पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३१

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बात प्रमाण के योग्य नहीं है । राजा अग्र के उन बहत्तर पुत्र और कन्याओं के बेटा अग्रवाल कहाए । अग्रवाल का अर्थ अग्र के बालक है । अग्रवालों के साढे सत्रह गोत्रों के ये नाम हैं -१ गर्ग, २ गोइल, ३ गावाल, ४ बातसिल, ५ कासिल, ६ सिंहल, ७ मंगल, ८ भद्दल, ९ तिंगल, १० ऐरण, ११ टैरण, १२ ठिंगल. १३ तित्तल, १४ मित्तल, १५ तुदल, १६ तायल, १७ गोभिल, और गवन अर्थात गोइन आधा गोत्र है, पर अब नामों में के कुछ अक्षर उलट पुलट भी हो गए हैं । राजा अग्र ने अपने सहायक गर्ग ऋषि के नाम से अपना प्रथम गोत्र किया और दूसरे गोत्रों के नाम भी यज्ञों के अनुसार रक्खे । राजा अग्न ने अपने कुल पुरोहित गौड़ ब्राह्मण बनाए और उस काल में सब अगरवाले वेद पढ़नेवाले और त्रिकाल साधनेवाले थे । राजा अग्र बूढ़ा होकर तप करने चला गया और उसका पुत्र विभु राज पर बैठा और उसके कई वंश तक राजा लोग अपने धर्म में निष्ठ होकर राज करते रहे । इस वंश में दिवाकर एक राजा हुआ, जो वेदधर्म छोड़कर जैनी हो गया और उसने बहुत से लोगों को बैनी किया और उसी काल से अगरवालों में वेदधर्म छूटने लगा परंतु अगरोहा और दिल्ली के अगरवालों ने अपना धर्म नहीं छोड़ा । इस वंश में राजा उग्रचंद्र के समय से राज घटने लगा और जब शहाबुद्दीन ने चढ़ाई किया तब तो अगरोहा सब भाँति नाश कर दिया । शहाबुद्दीन की लड़ाई में बहुत से लोग मारे गए और उनकी बहुतसी स्त्री सती हुई, जो हम लोगों के घर में अब तक मानी और पूजी जाती हैं । यह अगरवालों के नाश का ठीक समय था । इसी समय से इन में से बहुतों ने धर्म छोड़ दिये और यज्ञोपवीत तोड़ डाले । उस समय जो अगरवाले भागे वे मारवाड़ और पूर्व में जा बसे और उनके वंश में पुरबिये और मारवाड़ी अगरवाले हुए, और उतराधी और दखिनाधी लोग भी इसी भाँति हुए, पर मुख्य अगरवाले पछाही वेही कहलाए जो दिल्ली प्रांत में बच गए थे । जब मुगलों का राज हुआ तब अगरवालों की फिर बढ़ती हुई और अकबर ने तो अगरवालों को अपना वजीर बनाया । उसी काल से अगरवालों की विशेष वृद्धि हुई । अकबर के दो मुख्य और प्रसिद्ध अगरवाले वजीर थे, जिन का नाम महाराज टोडरमल और मधूशाह था । मधूसाही पैसा इन्हीं के नाम से चला है। अगरवालों की उत्पत्ति ५८७ 40