पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६१

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वही मैं ठाम न नैकु रही। गारी देत कस्यो नहि मानत हाच नचायत आई। भार गई लिखत लिखत अप मेरे बाकी सबह रही । | हम जल में नाँगी सहवाही सुनह जसोदा माई । चित्रगुप्त हारे अति चकि के सुध गिरे मही। तुम निज सुत के गुन नहिं जानत कहत लाव प्रति आये। जमपुर में हरताल परी है कछ नहि जात कही। 'हरीचंद' अरजति नहि काहे निल नित धूम मचावै ।१२ जम भागे कछु नोज मिलत नहिं सबही यही नहीं । राग टोडी 'डरीचंद ऐसे को तारी तो तुय नाम सही 1८७ विनती सुन नंद-बाल बरजो क्यों न अपनो बाल पियारे हम तो भक्त इकगी। प्रातकाल आइ आइ अम्बर से भागे। सब छोड़नौ नुमरे हित मोहन लोक-लाज कल संगी। भोर होत जमुन तीर पुरि जुरि सब गोपी भोर विधि-निषेध अस वेद छोड के होइ गई मनु गंगी। न्हात जो विमल नीर शीत अतिहि जागे । 'हरीचन्द' चाहे मति मानो हम तो तुव रंग रंगी ।८८ लेत बसन मन चुराइ कदम चढ़त तुरत भाइ ठादी हम नीर माहि नांगी सकचाही । छूट नहि तुमको कोउ विधि प्यारे । 'हरीनंद' ऐसो हल करत नित्य प्रति गोपाल हम सब पाप करेंगे बनिहै ताह पै पुनि तारे । ब्रज में कहो कैसे पसे अब निबाह नाहीं ।१३ बेदन मैं निज क्यों कहलायो पतित-उधारन नाम । चलो सखी मिल देखन जैये दलहिन राधा गोरी । क्यौ परतिज्ञा यह कीनी के तारहिंगे अध-धाम । कोटि रमा मुख छवि पे वारो मेरी नवल-किसोरी छ । सुबरन-चोर ब्रहम-हत्यारो गुरुतल्पगहु सुरापी । धुंधरी लाल चरकसी सारी सोधे भीनी चोली चू । अबकी बेर नियाहि ह पिय 'हरिनंद' सो पापी ।८९ मरवट मुल में सिर पै मौरी मेरी दुलहिया भोली जू हम नहिं अपने को पछितात । नकबेसर कनफूल बन्यौ है शनि का पै कहि आवैजू । यह सोचत के बिनु मोहिं तारे पात तुम्हारी जात । अनवट बिछिया मुंदरी पहुंची सुलह के मन भावे । अजामिलादिक के तारन सों भई अतिहि विख्यात । ऐसे बना बनी पैरी सखि अपनो सन मन वारी । सो काह विधि अबलों नियही जानी जगत जगात | सब सखियाँ मिलि मंगल 'हरीनंद' तुमरो औ पापी यह दोऊ अति ख्यात । गावत 'हरीचंद' लिहारी जू ।२४ तासों ताकह तारि कोऊ विधि राखी अपनी बात ।९० राग सारंग (रध-यात्रा) राग आसावरी अटा पे मग जोवत है ठाढ़ी । जे जन अन्य आसरो तजि श्री विठ्ठलनाथहि गावै । यहि मारग हरि को रथ ऐहे प्रेम-पुलक तन बाढ़ी । ते विनु श्रम धोरेहि साधन में भव-सागर सरि जावें। कोट खिरकिन कुबन पै ठाढ़ी कोउ द्वारे मग जोहे । जिनके मात पिला गुरू मिहल और कतहुँ कोउ नाहीं । करि शंगार श्यामसुंदर-हित प्रेम भरी अति सोहैं । ते जन यह संसार समुदहि वत्सचरन कार जाही। यह आयो यह आयो सजनी कहांत सबै अजनारी । जिनकों अषन कीर्तन सुमिरन बिल ही को भायै । लैले भेट सामुहे आई भरि के कंचन धारी । ते जन जीवनमुक्त्त कहावहिं मुख देते अघ जाये । बीरी देत करति न्योछापरि से आरती उतारें । जिनके इष्ट सखा श्री विठ्ठल और बात नहिं प्यारी । 'हरीचंद' प्रजनंद पिया पे अपनो तन मन वारै ।२५ जिनके बस में सदा सर्वदा रहत गोषढ़नधारी । तिनके मन क्रम बच सब भाँतिन श्री विठ्ठल-पद पूजो । निविड़ तम-पुंज अति श्याम गहवर कुज ते कृतकृत्य धन्य ते कलि मैं तिन सम और न दूजो । राधिका-श्याम लहँ केलि सुंदर रची। परमधियार मधि उदय मुख-मंद को जे निस-दिन श्री विठ्ठल विठ्ठल विठ्ठल ही मुख भाई। करत तम दर सब भाँति सोभा सची । 'हरीचंद तिनके पद की रज हम अपने सिर रावै ।११ हार हिय चमकि उडुगनन की छवि हरत करत किकिनि चुरी शब्द मनिगन खची । जमुना-तट ठाढ़ नंद-नंदन कोउ नहान न पावै हो । लखत 'हरिचद' सत्ति ओट हवे सुरति-सुख काम-कामिनि-काम-गरव गति नहिं बची १३ राग आसावरी (चीर-हरण) जो कोउ जल पैठत मजन-हित ताको चीर नुरावै हो । तोरत हार कंचुकी फारत चढ़त कदम पे धाई। पुनि पाहे ते पीठ मत है ऐसो दीठ कन्हाई । प्रेम मालिका २१