पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६३

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मx चाहा कि सुकरात एक बार उससे किसी बात के लिए कुछ कहे, पर इस ने कभी इस बात की ओर ध्यान भी न किया । इस बुद्धिमान हकीम में धीरज इतना था कि किसी तरह की तकलीफ या रज जो इस पर आ पड़ते थे तो यह किसी प्रकार और लोगों को उस मानसी व्यथा को नहीं प्रगट होने देता था । उस के मन की सब से बड़ी अभिलाषा जिस के लिए वह अत्यंत लौलीन रहा किया यह थी कि जिस तरह हो सके हम अपनी जन्मभूमि को कुछ फायदा पहुंचा सकें और सब लोग कुमार्ग से वव सच्चे और सीधे राह पर चले, एक दूसरे की बुराई कभी न चेतें । यद्यपि हस सज्जन पुरुष ने कोई स्कूल या वाब करने को कोई जगह नहीं बनावाया पर अक्सर जहाँ लोगों की बहुत भीड़भाड़ रहती उनके बीच यह खड़ा हो घंटों तक सदुपदेश किया करता था और दिन रात मनसा याचा कर्मणा अपने देश के लोगों के हित में तत्पर रहा । हकीम अफलातून सुकरात का बहुत बड़ा सार्गिद था । मरती बार सुकरात ने तीन बात के लिये अपनी प्रसन्नता प्रगट की और हाथ जोड़ कर कहा, हे जगदीश्वर, मैं तुझे कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ कि तूने मुझे बातों के मर्म समझने की बुद्धि दी, यूनान ऐसे देश में जन्म दिया और अफलातून ऐसा शिष्य मुझे दिया । एक दिन अट्टिका का राजा अलसीबिडीस बड़े घमंड में भर यह दून हाँक रहा था कि मेरे पास बड़ा धन है और मैं बड़े भारी राज्य का स्वामी हूँ। जब सुकरात ने उसकी यह घमंड की बात सुनी उससे कहा, अलसीबिडीस, तनिक इघर आ और भूगोल के नकशे की ओर ध्यान कर, और बता तेरा राज्य अट्टिका कहाँ पर है । जब उसने नकशे को देखा, घमंड के नशे में जो चूर-चूर था सब उतर गया और उसकी आँख खुल गई । सिर नीचा कर कहा कि मेरा मुल्क यूनान, जो सम्पूर्ण यूरोप का एक छोटा सा देश है, उस का भी एक अत्यंत छोटा प्रदेश है । उसकी यह बात सुन सुकरात ने कहा, तो ऐ प्यारे, फिर क्यों इतनी दून की हॉक रहा है । घमंड बहुत बुरा होता है; सर्व शक्तिमान जगदीश्वर के करतब से इस भूमंडल पर एक से एक चढ़ बढ़ कर पड़े हैं, उन के सामने तू किस गिनती में है ? थोड़े दिन बाद यूनान के बहुत से अत्याचारी निष्ठुर मनुष्यों ने ईर्ष्या में उनहत्तरवें वर्श में सुकरात पर यह दोष लगाया कि यह बुझ्ढा असीना नगर के नव लोगों को बुरे चाल-चलन की ओर रुजू करता है, उनके बाप दादाओं के पुराने बत्ताव और मत से हटा कर उन्हें नास्तिक बनाया चाहता है और उन के देवी देवताओं की निंदा करता है । इन दोषों के कारण वह अदालत के सुपुर्द हुआ । अदालत ने इसे विष पीकर मर जाने की सजा तजवीज की । उस निर्दोषी पर प्राणांत दंड की सजा का हुकुम सुन जब सब उसके बंधु भाई और मित्र पिलाप कर और पछता रहे थे, सुकरात अत्यंत धैर्य के साथ विष का प्याला उठा कर चूंट गया और मरने तक सबों को सदुपदेश देता रहा । जब विष इस के साग में व्याप्त हो गया, यहाँ तक कि बोल भी न सकता था, तब इसने आंख बंद कर ली और सिधार गया । युवा १०. महाराजाधिराज नेपोलियन ९वीं जनवरी सन् १८७३ ई. को बारह बज के २५ मिनट पर महाराजाधिराज तृतीय नेपोलियन ने इस असार संसार को त्याग किया । जो मनुष्य मरने के अढ़ाई वर्ष पूर्व तक एक प्रधान देश का राजा और महाराजा दौड़े आए थे, वही नेपोलियन इंग्लैंड के एक गांव में एक छोटे घर में मरा !!! इस से बढ़के और क्या दुःख होगा कि जिस के एक खेल में रुम और रूस के महाराज पारित की गलियों में दौड़ते थे, उस के शव के साथ वही ग्राम निवासी लोग !!! क्यों धन के अभिमानियो ! तुम अब भी अपने धन का अभिमान करोगे और अपने से छोटों को दुःख देने में प्रवृत्त होगे ? यह वही नेपोलियन है, जिस का दादा ऐसा प्रतापी था, जिसने सारे यूरप को हिला दिया था और सब अंगरेजों को दांतों चने चबवा दिए थे । जर्मनी के युद्ध में नेपोलियन पराजित हुआ, इस का कुछ सोच नहीं, क्योंकि जिस काल में नेपोलियन के स्थान का वा उस की समाधि का वा उस युद्धस्थान का भी चिन्ह न मिलेगा, उस समय तक उन का नाम वर्तमान रडेगा । महाराज नेपोलियन चिजिलहर्स नामक स्थान में गाड़े गए। उस समय बोनापार्ट के वंश के सब लोग और पारिस के समस्त शिल्पविद्या के गुणियों का समाज विमान के आगे या । लार्ड साइडनी और लार्ड स्फील्ड महारानी विक्टोरिया और युवराज की ओर से आये थे ओर पचास सहन मनुष्य केवल कौतुक देखने को एकत्र थे और राजकुमार और विधवा महारानी मी साथ थीं । शव को समाधि करने के पीछे बोनापार्ट के वंश के सब चरितावली ६१९ 42