पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६१७

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(मालमंगल) जमदग्न्यजय मालमंगलभाण समुद्रमंथन कलावतीकामरूप रिपुरदाह नग्नभूपतिग्रह नाटक सारदातिलक (शंकर) प्रियदर्शना ययातिचरित (रुद्रभट्ट यादवोदय ययातिविजय बालिबध ययातिशर्मिष्ठा अनेकमूर्त मृगांकलेखा (त्रिमल्लदेव के पुत्र मयपालिका विश्वनाथ क्रीड़ारसातल हास्यार्णव + कनकावतीमाधव महावीरचरित* (भवभूति), विन्दुमती उत्तररामचरित * केलिरैवतक रत्नावली * (श्रीहर्ष) कामदत्ता नागानन्द, सुदर्शनविजय विदग्धमाधवx (रूपगोस्वामि) वासन्तिकापरिणय राधामाधव चित्रयज्ञ पारिजातक कमलिनीकलहंस चूड़ामणि दीक्षित वृषभानुजानाटिका x तप्तीसवरण (त्रावंकोरराज) ऊषारागोदयx (वैद्यनाथ वाचस्पति भट्टाचार्य) (मथुरा दास कायस्थ) (रुद्रचन्द्रदेव) और वाड साहिब के वमूजिब सोमनाथ में एक पत्थर र संवत १३२० और बल्लभी ९५४ और हिजरी ६६२ लिखा हुआ मिला है पस मुतावकत बहुत अच्छी हो जाती है अर्थात ईस्वी सन ३१९ अर्थात गुप्त संवत ३७६ में कि विक्रम के संवत् के बराबर है गुजरात से गुप्तों के निकलने पर गुप्त संवत् लुप्त होकर बल्लभी का संवत शुरू हुआ । जब विक्रम ने गुप्त संवत् का उद्धार करके उसे फिर चलाया वह अर्थात गुप्त संवत् अर्थात विक्रम का चलाया संवत् १३२० बल्लभी संवत ९५४ के जैसा कि पत्थर पर लिखा है बराबर आया । इसी दूसरे चन्द्रगुप्त विक्रम के पोते स्कन्दगुप्त का कीर्तिस्तम्भ गोरखपुर के जिले में सीलमपुर मझौली के पास कुहाव गांव में अब तक मौजूद है । उसमें लिखा है कि एक सौ राजा उसके सामने सिर झुकाते थे । स्कन्दगुप्त के बाप कुमारगुप्त महेन्द्र की तसवीर जो उसके सिक्के पर है उस से जाहिर है कि वह थोड़ी मुहरी का पाजामा और बुटामदार कोट पहनता था । गुप्त राजाओं के सिक्कों पर अकसर शिव पार्वती नदी मयूर सिंह (मयूर कार्तिकेय का बाहन और सिह पार्वती का और नंदी शिव का यह तो हर कोई जानता है) इत्यादि का चिन्ह मिलता है। समुद्रगुप्त और स्कन्दगुप्त दोनों निश्चय वैदिक और शैव थे । सन् ३१९ ईस्वी में इन गुप्तों को सेन राजाओं ने गुजरात से निकाल दिया और अपनी राजधानी बल्लभी (कहते हैं कि बल्लभी का राज सन् २०० ईस्वी से कुछ पहले सूर्यवंशी कनकसेन ने अवध से जाकर जमाया था) का संवत् काइम किया । यह सेन भी बड़े नामी राजा हुए । निदान हवागत्सांग के समय तक अर्थात सन् ६०० ईस्वी से इधर तक बौद्धमत मध्यदेश में वना रहा, फिर घटते घटते ऐसा घटा कि सन् बारह तेरह सौ ईस्वी से भारतवर्ष में अब नाम को भी बाकी न रहा । हवांगसांग लिखता है कि बनारस में १०० शिवालय और १०००० शैव मौजूद थे और बिहार में कुल तीस और बौद्ध पांच हजार से भी कम रह गए थे । इस सन्देह नहीं कि कन्नौज के भवभूति ने सन् ७२० ईस्वी में मालतीमाधव नाटक बनाया है उस में लिखा है कि बिहार के राजा का लड़का माधव न्याय सीखने के लिये उज्जैन में एक बौद्ध गुरनी के पास गये और वहां मन्त्री की लड़की मालती भी पढ़ने को आती थी परन्तु दिल्ली में तोमर कन्नौज में राठौर महोबे में चदेल सब शैव और वैष्णव थे । बुद्ध ने चाहा था कि ज्ञान जो बुद्धि से परे और केवल अनुभवसिद्ध है और थोड़ों को ही प्राप्त हो सकता है सब दान दे और इन सब लोगों का हाल यह है कि मोटी बात चाहते हैं जो दिखलाई दे उसी की पूजा करते हो । निदार यहीं मूर्ति और प्रतिमापूजन की जड़ क हुई यहां तक कि स्तूप वृक्ष पशु राख हड्डी ईट पत्थर इत्यादि सब पूजने लगे। नाटक ५७३