पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६३६

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दिया कि "मान्धाता, जो भोज क्या, एक समय नृप कुल का शिरोमणि था अब परलोक में है । रावणारि रामचंद्र जिन्होंने समुद्र में सेतु बांधा था वह कहाँ हैं ? और बहुत से महोदय गण और राजा युधिष्ठिर ने स्वर्गारोहण किया है, परंतु पृथ्वी उन के साथ नहीं गई । पर आप के साथ पृथ्वी अवश्य रसातल को जायगी ।" इस पत्र के पढ़ते ही मुंज का शरीर रोमांचित हुआ और भोज के लिये अत्यंत व्याकुल हुए । परंतु जब उन्होंने सुना कि भोज जीता है, तो उन को वत्सराज से शीघ्र बुलवा कर धारानगर के राज सिंहासन पर बैठाया और आप ईश्वराराधन के निमित्त अरण्य में प्रवेश किया । भोज ने पितृसिंहासन पा के बहुत से पंडितों को अपनी सभा में बुलाया । हम को भोज प्रबंध में कालिदास के सहित नीचे लिखे पंडितों के नाम मिलें कपूर, कलिंग, कामदेव, कोकिल, श्रीदचन्द्र, गोपालदेव, जयदेव, तारेचंद्र, दामोदर, सामनाथ, धनपाल, वाण, भवभूति, भास्कर, मयूर, मल्लिनाथ, महेश्वर, माघ, मुचकुंद, रामचंद्र, रामेश्वर, भक्त, हरिवंश, विद्याविनोद, विश्ववसु, विष्णुकवि, शंकर, सामदेव, शुक, सीता, सोम, सुबंधु इत्यादि । सीता अवश्य किसी स्त्री का नाम है और इसी से बोध होता है कि स्त्रीशिक्षा उस समय प्रचलित थी । तो हम नहीं समझते कि हम लोगों के स्वदेशीय अब इस को क्यों बुरा समझ के अपने देश की उन्नति नहीं होने देते । देखिये, अमेरिका में स्त्रीशिक्षा कैसी प्रचलित है और जो लोग एक समय अत्यंत मूर्ख अवस्था में थे अब यूरप के लोगों को भी दबा लिया चाहते हैं, तो यह देखकर हे हिंदुस्तानियो ! क्या तुम को थोड़ी भी लज्जा नहीं आती? पण्डित शेषगिरि शास्त्री ने लिखा है कि बल्लालसेन ने १२० ईस्वी में भोजप्रबंध बनाया । इस से बोध होता है कि वे भोजराज के विद्योत्साही और उनके समान के वृद्धि के हेतु कालिदास, भवभूति इत्यादि कवियों को केवल अनुमान ही से भोजराज का सभासद ठहराया है । भोजचरित में इन सब कवियों के नाम मिलते हैं इस लिये भोजप्रबंध को कैसे प्रामाणिक ग्रंथ कहैं ? इसी भोजराज ने चपू रामायण, सरस्वती कंठाभरण, अमरटीका, राजवार्तिक, पातंजलिटीका और चारुचार्य इत्यादि बहुत से ग्रंथ मिलते हैं, परन्तु कालिदास, भवभूति आदि कवियों के नाम इन में से एक भी ग्रंथ में नहीं लिखे हैं । विश्वगुणादर्शक ग्रंथकार वेदांताचार्य कालिदास श्रीहर्ष और भवभूति एक समय भोजराज के सभा में वर्तमान थे, जैसा लिखा भी है। मायश्वोरो मयूरो मुररिपुरेपरो भारविः सारविद्यः । श्रीहर्ष:कालिदासः कविरथ भवभूत्यादयो भोजराजः॥ इस में वे भी भोजप्रबंधप्रणेता बल्लाल के न्याय महाभ्रम में पतित हुए हैं, क्योंकि श्रीहर्ष, कालिदास और भवभूति एक काल में वर्तमान नहीं थे । इस विषय में बहुत से प्रमाण भी हैं। भारतवर्ष के बहुत से राजाओं का नाम विक्रमादित्य था । उज्जयिनी के अधीश्वर विक्रमादित्य जो ५७ ईस्वी पू. में राज्य करते थे और जिन्हों ने 'संवत्' स्थापन किया है तो अब हम लोगों को देखना चाहिये कि कालिदास इस विक्रम की सभा में उपस्थित थे वा नहीं । हम्बोल्ट लिखते हैं कि कविवर होरेस और वर्जिल कालिदास के समकालि थे । इस बात को बहुत से यूरोपीय पंडितों ने स्वीकार किया है । कर्नेल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि "जब तक हिंदू साहित्य वर्तमान रहेगा तब तक लोग भोज प्रमार और उनके नवरत्नों को न भूलेंगे" । परंतु यह ठहराना बहुत कठिन है कि वह गुण-पंडित तीन भोजराजों में से किस भोजराज की नवरत्न की सभा थी । कर्नेल टाड़ ने यह निरूपण किया है -प्रथम भोजराज संवत ६३१ में द्वितीय ७२१ और तृतीय भोजराज संवत् ११०० में वर्तमान थे । "सिंहासनबत्तीसी", "वेतालपच्चीसी और "विक्रमचरित्र" आदि ग्रंथों में महाराज विक्रमादित्य की बहुत सी अलौकिक कथा भरी हुई है, इसी कारण इन में कोई सत्य इतिहास नहीं मिल सकता । मेस्तुग कृत "प्रबंध चिंतामणि'" और राजशेखरकृत "चतुर्विंशति प्रबंध' में लिखा है कि महा राजा विक्रमादित्य अति शूर वीर और महाबल पराक्रांत नृपति थे 1 परंतु उनमें नवरत्न और कालिदास आदि कवियों का कुछ भी वृत्तांत नहीं लिखा है। जैन ग्रंथों में लिखा है कि सिद्धसेन नामक जैन पुरोहित विक्रमादित्य के उपदेष्टा थे । परंतु हम नहीं कह सकते कि यह बात कहाँ तक शुद्ध है । और एक जैन लेखक कहते हैं कि ७२३ संवत् में भोजराज के राज्य में भारतेन्दु समग्र ५९२