पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६४५

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४-श्रीशंकराचार्य इन्दीवरदलश्याममिन्दिरानन्दकन्दलम् । बन्दारुजनमन्दारं बन्देऽहं यदुनन्दनम् ।। धन्य वह ईश्वर है जो अपनी सृष्टि में अनेक अद्भुत शक्ति के मनुष्यों को उत्पन्न करता है और उनके द्वारा लोगों की पहिली चाल चलन को बदल देता है । फिर कुछ काल के अनंतर दूसरे को उत्पन्न करता हुआ उससे भी वैसा ही कराता है, इसी प्रकार से अपने सृष्टि क्रम को निरंतर चलाता है। देखो कुछ न्यूनाधिक ११०० वर्ष हुए इस सारे भारतवर्ष में बौद्धमत फैल गया था और लोग उसी मत पर चलते थे और जो उस मत को स्वीकार करने में अप्रसन्न घे उनको अनेक प्रकार के क्लेश सहने पड़ते थे । प्राय : कन्याकुमारी अंतरीप से चीन देश तक और ब्रहमा के देश से ईरान तक जहाँ देखो बौद्धमत के मनुष्य देख पड़ते थे । फाहियान और हवानसांग जो चीन देश से यात्रा के लिये यहाँ आए थे और जिनके सं. ३९९ और ६४० ईस्वी निश्चित किए गए हैं, अपने ग्रंथ में उस समय का भारतवर्ष का वृत्तांत लिखते है कि बौद्धर्म की बड़ी उन्नति है, राजाओं ने बौद्ध भिक्षुकों को गांव, बाग, घर, बिहार बनाने के लिये दे दिये हैं और उनमें श्रमण लोग सुख से बास करते हैं । मांस खाने का बड़ा निषेध किया गया है, कोई यज्ञ करने नहीं पाते, न देवी के सामने बलिदान कर सकते है, और पटने में जिसे पाटिलपुत्र भी कहते हैं शाक्यमुनि बुद्ध का बड़ा उत्सव होता है और प्राय : बड़े बड़े नगरों में स्तूप और बिहार देख पड़ते हैं । हवन्सांग लिखता है कि बौद्धमत केवल भारतवर्ष ही में फैला न था परंतु तूरान और काबुल में भी सौ से अधिक बिहार बने थे और उन दिनों में गजनी, काबुल इत्यादि पश्चिम के देश इसी भारतवर्ष के राजाओं के अधीन थे । सब मिल के अस्सी राजा गिने जाते थे । जालंधर से गंगासागर तक और हिमालय से महानदी तक देश कन्नौज के बौद्ध राज हर्षवर्धन के अधीन थे और मगध देश में बौद्ध राजा राज करते थे। इस से यह न समझना चाहिए कि भारतवर्ष में वैदिक मत लुप्त हो गया था । बहुत से ऐसे ऐसे देश दक्षिण बनारस १. "गोरखपुर दर्पण' में एक लेख यों लिखा है :- भागलपुर के निकट एक पत्थर की लाट है जिस पर पुराने अक्षर खुदे हुए हैं । उन अक्षरों को प्रिन्सेप साहिब ने में पढ़ा था । सहिया गांव परगने सलेमपुर मंझोली में है । वहाँ एक पुराना मंदिर है, जिसके बीच एक बुद्ध की मूर्ति वर्तमान है और कहाँव जो सलेमपुर से छ मील पश्चिम है उस गांव में एक लाट २४ फुट ऊंची गड़ी है और उस पर छ फुट लंबे १६ कोने के कलश पर एक बुद्र की मूर्ति स्थापित है । उस पर जो पुराने अक्षर अंकित है उनका उत्था नीचे लिखा जाता है। मूल- -यस्योपस्थानभूमिर्नृपतिशतशिरः पातवातावधूता। गुप्तानां वंशजत्य प्रविसृतयशसत्तस्य सर्वोत्तमईः ।। राज्ये शक्रोपमस्य क्षितिपशतपतेः स्कन्दगुप्तस्य शान्तेः । वर्षे त्रिंशदशैकोत्तरक्शततमे ज्येष्ठमासि प्रपन्ने ।।१।। ख्याते स्मिन् ग्रामरत्नेककुभरति जनैस्साधुसंसर्गपृते। पुत्रोयस्सोमिलस्य प्रचुरगुणनिधेहिसोमो महायः ।। तत्सुनूरुद्रसोमः प्रयुलमतियशाव्याघ्र इत्यन्यसंशाः । मद्रस्तस्यात्मजोऽभूद्विज गुख्ययतिषु प्रायशः प्रीतिमान्यः ।।२।। पुण्यस्कंध स च जगट्टिमखिलं संसरतीक्ष्य भीतो। श्रेयो भूतमूत्यै पथि नियमवता महतामादिकर्तृन ।। पच्चेंद्रान्स्थापयित्वा धरणिधरमयान्सन्निखातत्ततोऽयं। शैलस्तम्मः सुचारुः गिरिवर शिखरामोपमः कीर्तिकर्ता ।।३।। चरितावली ६०१