पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६२

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गंभीर ॥ रत्नभौर हमीर भूपति संग खेलत आय। तासु वंश अनूप भा हरिचंद अति विख्याय॥ आगरे रहे गोपाचल में रहो ता सुत वीर। पुत्र जनमें सात ताके महा भट कृष्णचंद, उदाराचंद रूपचंद सुभाइ। बुद्धिचंद प्रकाश चौरी चंद भे सुखदाइ। देवचंद प्रबोध संसृत चंद ताको नाम। भयो सप्तो नाम सुरज चंद मंद निकाम॥ सो समर करि साहि सेवक गए विधि के लोक । रहे सूरज चंद दुग ते हीन भरि बर सोक ॥ परो कृप पुकार काहू सुनी ना संसार। सातएँ दिन आइ जदुपति कीन आपु उघार ॥ दियो चख दै कही सिसु सुनु माँगु वर जो चाइ ।। हौं कही प्रभु भगति चाहत, शत्रु नाश सुभाइ ॥ दुसरो जा रूप देखौ देखि राधास्याम। सुनत करुनासिंधु भाख्यो एवमस्तु सुधाम॥ प्रबल दच्छिन बिप्रकुल तें सत्रु ह्वै है नास। अषित बुद्धि विचारि विद्यामान माने सास॥ नाम राखो मोर सूरजदास, सुश्याम। भए अंतरधान बीते पाछली निसि जाम॥ मोहि पन सोइ है ब्रजकी बसे सुखि चित थाप थापि। थापि गोसाईं करी मेरी आठ मद्धे छाप ॥ जगात को है भाव भूरि निकाम। सुर है नंदनंद जू को लयो मोल गुलाम ॥* ९. सुकरात इतिहासों से प्रगट है कि यूनान देश प्राचीन काल में हर तरह की विद्या, शिल्प, विज्ञान आदि के लिए अति प्रसिद्ध था, वरन हर एक विद्याओं की खान या उत्पत्ति भूमि कहा जाय तो कुछ अनुचित न होगा । वहीं के बड़े बड़े विद्वान और विज्ञानियों में एक सुकरात भी था । यह ईसाई सन् ४७१ वर्ष पहिले आसीनिया नगर में पैदा हुआ था और 'होनहार विरवान के होत चीकने पात" वाली कहावत के अनुसार छोटी ही उमर में अपने बाप के सौदागिरी पेशे का काम झटपट सीख सिखाय भलीभांति प्रखर हो गया । तब यह हर तरह की विद्याओ के सीखने में प्रवृत्त हुआ और अपना समय यूनान देश के विद्वानों में काटने लगा, जिन के सतसंग से कुछ दिनों के उपरांत अपनी विमल बुद्धि के कारण यह संपूर्ण विद्या, विज्ञान और शिल्पशास्त्र में भली-भांति यूनान के बड़े बड़े विद्वान और दार्शनिक से भी बाद विवाद में भिड़ जाता था । उन का पक्ष खंडन कर अपनी बात अनेक युक्तियों से सिद्ध करता था । यहाँ तक कि कुछ दिनों में संपूर्ण यूनान भर में इसकी लोकोत्तर चमत्कार बुद्धि को धूम मच गई । एक बार सुकरात का बाप कहीं बाहर सफर को जाते समय इसे चार हजार लूर, जो उस समय का यूनानी सिक्का था, इसके निज के खर्च के लिए दे गया था । पर इसने उन सब रुपयों को बतौर अण के अपने एक मित्र को दे दिया । उसने रुपये इसे फिर लौटा कर न दिए, पर सुकरात ने इस बाल का कुछ भी ख्याल न किया और न रूपये उससे कभी माँगे । मेसिडोनिया का राजा अर्किलीस ने बहुत कुछ विप्र प्रथ कुशल हो कवि वचन सुधा जिल्द २ प्राचीन पुस्तकावली में और श्री हरिश्चंद्र-चंद्रिका खंड ६ संख्या ५ नवंबर सन १८७८ ई. में छपा । भारतेन्दु समग्र ६१८