पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३०

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अपनी राजधानी में फिर आया और राज अपनी स्त्री को सौंप के आप तीर्थों में घूमने चला गया और सब तीर्थों में फिर कर महालक्ष्मी की उपासना किया और काशी में आकर कपिलधारा तीर्थ पर महादेव जी का बड़ा यज्ञ करके बहुत सा दान किया, तब श्री महादेवजी प्रसन्न होकर प्रगट हुए और कहा कि वर मांगो तब राजा ने कहा कि मैं केवला यही वर मांगता हूँ कि इंद्र मेरे वश में होय । इसपर प्रसन्न होकर अनेक वर दिये और कहा कि तुम महालक्ष्मी की उपासना करो तुम्हारी सब इच्छा पूरी होगी । यह सुन कर राजा फिर तीर्थ में चला और एक प्रेत की सहायता से हरिद्वार पहुंचा और वहाँ से गर्गमुनि के संग सब तीर्थों में फिरा और जब फिर हरिद्वार में आया तब वहाँ महालक्ष्मी की बड़ी उपासना किया और देवी ने प्रसन्न होकर वर दिया कि इंद्र तेरे वश में होगा और तेरे वंश में दु:खी कोई न होगा और अंत में तुम दोनों स्त्री पुरुष ध्रुवतारा के आसपास रहोगे और इस समय तुम कोलापुर में जाओ, वहाँ नागराज के अवतार राजा महीधर की कन्याओं का स्वयंवर है वहाँ उन कन्याओं से ब्याह करके अपना वंश चलाओ । देवी से ये वर पाकर राजा कोलापुर में गया और वहाँ उन कन्याओं से धूमधाम से ब्याह किया और फिर कर दिल्ली के पास के देशों में आया और पंजाब के सिरे से आगरे तक अपना राज स्थापन किया और इन्हीं देशों में अपना वंश फैलाया । जब इंद्र ने राजा के वर का समाचार सुना तब तो घबड़ाया और उससे मित्रता करनी चाही । और इस बात के हेतु नारद जी को भेजा और एक अप्सरा जिसका नाम मधुशालिनी था देकर मेल कर लिया । इसके पीछे राजा अग्रसेन ने जमुना जी के तट पर श्री महालक्ष्मी का बड़ा तप किया और श्रीलक्ष्मीजी ने प्रसन्न होकर ये वर दिये कि आज से यह वंश तेरे नाम से होगा और तेरे कुल की मैं रक्षा करने वाली और कुलदेवी हूँगी और इस कुल में मेरा दीवाली का उत्सव सब लोग मानेंगे । यह वर देकर श्री महालक्ष्मी चली गई। तब राजा ने आकर अपना राज बसाया । उस राज की उत्तर सीमा हिमालय पर्वत और पंजाब की नदियाँ थीं और पूर्व और दक्षिण की सीमा : श्रीगंगाजी और पश्चिम को सीमा जमुनाजी से लेकर मारवाड़ देश के पास के देश थे । इनके वंश के लोग सर्वदा इन्हीं देशों में बसे । इससे मुख्य अगरवाले लोग वेही हैं जो पंजाब प्रांत से इधर मेरट-आगरे तक के बसने वाले हैं । अगरवालों के मुख्य बसने के नगर ये हैं १-आगरा, जिसका शुद्ध नाम अग्रपुर है । यह नगर राजा अग्न के पूर्व-दक्षिण प्रदेश की राजधानी था । २-दिल्ली, जिसका शुद्ध नाम इंद्रप्रस्थ है । ३-गुड़गाँवा, जिसका शुद्र नाम गौड़ ग्राम है । यह नगर अगरवालों के पुरोहित गौड़ ब्राह्मणों को मिला था, इसी से प्राय : अगरवाले लोग यहां की माता को पूजते हैं । ४-मेरट, जिसका शुद्ध नाम महाराष्ट्र है । ५-रोहतक, जिसका शुद्ध नाम रोहिताश्व है। - हाँसीहिसार, जिसका शुद्ध नाम हिसार देश है । ७-पानीपत, जिसका शुद्ध नाम पुन्यपत्तन जाना जाता है। - करनाल । ९-कोट काँगड़ा, जिसका शुद्ध नाम नगर कोट है । अगरवालों की कुलदेवी महामाया का मंदिर यहीं है और ज्वाला जी का मंदिर भी इसी नगर की सीमा में है । १०-लाहौर, इस नगर का शुद्ध नाम लवकोट है ! ११-मंडी इसी नगर की सीमा में रैवालसर तीर्थ है । १२-बिलासपुर, इसी नगर की सीमा में नयना देवी का मंदिर बसा है । १३-गढ़वाल । १४-जींदसपीदम । १५-नाभा । १६-नारनौल, इसका शुद्ध नाम नारिनवल है । ये सब नगर उस राज में थे और राजधानी का नाम अग्र नगर था. जिसे अब अगरोहा कहते हैं । आगरा और अगरोहा ये दोनों नगर राजा अग्रसेन के नाम से आज तक प्रसिद्ध हैं । राजा अग्रसेन ने अपनी राजधानी में महालक्षमी का एक बड़ा मंदिर किया था । राजा अग्रसेन ने साढ़े सत्रह यज्ञ किये ! इसका कारण यह है कि जब राजा ने अट्ठारवाँ यज्ञ आरंभ किया और आधा हो भी चुका तब राजा को यज्ञ की हिंसा से बड़ी ग्लानि हुई और कहा कि हमारे कुल में यद्यपि कहीं भी कोई मांस नहीं खाता परंतु दैवी हिंसा होती है. सो आज से जो मेरे वंश में हो उसको यह मेरी आन है कि दैवी हिंसा भी न करे अर्थात् पशु-यज्ञ और बलिदान भी हमारे वंश में न होवै और इससे राजा ने उस यज्ञ को भी पूरा नहीं किया । राजा को सत्रह रानी और एक उपरानी थीं । उनसे एक एक को तीन तीन पुत्र और एक एक कन्या हुई और उसी साढ़े सत्रह यज्ञ से साढ़े सत्रह गोत्र हुए । कोई लोग ऐसा भी कहते हैं कि किसी का ब्याह जब गोत्र में हो गया तो बड़े लोगों ने एकही गोत्र के दो भाग कर दिये, इससे साढ़े सत्रह गोत्र हुए पर यह मनुष्य १. इसको कोई मयराष्ट्र मी कहते है। २. अब यह एक गांव सा बच गया है। भारतेन्दु समग्न ५८६