पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६५८

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इनका मत शुद्धाद्वैत अर्थात् जगत्ब्रह्म के सच्चितरूप से अभिन्न और सत्य, परन्तु भक्ति बिना ब्रह्मस्वरूप का ज्ञान फलदायक नहीं । परमोपास्य श्रीकृष्ण और विष्णुस्वामी परमाचार्य, साधन सेवा मुख्य, प्रमाण ग्रंथ, वेदव्याससूत्र, गीता और भागवत । तिलक दो रेखा का लाल ऊदपुंड, शंख, चक्र, शीतल । आचार्य ने अणुभाष्य, तत्वदीप, निबंध, रसमंडन, श्री मद्भागवत पर सुबोधिनी टीका, सिद्धान्त मुक्तावली, पुष्टिप्रवाह मर्यादा, पुरुषोत्तम सहन' नाम, सिद्धांत रहस्य, अंत :करण प्रबोध, भक्ति प्रकरण, नवरतन, विवेक धैर्यालय, पत्रावलंबन, कृष्णाश्रय, भक्तिवर्दिनी, जलभेद संन्यासनिर्णय, जैमिनी सूत्रभाष्य, चित्तप्रबोध. निरोधलक्षण, व्यास-विरोध लक्षण, परिवृवाष्टक और वैद्यवल्लभ ये चौबीस ग्रंथ बनाये हैं, जिनमें दोनों सूत्रों का भाष्य और भागवत की टीका बहुत बड़े ग्रंथ हैं। द्वारकेशजी कृत । ।रागसारंग ।। ५३ ५ १ तत्व गुन बान मुवि माधवासित तरणि प्रथम सौभग दिवस प्रकट लक्ष्मण-सुवन । धन्य चंपारन्य मन्य त्रैलोक्य जन अन्य अवतार मुवि है न ऐसा भुवन । ।१ । । लग्न वृश्चिक कुंम केतु कयि इंदु सुख मीन बुध उच्च रवि बैरि नाशे । मंद वृष कर्क गुरु मौम युत सिंह में तमस के योग ध्रुष यश प्रकाशे । ।२।। रिछ धनिष्ठा प्रतिष्ठा अधिष्ठान स्थिर बिरह बदनानलाकार हरि को । यह निश्चय 'द्वारकेश' इन के शरण और को श्री वल्लभाधीश सरि को ।।३।। श्री महाप्रभुन की जन्मकुण्डली ऊपर के कीर्तन अनुसार । ९ ७ १० शु ११ के च रा ५ १२ बु २श व४ मं T? m भारतेन्दु समग्र ६१४