पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६४

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गोप गोपिकादि-पाल सतत असुर-स-काल, जमुना सो कर जोरि मनायत मिले पिया नंदलाला । सकल कला-गुन-निधान कीरति जग हाई । स्नान दान जप जोग ध्यान तप संजम नियम विसाला। 'हरीचंद प्राननाथ कीर्तिसुता लिए. साथ, इनके फल में 'हरोचद' गा रागै कृष्ण गुनवाला । पावनगुन अलि बिमल श्रुतिगन नित गाई २ अरी तू हठ नहि छोडत प्यारी मेरी गति होउ सोई महरानी । दीप-दान मैं मगन हयै रही भूलि गई गिरिधारी । तेरे बिनु उत्त बिनहीं दीपक विरह-अगिनि संचारी । जासु भौंह की हिलान पिलोकत निसु दिन सारंगपानी । "हरीचद पीतम गर लगि के कस त्योहार दिवारी ।१० खेगन में कबहूँ जो आँचर उड़त बात-बस जाको । हमारे ब्रज के है मनि दीप । रिसि मुनि बंदित ह हरि मानत परम धन्य करिताको। परम पुरुष जो जोग जग्य जप क्योह लख्यौ न जाई । पुष्पराग श्रीराधा मरकत गोबिंद गोप महीप । सो जा पद-रज बस निसि-वासर तुरतहि प्रगटल आई। सदा प्रकाश करत ब्रज-मंडल वृदावन अपनीप । ग्राम बघूटी जा कटाच्छ-बल उमा रमाहि लजायें । 'हरीचंद' सुमिरत बियोग-तम कहुँ नहि रहत समीप।११ 'हरीचद' ते महामूढ़ जे इहि न अनुछिन ध्यावे ।३ राग बिहाग चौताला जय जय श्री वृदावन देखी। अरी हो परजि रही बरज्यो नहीं मानत, अखिल विश्वनायक पुरुषोत्तम जा पद-पंकज-सेषी । सबै होरि कृष्ण-प्रेम दीप जोरि । रोनित दृष्टि कोर सो जग के जीर्वाह निहि जिआये। भरि श्रचंड दे सनेह एक ली लगाइ पासों, परमानंद-धनह पै जो निज भानंद-कन अरसाये । मन पाती राय तामे नित्य बोरि । जगन-आधार भून परमातम जिय अधार सा नाकी। विरह प्रगट करि जोति मिलाइ जोति, 'हरीचद' स्वामिनि अभिमान तुल न जगत में जाकी।४ करि पतंग नेम धरम लाज ओट आरि छोरि । विपुल बन्दा बिपिन चक्रवर्ती-चतुर 'हरीचंद' कयो मानि देखिहै तू प्रोति-पंच, रसिक-चूड़ा-रतन जर्यात राधा-रमन । भागो वियोग-तम मुख मोरि ।१२ गोप-गोपी सुखद भक्त नयनानंद विरहिजन कोटि सत्ताप सलत समन । राग बिहाग (दीपावली) जर्यात गिरिराज धूत आस अंगुरि "खन आजु गिरिराज के उच्चतर शिखर पर, उति कृत बेनु-रच मत्त गज-गति-गमन । परम शोभित भई दिव्य दीपावली । अध प्रकी वक सकट पूतनादिक काल जयति मनहूँ नगराज निज नाम नग सत्य किय, 'हरिचंद' हित-करन कालिय-नमन १५ विविध मनि-जटिव तन धारि हारावली । जय जब गोवर्धन-पर देव । अधी-गन मनहूँ परम प्रज्वलित भई. जय जय देव राजमद-मर्दन करत सकल सुर सेव । किधों ब्रज-पास हित बसी तारावली । जय जय श्रुतिजस गावत निसि-दिन पावत तक न भेव। दास हरीचंद' मन मुदित छवि देसिके, जय जय हरीचंद' रक्षण कृत दीन-उधारन टेव 15 करत जै जै बषि देव कुसुमावती ।१३ बाजी नैनन में शागी। आजु तरनि-तनया निकट परम परमा प्रगट, रसिक राज इत उत श्री राधा परम प्रेम-रस-पागी । अब-यधुन मिति रची दीप-माला । दोऊ हारे दोऊ जीते अपुस के अनुरागी । जोति-जाल जगमगत दृष्टि विर नहिं णगत, 'हरीचंद' निज जन-सुखायक रहे केलि निसि जागी १७ ट्रट इषि को परत अति विसाला । हम में कौन बोरी प्यारी सही नवल वनिता बनी चार दिसि, ठादी होउ बराबर नाप विहसि कस्यो गिरिधारी छषि-सनी हंसहि गावहि विविध ख्याला । सुनत उठी वृषभानु-नंदिनी सरी भई समुहाई। | निरखि सखी 'हरीचंद' अति चकित सी हो, पद-अंगुरी-बल उचकि पिया सो बढ़वन चहत उँचाई। कहत जयति राधे जयति नंद-ताला १४ मुंदर मुख बापुहि ढिग आवत लशि चुम्यो पिय प्यारे। आबु बजाभि की छूट परे। इत नंदलाल लाडिली उत इत दीपक ज्योति बरे। राग बिहाग (दीपावली) उत सहचरी ललित ललितादिक मुरथला चवर ढरे करत मिलि दीप-दान बज-बाशा । Fotex - भारतेन्दु समग्र २४ हरीचद लजिहसि भुष निरखत पिया को हम हारे ।। इत जस्तार तास बागो उत भूषण मशक भरै ।