पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६६४

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लोगों ने राजकुमार को पिता के स्थानापन्न भाव से वंदना किया । इंगलैंड, रूस इत्यादि सब राजकीय कार्यालय दस दिवस तक शोक भेष में रहे। हम को लिखने में अत्यंत खेद होता है कि पृथ्वी पर का एक महा विख्यात पुरुष समाप्त हुआ । इस मनुष्य की सब आयुष्य प्रारंभ से अंत तक चमत्कारिता और फेरफार की एक विलक्षण शृंखला थी । कुछ काल तक राजा और कुछ काल तक रंक सांप्रत सब पराक्रमी राजा उस का आदर करते थे, जो क्या अब उस को तुच्छ मान कर उसकी अप्रतिष्ठा करनी चाहिए ? यद्यपि वे राजसिंहासन पर न थे और इंगलैंड में केवल एक साधारण मनुष्य के समान रहते थे तथापि उनके मरण की दुःखवार्ता प्रवण कर के राजकीय और राजसभा के अधिकारियों के चित्त अवश्य चकित होंगे और फ्रांस के राज्य-प्रबंधों में इनके मृत्यु के कुछ विलक्षण फेरफार होगा । यह नेपोलियन फ्रेच लोगों के मुख्य महाराज थे । और इनको तीसरे नेपोलियन कहते थे और बड़े नेपोलियन बोनापार्ट के भतीजे थे । इन का जन्म २० अप्रैल सन् १८०८ इ. में फ्रांस देश में हुआ था और इन के पिता का नाम लुई बोनापार्ट था, जो लालैंड के महाराज थे । जब यह सात वर्ष के हुए थे तब प्रथम नेपोलियन का अंत का पराभव हुआ था । अनंतर इन को और इनके माता को फ्रांस छोड़ कर के अन्य देश में जाना पड़ा । इन्होंने स्विटजरलैंड में विद्याभ्यास आदि किया । पीछे इन को वहां की सेना में रहने की आज्ञा मिली । कुछ दिवस पर्यंत थन सरोवर के तट के तोपखाने में अभ्यास किया । तदनंतर सन १८३० में फ्रांस देश में राज्य संबंधी हलचल देखकर के फिर अपने स्वदेश में आने का उद्योग किया परंतु वह सफल न हुआ; उलटी सीमा के बाहर रहने की आज्ञा हुई । एक वर्ष के अनंतर स्विटजरलैंड छोड़ कर के टस्कनी में जाकर रहना पड़ा और रोम के युद्ध में मिल गए । इतने में उन के जेष्ठ भ्राता का देहांत हुआ । फिर वहाँ से निकल कर इंगलैंड में जाकर रहे । सन् १८३२ से सन् १८३५ पयत काल ग्रंथ लिखने में व्यतीत किया । इसी काल में अनेक चचेरे भाई, प्रथम नेपोलियन के पुत्र नेपोलियन की सहायता करके उसे दूसरा नेपोलियन कहला कर राजसिंहासन पर बैठावें, फ्रांस देश के कई एक मुख्य निवासियों के चित्त में यह बात आई थी और फ्रांस के सीमा तक आगमन की इच्छा करते थे तो इतने में उन का भी देहात हुआ, इससे फ्रांस के राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार उक्त नेपोलियन को प्राप्त हुआ और वह संपादन करने का विचार उन के चित्त में आया । सन् १८३६ पर्यंत प्रयत्न करके स्ट्रासबर्ग पर चढ़ाई किया, परंतु यह प्रयत्न सफल न होकर आपही पकड़े गए । अंत में पारिस में उन को ले गए। वहाँ एक दो वर्ष रहकर स्विटजरलैंड में लौट आए, तो वहाँ उनके माता का देहात हुआ । सन् १८३८ में उनकी अनुमति से एक महाशय ने स्ट्रासबर्ग के चढ़ाई का वर्णन लिखा, इस से फ्रेच सरकार को बड़ा खेद हुआ और उक्त महाशय को दंड दिया और नेपोलियन को स्विट्जरलैंड से निकाल देने के हेतु वहाँ के सरकार को लिख भेजा । परंतु नेपोलियन आपही स्विट्जरलैंड छोड़ कर पुनः इंगलैंड में गए । वहाँ दो वर्ष रहकर सन् १८४० में फ्रांस का राज्य मिलने के हेतु प्रयत्न करते रहे और बोलोन पर चढ़ाई किया, परंतु वह भी प्रयत्न निष्फल हुआ और पकड़े गए और इन के सहकारी जितने मनुष्य थे सभों को जन्म भर के हेतु वहाँ के दुर्ग में कारागार हुआ । इस दुर्ग में दः वर्ष पर्य रहे । अनंतर सन् १८४६ के मई महीने के २५वी तारीख को अपूर्व वेश धारण कर के वेलजिअम में भाग कर फिर इंगलैंड में गए । सन् १८४८ ई. के फ्रांस के युद्ध तक वहाँ रहे । इस युद्ध के समय फ्रांस के निवासियों ने इनको नेशनल असेम्बली का सभासद नियत किया । तदनंतर उन्हीं महाशयों ने इन को अध्यक्ष नियत किया । तारीख २ दिसम्बर सन् १८५१ को उन्होंने कई महाशयों के विचार से और परिस के सर्व प्रसिद्ध राजकीय महाशयों को घेर कर कारागार में डाल दिया और नेशनल असेम्ब्ली को तोड़कर के स्वत: मुख्याधिकारी डिक्टेटर नाम से आप प्रसिद्ध हुए । कुछ सेना मार्ग में रख कर प्रबंध करने के अनंतर 'सकल देश का हम को इस वर्ष अध्यक्ष का अधिकार मिला' यह प्रसिद्ध किया और उन्हीं के इच्छानुसार सब अधिकार उनको प्राप्त हुआ और उन्होंने फ्रेच लोगों की सम्मति से तारीख २ दिसम्बर सन् १८५२ को अपने को महाराज तीसरा नेपोलियन कहवाया । इंगलैंड के सरकार ने प्रथम उन को मान्य किया और पश्चात् यूरोपियन सब राजाओं ने धीरे-धीरे उन को फ्रेच का महाराज कहना स्वीकार किया । सन् १८५३ के जनवरी की १३ तारीख को उन्होंने विवाह भारतेन्दु समग्र ६२०