पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६२०

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छापा!! अनेक प्रन्ध बने हैं क्योंकि वे ग्रन्थ बनानेवालों को | और धन्य गवर्नमेंट जिसने पढ़ने वाले की बुद्धि का पारितोषिक देते थे। इसी से रत्नावली भी हिन्दी में सत्यानाश करने को अनेक द्रव्य का श्राद्ध कर के इस को बनी (२५) और छपी हैं किन्तु इसकी ठीक वही दशा है जो पारसी नाटकों की है । काशी में पारसी नाटकवालों गवर्नमेंट की तो कृपादृष्टि चाहिए योग्यायोग्य के ने नाचघर में जब शकुन्तला नाटक खेला और उस में | विचार की आवश्यकता नहीं । फालेन साहब की धीरोदात्त नायक दुष्यन्त खेमटेवालियो की तरह कमर डिक्शनरी के हेतु आधे लाख रुपये से विशेष व्यय पर हाथ रख कर मटक मटक कर नाचने और पतरी किया गया तो यह कौन बड़ी बात है। 'सेत सेत सब कमर बलखाय यह गाने लगा और डाक्टर थिबो बाबू एक से, जहां कपूर कपास'.। यहां तो 'भेट भए जय प्रमदादास मित्र प्रभृति विद्वान यह कह कर उठ आए साहि सों 'भाग चाहियत माल' वाली बात है । किन्तु कि अब देखा नहीं जाता ये लोग कालिदास के गले पर ऐसी दशा में अच्छे लोगों का परिश्रम व्यर्थ हो जाता है छुरी फेर रहे हैं । यही दशा बुरे अनुवादों की भी होती क्योंकि 'आंधरे साहिब की सरकार कहां लौं करें है। बिना पूर्व कवि के हृदय से हृदय मिलाए अनुवाद चतुराई चितेरो' । करना शुद्ध झख मारना ही नहीं कवि की लोकान्तर यद्यपि हिन्दी भाषा में दस बीस नाटक बन गए हैं स्थित आत्मा को नरक कष्ट देना है। किन्तु हम यही कहेंगे कि अभी इस भाषा में नाटकों का इस रत्नावली की दुर्दशा के दो चार उदाहरण यहां बहुत ही अभाव है । आशा है कि काल की क्रमोन्नति दिखलाए जाते हैं । 'यथा तब यह प्रसंग हुआ कि के साथ ग्रन्थ भी बनते जायंगे । और अपनी सम्मति यौगन्धरायण प्रसन्न हो कर रंगभूमि में आया और यह शालिनी ज्ञान वृद्धा बड़ी बहन बंगभाषा के अक्षयरत्न बोला और गान कर कहता है कि अए मदनिके' अब मांडागार की सहायता से हिन्दी भाषा बड़ी उन्नति कहिए यह राम कहानी है कि नाटक ? और आनन्द सुनिए 'जो आज्ञा रानी जी की ऐसा कर यहां पर यह बात प्रकाश करने में भी हम को अतीव तैसा ही करती है हहाहाहा!!! आनन्द होता है कि लण्डन नगरस्थ श्रीयुत फ्रेडरिक 'एक आनन्द और सुनिए । नाटकों में कहीं कहीं पिनकाट साहब ने भी (२६) शकुन्तला का हिन्दी भाषा आता है 'नाट्ये नोपविश्य' अर्थात् पात्र बैठना नाट्य | में अनुवाद किया है । वह अपने २० मार्च के पत्र में करता है । उस का अनुवाद हुआ है 'राजा नाचता हुआ हिन्दी ही में मुझ को लिखते हैं 'उस पर भी मैं ने हिन्दी बैठता है' 'नाट्ये नोल्लिख्य' की दुर्दशा हुई है 'ऐसे भाषा के सिखलाने के लिए कई एक पोथिया बनाई है नाचते हुई लिखती है। ऐसे ही 'लेखनी को लेकर उनमें से हिन्दी भाषा में शकुंतला नाटक एक है ।' नाचती हुई' निकट बैठ कर नाचती हुई। ।। हिन्दी भाषा में जो सबसे पहला नाटक खेला गया और आनन्द सुनिए 'इतिविष्कम्भक :' का अनुवाद | वह जानकीमंगल था । स्वर्गवासी मित्रवर बाबू ऐश्वर्य हुआ है 'पीछे विष्कम्भक आया' धन्य अनुवादकर्ता ! | नारायण सिंह के प्रयत्न से चैत्र शुक्ल ११ संवत करे। आसुतोस ऐसे आसु तोसत सबन तुम याही ते जगत नीलकंठ बने बाके हौ । बासत अनेक खल सर्पन सदर्प तुम वलम मयूर सुख पूरक प्रजा के हो ।।१।। (१) इस को बरेली कौलेज के संस्कृत प्रोफेसर पण्डित देवदत्त तिवारी ने उल्या किया है । वह महाशय देवकोश अर्थात् अमर कोश भाषा-विवरण सहित के कर्ता मी है: देखि भूमि हरित अधिक हरखात गात ईस कृपा चल सो विसेस सुख छाके हौ । सवै तुम्है मोर कहै सहज सनेह बस प्रजा दुख दलन सहा दग ताके हो।। (२) इन से मुझे संस्कृत, नागरी की उन्नति होने की अधिक आशा है क्योंकि इन्होंने संस्कृत हिन्दी के अनेक ग्रंथ पुराचीन और नवीन संग्रह किए हैं और तन मन धन से संस्कृत हिंदी की उन्नति चाहते हैं । मैं। हिन्दी का यह सौभाग्य समझता हूं । ऐसे सहायक मित्र मिलने से हिन्दी रसिकों को भी अभिमान होना चाहिये । ये उन पुराचीन ग्रन्थों के प्रकाश के लिये यत्न कर रहे हैं जो अब तक प्रकाश न हुए है । इन के कई कपत्रों का संग्रह हिन्दी भाषा में है देखिये । भारतेन्दु समग्र ५७६ SKS