पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६

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Sem वैशाखा-माहात्म्य (रचनाकाल-१८७२ ई.) अथ वैशाख-माहात्म्य मेटै अपने पित्र की नरक-कुंड की सूल ।१४ में सीचाहिं जल भक्त्ति सो पीपर तरु जड़ माहि । दोहा तिन तार्यो निज अयुत कुल या संशे नाहि ।१५ भरति नेह नव नीर सों बरसत सुरस अथोर । गऊ-पीठ सुहराइ के न्हाइ तरुहि | जयति अलौकिक पन कोऊ लखि नाचत मनमोर ।। कृष्ण पूजि तजि दुर्गतिहिं देवन की गति लेड लेइ १६ एक बेर भोजन करे के तारा लखिया के बिन मांगो पाइकै दै निसि नींद विहाइ ।१७ नित्य उमाधव जेहि नवत माधष अनुज मुरारि । ब्रह्मचर्य धरनी-शयन अझन हविश्य न आन । श्यामाधय माधव भजी माधव मास बिचारि । श्रीगगादिक में करे विधि-विधान असनान ।१८ रमत माधयी कुच करि प्रेम माधवी पान ।' पुन्य मास वैशाप में हरि सो राखि सनेह । माधव रितु संग माधवी से माधव भगवान ।२ मन भायो ताको मिले यामें संदेह ।११ वैशाखा-पति नहि भवहिं जे वैज्ञाष-मंझार । ने वै ज्ञाषामुग आहे. या पैशाष कुमार ।३ मधुसूदन पूजन करे तप ब्रत सह दे दान । पाप अनेकन जनम के दाहै तूप-समान ।२० गुरु-आयसु निज सीस धरि सुमिरि पिया नंदनंद माधव थापे पोसरा कर चटाई दान । माधष की कह विधि लिखत ग्रंथन लखि हरिचंद ४ चैत्र कृष्ण एकादशी अथवा पूनो मान । छत्र व्यजन जूता हरी अस सूछम परिधान ।२१ मेष संक्रमन सो करे या अरंभ अपनान । देवहि दीजै प्रीति सौ केला फल करपूर ।२१ नंदन उल-घट युष्य ग्रह चित्र वस्तु अंगूर । आहमण-गन सों पृछि के नियम शास्त्र को मान । हरिहि नौमि संकल्प करि न्याय समेत विधान ।६ माधव में जो पित्र-हित करत अंधु-घट-दान । सत्तु व्यवन मधु फल सहित प्रीति करत भगवान ।२३ (मंत्र) माधष-हित जे देत घट या माधष के माहि । सकल मास वैशष मेष रासि रवि मान । मधुसूदन प्रिय होहिं लखि सनियम माधव-न्हान ७ भोजन के सह विप्र को ते बैकुठहि जाहि ।२४ मधु-रिपु के परसाद सो द्विज अनुप्रदहि जोय । होइ सके नहि मास भर विधिवत असनान । नित वैशाख नहान यह विघ्न-रहित मम होय । कर अंत के तीन दिन तो फल होइ समान ।२५ माधव मेषग मानु में हे मधु-सत्रु मुरारि । (अथ अक्षय तृतीया) प्रात-न्दान फल दीजिए नाथ पाप निरुवारि । रोप्तिनि माधव शुक्ल पख तीज सोम बुध होय । अति पविन दुरलभ बहुरि पाप नसायत सोय ।२६ इति जा तीरथ में नहाइये लीजे ताको नाम । माघी पूनो भाद्रपद कृष्ण चतुर्दशि जान । माषष तृतिया कारतिक नवमी युग परमान ।२७ जहं न जानिए नाम तह विश्नु-तीर्थ सुरुधाम ।१० इन चारहू युगादि में श्राद्ध करत जो कोय तुलसी श्यामा कजरी जो मधु-रिपु को देत । सहस्र संवत दिनन तृप्ति पित्र की होय ।२८ सो नारायन होत है माधव में करि हेत ॥११ तिथि युगादि में न्हाइ के करे दान जप ध्यान । तुलसी-बल वैशाष में अरपहि तीनों काल । ताको जनम मरन सो मुक्त तेहि करत नंद के लाल ।१२ माधव शुक्ला तीज को श्री गंगाजल नहाय । शुभ फल देत श्री कृष्णचंद भगवान ।२९ जो सींचत पीपर तसहि प्रात नहाइ हरि मानि । करत प्रदक्षिन भांति बहु सर्थ देवमय जानि ।१३ सर्य पाप सों टिकै विष्णु-लोक सो जाय । ३० जब ही को होमादि करि हरि को जब हि चढ़ाइ।, तरपन करि सुर पिन नर स-चराचर तस मूल । 'वन देई जब द्विजन को पुनि आपहु जप खाइ ।३१०

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भारतेन्दु समग्र २६