष परमेश्वर (जैसा ७ ईहामृग श्रीकृष्ण) होना चाहिए । रस श्रृंगार वा वीर । अंक चार अंक, नायक ईश्वर वा अवतार । नायिका पाँच के ऊपर और दस के भीतर । आख्यान मनोहर देवी । प्रेम इत्यादि वर्णित होता है। नायिका द्वारा और अत्यन्त उज्ज्वल होना चाहिए उदाहरण | युदादि कार्य सम्पादन होता है । (उदाहरण नहीं) । शाकुन्तल, बेणीसंहार आदि । ८ अंक। २ प्रकरण । एक ही अंक में खेल दिखलाना । नायक गुणी और यह और बातों में नाटक के तुल्य होना चाहिए | आख्यान प्रसिद्ध हो । (उदाहरण नहीं) । (१) अवतारों का वर्णन भक्तमाल में एक ही छप्पय में लिखा है :-- जय जय मीन बराह कमठ नरहरि बलि बावन । परसुराम रघुवीर कृष्ण कीरति जगपावन ।। बौध कलंकी व्यास पृथू हरि हंस मन्वंतर । यज्ञ ऋषभ हयग्रीव ध्रुवहि वर देन धन्वंतर ।। बद्रीपति दत्त कपिल देव सनकादिक करुना करौ । चौबीस रूप लीला रुचिर अग्रदास उर पद धरौ ।। नाटक ५५७