पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६१४

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मध्य समय के नाटककारों में कविकुलगुरु भगवान् । राजकुमार तथा उच्चद कुल के लोगों के रुधिर की नदी। कालिदास (१) मुख्यतम हैं । भवभूति (२) और | बहती थी । हर्ष श्रीस्वामी दयानन्द सरस्वती की भांति धावक दूसरी श्रेणी में हैं। राजशेखर, जयदेव, मूर्तिपूजा के भी विरुद्ध था इसी हेतु प्रजा उसको तुरुष्क भट्टनारायण, दड़ी (३) इत्यादि तीसरी श्रेणी में हैं। पुकारती थी । इन बातों से स्पष्ट प्रमाणित होता है कि अब जितने नाटक प्रसिद्ध है उन में मृच्छकटिक सब से या तो धावकवाला श्रीहर्ष दूसरा है, कश्मीर का नहीं । प्राचीन है । इसके पीछे शकुन्तला और विक्रमोर्वशी बने या मालविकाग्निमित्रकार कालिदास वह जगत्प्रसिद्ध हैं। यहां पर एक बड़ी प्रसिद्ध बात का विचार करना शकुन्तला का कालिदास नहीं । दूसरी बात विशेष है । प्राय : सभी प्राचीन इतिहास लेखकों ने लिखा है संभव बोध होती है क्योंकि शकुन्तला और मालवि- कि श्रीहर्ष कालिदास के पूर्व हुआ, क्योंकि मालवि- काग्निमित्र की संस्कृत ही में भेद नहीं काव्य की काग्निमित्र में कालिदास ने धावक का नाम लिया है, उत्तमता मध्यमता में भी आकाश पाताल का बीच है। किन्तु राजतरंगिणी में हर्ष नामक जो राजा हुआ है वह राजतरंगिणी में लिखा है कि कश्मीर के राजा तुंजीन विक्रमादित्य (४) के कई सौ वर्ष पीछे हुआ के समय में चंद्रक कवि ने बड़ा सुन्दर नाटक बनाया । अनन्त देव नामक राजा भोज के समय में था! अनत यह तुंजीन राजतरंगिणी के हिसाब से गत कलि का पुत्र कलस हुआ जिस ने आठ बरस राज्य किया । ३५८२ में अर्थात आज से १००२ वर्ष पहले, ट्रायर के इस का पुत्र हर्ष था जिस ने कई दिन मात्र राज्य राज्य मत से १०३ ई. पूर्व अर्थात् आज से १९८६ वर्ष किया था । कनिघम के मत से हर्ष सन् १०८८ ई. में पहले, कनिंघम के मत से ईस्वी सन् ३१९ में अर्थात और बिल्सन के मत से १०५४ ई. में हुआ था । १५६४ वर्ष पहले, विल्सन के मत से १०४ ई. पूर्व यद्यपि राजतरंगिणीकार ने हर्ष को कवि लिखा है और अर्थात १९८७ वर्ष पहले, विल्फर्ड के मत से सन् ५४ बिहलण और बिल्लण कवि भी इसके समय में लिखे हैं किन्तु धावक का नाम तथा रत्नावली इत्यादि के बनने | ईश्वी में अर्थात १८२९ वर्ष पहले हुआ था । का प्रसंग कोई नहीं लिखा । राजतरंगिणीकार के मत जिन जिन संस्कृत नाटकों की स्थिति मुझको से हर्ष के समय अत्यन्त उपद्रव रहा । और चारों ओर | उपलब्ध हुई है उनकी एक तालिका प्रकाश की जाती भरतखण्ड के हेतु एक नई बात है सो नहीं, देखिए पूर्वकाल में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने अपने पुत्र साम्ब और श्रीप्रद्युम्न का और अपने छोटे भाई गद को एक बड़े समाज के साथ नाटक करने की आज्ञा दी थी और उन लोगों ने रामाभिनय नाटक किया था और इसी भाति से भरतखंड भूषण रूप से प्रचार था इसमें विशेष प्रणाण का कुद काम नहीं है, उस समय के शकुन्तला और रत्नावली इत्यादि नाटक अब भी प्रमाण आदर्शरूप से वर्तमान हैं और पढ़नेवालों को अपूर्व आनन्द देते हैं । अहा ! हे नाटकविरोधी मानवगण ! आप लोग अब चमत्कार कार्य में क्यों उत्साह नहीं बढ़ाते और इस आनन्दमय रस समुद्र में क्यों नहीं स्नान करते और बड़े-२ महात्मा और रसिक शिरोमणि दुष्यन्त युधिष्ठिर राम और वत्सराज ऐसे लोगों के साक्षात दर्शन और उनके गुण स्वभाव श्रवण की इच्छा क्यों नहीं करते ? इस हेतु अब यही हमारी प्रर्थना है कि आप लोग इस बात को सुनकर कान में रुई देके न बैठे जहाँ तक हो सके इस की उन्नति में प्रयत्न करें जिससे हमारे इस देशवासियों का उपकार हो। (१) पुरा कवीना' गणानाप्रसंगे कनिष्ठिकाधिष्ठित कालिदास : । अद्यपि तत्तुल्यकवेरभावात अनामिका सार्थवती बभूव ।।१।। (२)) भवभूते : संबंधात भूधरभूरेव भारती भाति । एतत्कृत कारूण्ये किमन्यथा रोदिति नावा ।।१।। (३) जाते जगति वाल्मीको कविरित्यभिधा भवत् । कवी इतिततोव्यासे कवयस्त्वयि दंडिनि ।।१।। प्रसिद्ध कवि कालिदास और दंडी स्पर्दिनी दो स्त्रियां भी कवि हुई थीं । यथा - 'नीलोत्पलदलश्यामा की विज्जिका मामजानता । वृथैव दंडिना प्रोक्तं सर्व शुक्ला सरस्वती ।' तथा सरस्वतीव कर्णाटी विजयांका जयत्यसौ। या वैदर्भगिरा वास : कालिदासादनन्तरम् ।।१।।' भास नामक कोई कवि नाटककार हुआ है किन्तु उस का नाटक प्रसिद्ध नहीं है। सूत्रधार कृतारम्भैर्नाटकेर्वहुभूमिकै : । सपताकैर्यशो लेभे मासो देव कुलैरिव ।। १ ।' भासोहास : कवि कुलगुरु:, कालिदासो विलास: ।।१।। 1) विक्रमादित्य के समय में इतिहास के देखने से अत्यन्त गोलमाल मालूम होती है । परन्तु जिस विक्रामादित्य का सम्बत् चलाया है वह १९ सौ से ऊपर हुए यह ठीक है परन्तु राजा शिवप्रसाद सितारेहिन्द ने भारतेन्दु समग्र ५७० es