पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३४

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मालव की राजधानी धारानगरी पर चढ़ाई किया । करनाटक, कुंतल और डाहल देश में इसका निज राज्य था, पर चोल, केरल और द्रविण देश इसने जीत के अपने राज्य में मिला लिया था । विल्हण लिखता है कि अद्भुत कथा और दश रूप काव्य में इस राजा का बहुत सा वर्णन है । इस को पुत्र नहीं होता था इस से इसने महादेव जी की घर ही में बड़ी आराधना की और काल पाकर सोमदेव, विक्रमादित्य और जय सिंह तीन पुत्र हुए । विक्रम के शरीर में छोटेपन ही से शूरता इत्यादिक उत्तम गुण झलकते थे । जब यह जवान हुआ. तो पहिले इस ने बंगाले पर चढ़ाव किया और कामरूप जीता । समुद्रपार होकर सिंहल पर इसने चढ़ाव किया और द्राविड़ और चोलों की राजधानी कांची तीन बेर लूटा । जब वह सिंहल जीत कर लौटा, तो गोदावरी के पास सुना कि तुंगभद्रा के किनारे पिता ने देह त्याग किया । यह उसी समय घर गया और इस का बड़ा भाई सोमदेव राजा हुआ । विल्हण लिखता है कि सोमदेव बड़ा मदोन्मत्त हो गया था और इन्दुमित्र नामक एक बुरा राजा उस को सहायता को मिल गया, इस से विक्रम ने इसका संग छोड़ा । इसी को चालुक्य कहते हैं । दिया हौर कोंकण का राजा जयकेश इससे मिलकर दक्षिण में बहुत से देश चीते और अपना अपना अलग राज स्थापन किया । उस समय इस का छोटा भाई जयसिंह भी इस के साथ था । द्रविण देश के राजा ने अपनी कन्या देकर इस से मैत्री की और जब वह राजा मर गया तो विक्रम ने उसके बेटे अर्थात अपने साले को बड़े धूमधाम से गद्दी पर बैठाया । और फिर गांगकुंडपुर होता हुआ तुंगभद्रा के किनारे आकर रहा । जब चेंगों के राजा राजिक ने इस के साले को जीत लिया था तब यह बड़ी धूमधाम से उस से लड़ने को गया था । कहते हैं कि राजिक इस के बड़े भाई सोमदेव का मित्र था. से राजिक की ओर से सोमदेव भी लड़ने को आया था । यह लड़ाई बड़ी तैयारी से हुई और सोमदेव अंत में पकड़ा गया । राजिक भागा और विक्रमादित्य अपने बाप की गद्दी पर बैठा । काहाट के राजा की कन्या ने स्वयंवर किया था, जिस में विक्रमादित्य भी गया था । विल्हण ने यहां पर राजाओं के स्वाभाविक अभिमान और काम की चेष्टा के वर्णन में बहुत ही अच्छी स्वभावोक्ति दिखाई है और 'पारसीक तैल' के नाम से आतिशबाजी के भाति की किसी वस्तु का वर्णन किया है । स्वयंवर में विल्हण ने नीचे लिखे हए राजाओं का वर्णन किया है, जिस से प्रगट होता है कि इतने राजा उस समय अलग अलग वर्तमान और अच्छी दशा में थे, यथा अयोध्या, चंदेरी, कान्यकुञ्ज (अर्जुन के कुल का राजा). चंबल के तट का देश कालिंजर, गोपाचल, मालव. गुजरात, मंदराचल के समीप का पांड्यदेश और चोल । कन्या ने जयमाल विक्रमादित्य के गले में डाली और धूमधाम से इस का विवाह हुआ । इस राजा के बहुत से ऐश्वर्य और बिहार वर्णन के पीछे विल्हण लिखता है कि एक दिन विक्रम ने दूत के मुख से सुना कि उसका छोटा भाई बागी हो गया है और चेगों जीतने के पीछे विक्रम ने जो उसे देश और सेना दी थी उस पर संतोष न करके बहुत से सिपाही नौकर रख के सारे दक्षिण में लूट मार करता फिरता है और द्रविड़ के राजा (शायद विक्रम का साला) ने उसे बहुत ही बहकाया है और छोटे-छोटे बहुत से उपद्रवी राजा उससे मिल गए हैं । यह सुन कर बहुत पछताया और सेना लेकर बाहर निकला । जब भाई की सेना के पास इसका डेरा पहुँचा. तो उसने दूतों के और पत्रों के द्वारा उस को बहुत समझाया, पर वह न माना और अंत में विक्रम से हारकर कही दूर जा रहा । विक्रम फिर सुख से राज्य करने लगा । एक बेर कांची पर फिर चढा था क्योंकि वहां का राजा इस से फिर गया था । कवि ने विक्रम के स्वाभाविक बहुत से गुण लिखे हैं, जिन में उदारता का बहुत ही सविशेष वर्णन है। इस ने इक्यावन वर्ष राज्य किया था। ऊपर के लिखे अनुसार लोगों को विक्रम का जीवनवृत्त विदित होगा । कवि ने उस में जो जो सद्गुण लिखे हैं वह उस में रहे हो, पर अपने दो भाइयों को उस ने जीता और बड़े भाई को कैद करके आप गद्दी पर बैठा, इस से उसके चरित्र में हम को थोड़ा संदेह होता है । क्योंकि जब उसके बड़े भाई के जीतने का कवि वर्णन करेगा, तो उस दोष के छिपाने के वास्ते उस के उस भाई को बुरा लिखें. इस में क्या संदेह है । जो कुछ हो, विक्रम एक बड़ा राजा और गुणग्राही मनुष्य हो गया है और यह पंडितो के आदर का ही फल है कि उस का संपूर्ण वर्णन आज हम पाठकों को सुनाते हैं। कालिदास का जीवनचरित्र यह सब वार्ता केवल बगदेशियों की है । पश्चिम प्रदेशीय पडित लोग भारतवर्षीय कवियों में कालिदास को सर्वोच्चासन देते हैं । बबई के प्रसिद्ध पडित भाऊदाजी ने केवल कालिदास की कविता ही नही पढ़ी वरन भारतेन्दु समग्र ५९०