पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३२

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अमैंने चरितावली अर्थात् अनेक प्रसिद्ध पुरुषों का जीवन चरित यह सन् १८७१ से १८८० के बीच लिखे इतिहास और पुराण पुरुषों के जीवन चरित्रों का संग्रह है। जो अलग-अलग पत्रिकाओं में छप चुकी है। इस संग्रह में उन व्यक्तियों का जीवन चरित्र है जिन्होंने धर्म, साहित्य, राजनीति आदि के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया है। इसमें कुछ महान लोगों की कुण्डलियां भी हैं। सं. चरितावली १- विक्रम इस के पूर्व कि हम विक्रमादित्य का कुछ चरित्र लिखें हम को श्री मबुहलर साहब का धन्यवाद करना चाहिए जिन्होंने विक्रमांक-चरित्र नाम ग्रंथ खोज कर प्रकाश किया । यह श्रीहर्षचरित्र के चाल का एक दूसरा ग्रथ है, जो अब प्रकाश हुआ । यह ग्रंथ विलहण कवि का है और अनेक छंदों में अठारह सर्ग में लिखा हुआ है । इसके सत्रह सर्गों में विक्रमादित्य का चरित्र और अठारहवें सर्ग में कवि ने अपना वर्णन किया है । प्रसिद्ध है कि चौरपंचाशिका इसी विलहण की बनाई हुई है । कहते हैं कि गुजरात के राजा बैरीसिंह की बेटी चन्द्रलेखा वा शशिकला को विलहण पढ़ाता था और उस ने उससे गंधर्व विवाह भी किया था । जब राजा ने इस बात से ऋद होकर विलहण को फाँसी की आला दिया, रास्ते में इस ने चौरपंचाशिका बनाई, जिससे प्रसन्न होकर राजा ने फाँसी के बदले अपनी कन्या की बाँह उसके गले में डाली । इन कथाओं पर हमारा कुछ ऐसा विश्वास नहीं. क्योकि इस ग्रंथ में विलहण ने इन बातों को कहीं चर्चा नहीं की है । विल्हण अपना हाल यो लिखता कश्मीर के देश में जिहलम और सिंध के मुहाने पर प्रवर पुर नाम का बड़ा सुंदर नगर था । अनंत देव वहाँ का बड़ा प्रतापी और धार्मिक राजा था. जिसकी रानी का नाम सुभटा था । उस रानी का भाई क्षितिपति भोज के समान कवियों का गुण ग्राहक और बड़ा विष्णुभक्त था । अनंत का बेटा कलश हुआ और कलश के पुत्र हर्षदेव और विजयमल्ल थे । प्रवरपुर के पास ही विजयवन में खीनमुख नाम का एक गाँव था. जहाँ कुशिक गोत्र के ब्राह्मण बसते थे, जिनको गोपादित्य मध्य देश से बड़े आदर से लाया था । उन ब्राह्मणो में मुक्तिकलश सब से मुख्य था और उस को राज्य कलश और राज्य कलश को ज्येष्ठ कलश पुत्र हुआ । ज्येष्ठ कलश को इष्टराम, विल्हण, आनंद तीन पुत्र थे । बिल्हण व्याकरण और काव्य अच्छी तरह पढ़ा था और श्री वृन्दावन में बहुत दिन तक उस ने काल बिताया और फिर कन्नौज, प्रयाग, बनारस और अयोध्या में फिरता रहा और फिर कुछ दिन दाहाल के राज्य में, कुछ दिन धार में और कुछ दिन गुजरात में रहकर अपनी कविता से लोगों को प्रसन्न करता रहा । जब यह दक्षिण में चोल देश में गया. तो वहाँ के राजा से इसको विद्यापति की पदवी मिली । उस की भारतेन्दु समग्र ५५८