पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६१६

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मृच्छकटिक * अनध्यराघव, (मुरारि) अंगदनाटक

पुष्पमाला. (राजशेखर) मुद्राराक्षस. (विशाखदत्त) उदात्तराघव वेणीसंहार,* (नारायण भट्ट) महारामायण, धनञ्जयविजय * (कांचन) हनुमन्नाष्टक (त्रावंकोरराज) (शूद्रक) मिलता । एक बड़ा विक्रम सन् ५०० और ६०० ईस्वी के बीच में महाराजाधिराज हुआ । मातृगुप्त को भेज के कश्मीर फतह किया । वहां का राजा तोरमान कैद हो गया लेकिन विक्रम के मरने पर और मातृगुप्त के काशीवास करनो को चले आने पर तोरमान के बेटे प्रवरसेन ने कश्मीर से निकल कर विक्रम के बेटे शिलादित्य को कैद कर लियाह और जिस तरह नादिरशाह दिल्ली से तख्लताऊस ले गया था विक्रम का बत्तीस पुतलियों वाला सिंहासन उठा ले गया । एक साहिब ऐसा भी अनुमान करते हैं कि यहां संवत गुप्तों के राज से चला था बीच में लुप्त हो गया था और फिर किसी गुप्त विक्रम ने जारी किया इसी से विक्रम का कहलाया । कौन जाने यही बड़ा विक्रम दूसरा चंद्रगुप्त विक्रम रहा हो । बराहमिहिर का समय सन् ५८७ ईस्वी ठीक निश्चय हो गया है वह इसी विक्रम के समय में हुआ जिसने सन् ५०० और ६०० के बीचमें राज किया और अमरसिंह कोशकर्ता और कालिदास कवि भी बराहमिहिर के साथ इसी विक्रम की सभा के रत्न थे । (एक पंडित मातृगुप्त ही को कालिदास ठहराते हैं। लेकिन सन् ईस्वी से कोई २६ बरस पहले यहां सिंघ मालवा इत्यादि देशों में तातारियों का राज हो गया था इनके सिक्कों से जो मिलते हैं मालूम होता है कि वह आग पूजते थे । क्योंकि उनके देवता अदेशो (Ardethro) अर्थात् अग्निदेव की जो उन पर तसवीर है उस के कंधों से अग्नि की शिखा निकल रही है और फिर पिछले सिक्कों पर शिव की मूर्ति भी त्रिशूल हाथ में लिये नंदी के सहारे से खड़ी है परंतु आख दो और सिर में अग्नि की शिखा प्रज्वालित । दूसरी ओर इन्ही सिक्का पर हलिओस (Helios) अर्थात हरि : अर्थात् सूरज, माओ (Mao) अर्थात् माह अर्थात् चाँद और नानाइया (Nanaia) अर्थात नानदेवी खुदा हुआ है। इसी नानदेवी को अब अफगानिस्तान वाले बीबी नानी कहते हैं । और याज्ञवल्क्य स्मृति में इन्हीं सिक्कों को नानक वा नाणक (इस दलील से यह ग्रंथ विक्रम से पीछे बना मालूम होता है) लिखा है। कनकी राजा का जो सिक्का मिला है उस पर बुद्धि की मूर्ति है लेकिन अग्नि की शिखा के साथ यह वहीं राजा है जिसे बौद्ध और ब्राहमणों ने कनिष्क (पिशावर के पास मनिकयाला का स्तूप इसी कनिष्क का बनवाया है । सन् ईस्वी से ३३ बरस पहले के रूमी सिक्के उस में से निकले हैं) लिखा है ! राजतगिणी में लिखा है कि कश्मीर में तीन राजा मुरुष्ण अर्थात तुर्क वंश के हुए और कनिष्क नागर बिहार स्तूप और विद्यालय बनाये बौद्ध मत को रौनक दी नागार्जुन तांत्रिक योगी जिसका नाम नागसेन भी लिखा है और विदर्भ में जनमा था उनका गुरु था । नागार्जुन के चेले माध्यनिक कहलाये । इस ने कश्मीर में बौदी का चौथा संघ अर्थात समाज किया । तातार से के य्यद्वीप (Java) तक बुद्ध का मत फैलाया । चीनवाले इन राजाओं को ऐसा जबर्दस्त लिखते हैं कि उन्होंने ओल में चीन से शाहजादे मंगाये थे ।जाड़े में हिन्दुस्तान में बहार में कंधार में, और गर्मी में काबुल के उत्तर कोहिस्तान में रहते थे । निदान इन तुरुष्कवंशी राजाओं ने बौद्ध शैव और अग्नि पूजन को खूब मिलाया मानों तीनों को एक मत कर डाला । गुप्तराजा - लेकिन सन १४४ ईस्वी से अर्थात बौद्ध शाजा मेघवाहन के मरने से बौनों का असली जोर घटने और ब्राहमणों का बढ़ने लगा था जब फाहियान आया गुप्तवंशी दूसरा चंद्रगुप्त विक्रम सारे भारतवर्ष का महाराजाधिराज था । यह शायद आखिरी बौद्ध चक्रवर्ती राजा हुआ वह समुद्रगुप्त पराक्रम का जिस का नाम सैदपुरभितरी और इलाहाबाद की लाटो पर खुदा है, बेटा था और उस के दादा पहले चंद्र के दादा । गुप्त से गुप्त संवत गिना जाता था (अभी हम लिख आये हैं कि "एक साहिब ऐसा भी अनुमान करते हैं कि यहां संवत गुप्तों के राज से चला था बीच में लुप्त हो गया था फिर किसी गुप्त विक्रम ने जारी किया इससे विक्रम का कहलाया' सो वह विक्रम यही दूसरा चन्द्रगुप्त हो सकता है । विक्रम अथवा विक्रमादित्य उस का खिताब था और इसी तरह शिलादित्य अवश्य उस के बेटे कुमार गुप्त महेन्द्र का खिताब रहा होगा इससे पहले कही विक्रम के नाम से किसी संवत का कुछ पता नहीं लगता है अबूरैहा लिखता है। oped col ,d , 2 babi bil 1,4) lego bailes usa job wis lali las sa Wala la spil Jo Hal I lot भारतेन्दु समग्र ५७२