पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६२२

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और डायोनिसस (१) नामक देवता के मेले में नाटक इस विद्या की उन्नति हुई थी किन्तु सेतीका नामक प्राय : खेले जाते थे । अनुमान होता है कि वैक्सस नाटक के अतिरिक्त और किसी ग्रन्थ का नाम तक (२) नामक देवता की पूजा से वहां इन का चलन हुआ कहीं नहीं मिला । रोम के बड़े बड़े महलों और वीरों के प्राचीन काल से यूरोप के नाटक संयोगान्त और | साथ वहां की विद्या और कला भी धूल में मिल गई, वियोगान्त इन दो भागों में बंटे है । आरिअन नामक यहां तक कि उन का नाम लेनेवाला भी कोई न बचा । कवि ने ५८० वर्ष ईसा के पूर्व वियोगान्त नाटक की जब रोम में क्रिस्तानी मत फैला तो ऐसे नाटक वा खेल सृष्टि की ट्रैजिडी (Tragedy) शब्द बकरे से निकला राजनियम के अनुसार निषेध कर दिए गए । केवल है जिस से अनुमान होता है कि बैक्सस देवता के सामने | पिता पुत्र एपोलीनारी और ग्रेगरी ने इंजील से कथा भाग बकरे का बलि दिया जाता था और उसी समय पहिले लेकर क्रिस्तानों का जी बहलाने को कुछ सवांग यह खेल आरम्भ हुआ इस से वियोगान्त नाटक की | इत्यादि बनाए थे । संज्ञा ट्रैजिड़ी हुई । (Comedy) कामेडी ग्राम शब्द से योरोप में इटलीवालों ने पहले पहल ठीक तरह से निकला है अर्थात ग्राम्यसुखों का जिन में वर्णन हो वह कामेडी (संयोगान्त) है । थेसपिस ने (५३६ ई. पू.) नाटक के प्रचार में उद्योग किया और रोमवालें के चित्त में फिर से मुरझाए हुए इस बीज को हरा किया । प्रथ रंगशाला में एक शिष्य का वेष देकर मनुष्यों को सोलहवीं शताब्दी में ट्रसनो कवि का सोफोनिस्वा सम्वाद पढ़वाया और उसी पात्र को प्रिनिशश ने ५१२ ई. पू. पहले पहल स्त्री का वेष देकर रंगाशाला में सब | आरिआस्टोबिना और मैशियाविली ने ट्रिसीनो की नामक वियोगान्त नाटक पहले पहल छापा गया । को दिखलाया । इस के पीछे इशिलश के काल तक वियोगान्त नाटकों में फिर काई नई उन्नति नहीं हुई । भांति और कई नाटक लिखे । इसी शताब्दी के अंत में गिएम्बाटिस्टालिआपोर्टी ने प्रहसन पहले पहत प्रकाश आरिअन ही के समय में वरन् उसी के लाग पर किया और इस में परिहास की बातें ऐसी सुसभ्यता से सुसेरियन ने संयोगान्त नाटकों का प्रचार सारे यूनान में वर्णन की कि लोगों ने नाटक की इस शैली को बहुत ही फिर फिर कर किया और एक छोटी सी चलती फिरती प्रसन्नता से स्वीकार किया । इसी समय में हिशी, रंगशाला भी उन के साथ थी । उस काल के ये नाटक बोरगिनी, ओडो और बुओनाटोरी ने जातीय स्नेह अब के बंगाली यात्रा वा रास के से होते थे। उस समय बढ़ानेवाले बीररसाश्रित इतिहास के खेल लिखे और में वियोगान्त नाटक गम्भीराशय और विशेष चित्ताकर्षक प्रचार किए । सतरहवीं शताब्दी में रिनुशिनी ने होने के कारण सभ्य लोगों में और संयोगान्त ग्राम्य पहले पहल आपेरा (संगीत नाट्य) का आरम्भ किया । लोगों में खेले जाते थे । एपिकार्मस, फार्मस, मैग्नेस, इस में उस ने ऐसे उत्तम रीति से प्रेम, देशस्नेह, वीर क्रेट्स. क्रेटनस यूपोलिस, यूफेटिकट्स और एलिस्टेफेन्स ये सब उस काल के प्रसिद्ध कामेडी | और करुण रस के गीत बांधे कि सब लोग और नाटको को भूल कर इसी की ओर मुके । मैकी नामक कवि ने लेखक थे । बीच में लोगों ने संयोग वियोग मिला कर इस को और भी उन्नति की । अब स्पेन फरासीस चारों भी पुस्तकें लिख कर इस विद्या की उन्नति की । ओर इसी गीतिनाट्य का चर्चा फैल गया । इस के पीछे वियोगांत नाटक में इशिलस सोफाकोलस और जीनो, मेटैस्टेसिओ, गोलडोनी, मोलिएर, रिशोबिनी, यूरूपिडीस ये तीन बड़े दक्ष हुए । इन कवियों ने स्वयं पात्रों को अभिनय करना सिखाया और स्वाभाविक गोज्जी, गालडोनी, आलफीरो, माटी, मानजानी और निकोलिनी इत्यादि प्रसिद्ध कवियों ने पूर्वोक्त नाटकों भावभंगी दिखलाने में विशेष परिश्रम किया । अरस्तु के ऐसी उत्तमता से ग्रन्थ लिखे और नाट्य में ऐसी ने इन्हीं तीनों कवियों की अपने ग्रन्थ में बड़ाई की है। उन्नति की कि इटली इस विद्या में सारे योरप की गुरु रोमवाले नाटकविद्या में ऐसे दक्ष नहीं थे। इन मानी गई । लोगों ने यूनान वालों ही से इस विद्या का स्वाद पाया । शोक का विषय है कि प्लाटस और टेरेन्स के योरोप के और देशों में नाटकों के प्रचार को अतिरिक्त इन कवियों में से किसी का न नाम मालूम पादरियों ने बहुत रोका । जहां कोई नाटक खेलता ये है न कोई ग्रन्थ मिला । आगष्टस के प्रसिद्ध समय में | पादरी उस को धर्म दण्ड देने को दौड़ते । विलेना, (१) यह युद्ध का देवता था । (२) यह मय का देवता है। प्रिन्सिप साहब कहते है कि यह बलराम है।

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भारतेन्दु समग्न ५७८