पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६२९

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वैश्यवंशावतंसाय भगवते श्रीकृष्णचन्द्राय नमः नंद-नंद ।।१।। भुजा अगरवालों की उत्पत्ति दोहा विमल वैश्य वंशावली. कुमुदबनी हित चंद। जयजय गोकुल, गोप, गो. गोपी-पति भगवान ने अपने मुख से ब्राह्मण और से क्षत्री और जाँघ से वैश्य और चरण से शूद्रों को बनाया । उसमें वैश्य को चार कर्म का अधिकार दिया -पहिला खेती, दसरा गऊ की रक्षा, तीसरा व्यापार और चौथा ब्याज । जैसे वेद और यज्ञादिक का स्वामी ब्राहमण और राज्य और युद्ध का स्वामी क्षत्री बैसे ही धन का स्वामी वैश्य है और ब्राह्मण-क्षत्री-वैश्य इन तीनों की द्विज संज्ञा है और तीनों वर्ण बेद-कर्म के अधिकारी है । पहिला मनुष्य जो वैश्यों में हुआ उसका नाम धनपाल था, जिसे ब्राह्मणों ने प्रतापनगर में राज पर बिठाकर धन का अधिकारी बनाया । उसके यहाँ आठ पुत्र और एक कन्या हुई । उस कन्या का नाम मुकुटा था और वह याज्ञवल्क्य ऋषि से व्याही गई । उन आठ पुत्रों के ये नाम थे – शिव, नल, अनिल, नंद, कुंद, मुकुंद, बल्लभ और शेखर । इन पुत्रों को अश्वविद्या शालिहोत्र के आचार्य विशाल राजा ने अपनी आठ बेटियाँ व्याह दी थी। उन कन्या लोगों के ये नाम थे और यही वैश्य लोगों की मात्रिका हैं - पद्मावती, मालती, कांती, शुभ्रा, भव्या, भवा, रजा और सुंदरी । इनका ब्याह नाम के क्रम से हुआ । इन आठ पुत्रों में नल नामा पुत्र जोगी दिगंबर होकर बन में चला गया और सात पुत्रों ने सात द्वीप का अधिकार पाया । और पृथ्वी में इनका वंश फैल गया । जंबू द्वीप में विश्य नामा राजा हुआ आठ पुत्रों में शिव के कुल में था और उस विश्य को वैश्य हुआ । उसके वंश में एक सुदर्शन राजा हुआ, जिस के दो स्त्रियाँ थीं जिन के नाम सेवती और नलिनी थे । उस का पुत्र धुरंधर हुआ । इसी धुरंधर का पड़पोता समाधि नामा वैश्य हुआ था । इसी समाधि के वंश में मोहन दास बड़ा प्रसिद्ध हुआ, जिस ने कावेरी के तट पर श्रीरंगनाथ जी के बहुत से मंदिर बनाए । इस का पड़पोता नेमिनाथ हुआ, जिसने नेपाल बसाया और उस का पुत्र बंद हुआ, जिसने श्री वृन्दावन में यज्ञ करके वृंदा देवी की मूर्ति स्थापन किया । इस वंश में गुर्जर बहुत प्रसिद्ध हुआ, जिस के नाम से गुजरात का देश बसा है । इसके वश में हीर नामा एक राजा हुआ, जिस के रंग इत्यादिक सौ पुत्र थे, जिन में रंग ने तो राज पाया और सब बुरे कर्मों से शूद्र हो गए और तप के बल से फिर इन लोगों के वंश चलाये, जिन के वंश के लोग वैश्य हुए पर उनके कर्म शूद्रों के से थे । रंग का पुत्र विशोक हुआ, उसके पुत्र का नाम मधु और उसका पुत्र महीधर हुआ । महीधर ने श्री महादेव जी को प्रसन्न करके बहुत से बर पाये । इसके वंश में सब लोग ब्यौहार में चतुर और सब धन और पुत्र से सुखी थे। इसी वंश में वल्लभ नामा एक राजा हुए और उस के घर में बड़े प्रतापी अग्र राजा उत्पन्न हुए । इसको अग्रनाथ और अग्रसेन भी कहते थे। यह बड़ा प्रतापी था । इसने दक्षिण देश में प्रतापनगर को अपनी राजधानी बनाया । यह नगर धन और रत्न और गऊ से पूर्ण था । यह ऐसा प्रतापी था कि इंद्र ने भी उससे मित्रता की थी । एक समय नाग लोक से नागों का कुमुद नाम राजा अपनी माधवी कन्या को लेकर भूलोक में आया और उस कन्या को देखकर इंद्र मोहित हो गया और नागराज से वह कन्या मांगी । पर नागराज ने इंद्र को वह कन्या नहीं दी और उसका विवाह राजा अग्र से कर दिया । यही माधवी कन्या सब अगरवालों की जननी है और इसी नाते हम लोग सो को अब तक मामा कहते है। इंद्र ने इस बात से बड़ा क्रोध किया और राजा अग्र से बैर मान कर कई बरस उनकी राजधानी पर जल नहीं बरसाया और अनराजा से बडा युद्ध किया, तब भगवान ब्रह्मदेव ने दोनों को युद्ध से रोका । इससे राजा अगरवालों की उत्पत्ति ५८५