पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६५५

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शिवजी ने हुँकर के वररुचि का इंद्रमत का व्याकरण भुला दिया. इस से वररुचि ने फिर तपस्या कर के शिवजा से पाणिनि व्याकरण सीखा । यह वररुचि बहुत दिन तक योगानंद का मंत्री रहा और इस का नामातर कात्यायन था, परंतु यह नंद का मंत्री कैसे हुआ और कब तक रहा यह यहाँ नहीं लिखते, क्योंकि प्रसंग के बाहर है । यह जन बन फिरने लगा । जब शकटार ने चाणक्य द्वारा नंदवंश का नाश किया तब उदास हो कर और विंध्याचल में कालभूति पिशाच को देख कर अपना पूर्व जन्म स्मरण करके उस से सब कथा कह कर बदरिकाश्रम में जा कर योग से अपनी गति को गया और शाप से छूटा । गंधर्व से भी पहिले जन्म में यह गंगातीर के ग्रहार नामक ग्राम में गोविंददेव ब्राहमण अग्निदत्ता ब्राहमणी का पुत्र देवदत्त था और प्रतिष्ठानपुर के राजा की कन्या से विवाह किया था। उस कन्या ने पहले दाँत में फूल दबा कर उस को संकेत बताया था। इससे जब वह ब्राहमण वरदान पाकर शिवगण हुआ तब उस की स्त्री भी जया प्रतिहारी हुई। इस कथा के व्याख्यान से यह स्पष्ट होता है कि वर्णन नंद के राज्य के समय का है और उस समय के नाम वररुचि बतलाता है और कश्मीर का सोमदेव भट्ट अपने कथासरित्सागर में लिखता है कि कात्यायन वररुचि कौशांबी में, जो अब प्रयाग के पास जमुना के किनारे कोसम गाँव कहलाता है, पैदा हुआ, पाणिनि से व्याकरण में शास्त्रार्थ किया और राजा नंद का मंत्री हुआ । मुद्राराक्षस इत्यादि बहुत ग्रंथों से साबित है कि नंद के बाद ही चंद्रगुप्त राज्यसिंहासन पर बैठा और चंद्रगुप्त का जमाना ऐसा निश्चय ठहर गया है कि जैसे पलासी की लड़ाई अथवा नादिरशाही अथवा पृथ्वीराज और विक्रम का कहो कि हम पाणिनि का जमाना अब अढाई हजार बरस से इधर माने या लाखों बरस से उघर ? पतंजलि चंद्रगुप्त के पीछे हुआ इसमें किसी तरह का संदेह नहीं, क्योंकि उसने अपने भाष्य में "सभाराचा मनुष्य पूर्वा" इस सूत्र पर "चंद्रगुप्तसमम्" ऐसा उदाहरण दिया Dr. Rajendra Lal Mitra LL.D. in his Indo-Aryans No. 1. P. 19 says, “According to Dr. Goldstucker, the Grammar of Panini was composed between the 9th and 11th centuries before Christ. Professor Max Muller brings down the age of Grammar to the 6th century B.C," पाणिनीय व्याकरण के समय में निम्नलिखित बातें होती थीं। १. उस समय के लोगों में हँसी करने की चाल थी । एहिमन्ये ओदनं भोक्ष्यसे इति भुक्तः सो ऽतिथिभिः- मानो भात खाने आया है सब खा पी गया । २. वादों में नाती को अवश्य बुलाने की चाल थी। निमन्त्रणं, आवश्यके प्रादभोजनादौ दौहित्रदेः प्रवर्तनं --निमंत्रण, अर्थात जैसे नाती वगैरह को श्राद्ध भोजन में बुलाना । ३. नृत्य और नृत में मेद । गात्र विक्षेपमानं नृत-भाँड़ों का तमासा, बदन तोड़ना इत्यादि । पदार्थाभिनयोनत्यं -भावादिको का दिखलाना । ४. बहुत सी कहावतें उस समय के लोग जानते थे । जैसा-नविश्वसेद-विश्वस्त-जिस का विश्वास एक बेर गया फिर उसका विश्वास न करना । ५. आलिंगन करने की रीति थी । अश्लिक्षत कन्या देवदतः - देवदत्त ने कन्या को आलिगन दिया । ६. लड़कियों को गहना पहिनाने की चाल । उपस्कृता कन्या-अलंकार पहिनाई गई कन्या । ७. पुहावरेवार बोलने की चाल । हस्तयते-हाथी पर चढ़के जाता है । पादयते-लात मारता है। ८. लोग बहुत भावुक थे । सिदशब्दो ग्रंथान्ते मङगलार्थ-ग्रंथ के अंत में सिद्ध-ऐसा लिखो, क्योंकि यह मंगल है। ९. वृषस्यतिगौ:-गाय उठी है। १०. महल बना करते थे। कुटीयति प्रासादे । महल में बैठ कर झोपड़ी समझता है । ११. भिक्षुक लोग राजा के पास जाया करते थे। भिक्षुकः प्रभुमुपतिष्ठते । १२. मल्लयुद्ध हुआ करता था । आह्वयते-मैदान में खड़े होकर पुकारना । नहीं तो आहवयति । १३. खिराज दिया जाता था। कर बिनयते-कर देने को निकालता है। १४. शास्त्र की चर्चा रहा करती थी। शास्लेवदते-शास्त्र में बोल सकता है। चरितावली ६११