पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पुलिस के व्यतिरिक्त एक विभाग पदचारियों का साथ था, परंतु यह श्रीमान् को लंकेश्वर जान पड़ता था और उन्हों ने कई बार निषेध किया । यहाँ से लोग चाथम में गए, जहाँ आरे चलते हैं और लकड़ी काटी जाती है। परतु यह सब कर्म पाँच बजे के भीतर ही हो गया, तो श्रीमान ने कहा कि होपटाउन प्रदेश में चल कर हरियट पर्वत पर आरोहण करके प्रदोष काल की शोभा देखना चाहिए । वह स्थिर कर सब लोग उसी ओर चले और साढ़े पांच बजे व पहुंचे । थोड़े से पुलिस के सिपाही साथ में थे, क्योंकि वहाँ यह आशा न थी कि कोई दुष्कर्मा मिले -सा रोग ग्रसित और श्रमित लोग रहते । श्रीमान् बहुत दूर पर्यंत एक दृट्ट पर आरूढ़ और उनके सहचारी लोग भूमि पर चलते थे । हारियट पर्वत पर पहुँच कर लोगों ने किंचित काल विश्राम किया और फिर तीर की ओर चले । मार्ग में दो प्रमिक व्यक्ति मिले और श्रीमान् से कुछ कहने की इच्छा प्रकट की, परंतु स्टीवर्ट साहेब ने उनसे कहा कि तुम लोग लिख कर निवेदन करो । दो साहेब आगे थे और लोग साथ में थे। उन लोगों के तीर पर पहुंचने के पूर्व ही अंधकार छा गया और श्रीमान् के पहुँचते पहुंचते "मशाल" जल गए । तीर पर पहुँच कर स्वीटर्ट साहेब पीछे हट कर किसी को कुछ आज्ञा देने लगे । शेष २० गज आगे नहीं बढ़े थे कि एक दुष्कर्मी हाथ में छुरी लिए द्रुतवेग से मंडल में आया और श्रीमान् को दो हुरी मारी, एक वाम स्कंध पर और दूसरी स्कंध के पुढे के नीचे । अर्जुन नाम सिपाही और हाबिन्स साहेब ने उसे पकड़ा और बड़ा कोलाहल मचा और "मशाल बुत गए । उसी समय श्रीमान् भी या तो करार पर से गिर पड़े वा कूद पड़े । जब फिर से प्रकाश हुआ तो लोगों ने देखा कि गवर्नर जेनरल बहादुर पानी में खड़े थे और स्कंध देश से रुधिर का प्रवाह बड़े बेग से चल रहा था । वहाँ से लोग उन्हें एक गाड़ी पर रख कर ले गए और घाव बाँधा गया, परंतु वे तो हो चुके थे । जब उन की लाश ग्लासगो नाम नौका पर पहुंची तो डाक्टरों ने कहा कि इन दोनों घाओं में एक भी प्राण लेने के समर्थ था । परंतु उस समय लेडी म्यो का साहस प्रशंसनीय था । उनको अपने "राज" नाश की अपेक्षा भारतखंड के राज के नाश और प्रजा के दुःख का बड़ा शोच हुआ ।' स्टुअर्ट साहेब ने इस विषय का गवर्नमेंट को एक रिपोर्ट किया है और एक सार्टिफिकेट डाक्टरों की ओर से भी गवर्नमेंट को मेजा गया है। शव यात्रा हा! शनिश्चर (१७ वीं) को कलकत्ते की कुछ और ही दशा थी । सब लोग अपना अपना उचित कर्म परित्याग कर के विषन्नबदन प्रिंसेप घाट की ओर दौड़े जाते थे । बालक अपनी अवस्था को विस्मृत कर और खेल कुतूहल छोड़ उस मानव-प्रवाह में बहे जाते थे, वृद्ध लोग भी अपने चिरासन को छोड़ लकुट हाथ में, शरीर काँपते हुए उन के अनुसरण चले। - स्त्री बेचारी कुलमर्याद-सीमा-परिषद्ध उद्विग्न चित्त होकर खिड़कियों पर बैठी युगल नेत्र प्रसारनपूर्वक अपने हितैषी, परमविद्याशाली और परम गुणवान उपराज के मृतक शरीर के आगमन की मार्ग प्रतीक्षा करती थी । मार्ग में गाड़ियों की श्रेणी बंध गई थी, नदी में संपूर्ण नौकाओं के पताका युक्त मस्तूल मुक रहे थे, मानों सब सिर पटक पटक कर रो रहे है । दुर्ग से सेना धीरे धीरे आई और गवर्नमेन्ट हाउस से उक्त घाट पर्यंत श्रेणीबद्ध होकर खड़ी हुई और प्रत्येक वर्ग के पुरुष समुचित पर खड़े थे । एक सन्नाटा बंध गया था कि पौने पांच बजे घाट पर से एक शतन्धी (तोप) का शब्द हुआ और उसका प्रतिउत्तर दुर्ग और कानी नाम नौका पर से हुआ । बाजावालों ने बड़ी सावधानी से अपने अपने वाद्य यंत्रों को उठाया और कलकत्ते के वालंटियर्स लोग आगे बढ़े। एक तोप की गाड़ी पर इंगलैंड के राजकीय पताका से आच्छादित श्रीमान् गवर्नर जेनरल का मृतक शरीर शव यात्रा के आगे हुआ । उस समय लोगों के चित्त पर कैसा शोच छा गया था उसका वर्णन नहीं हो सकता । ऐसा कोन पाहनचित्त होगा जिसका हृदय उस श्रीमान् के चंचल अश्य को देखकर उस समय विदीर्ण न हुआ होगा । उस के नेत्र से भी अञ्जुधारा प्रवाहित होती थी । हा! अब उस घाड़े का चढ़नेवाला इस संसार में नहीं है । उस से भी शोकजनक श्रीमान् के प्रिय पुत्र की दशा थी जो कि विषन्नवदन, अधोमुख, सजलनयन, बाल खोले अपने दोनों चचा के साथ पिता के मृतक शरीर के साथ चलते थे । हा ! ऐसी वयस में उन्हें ऐसी विपद पट्टी । परमेश्वर बड़ा विषमदर्शी दीख पड़ता है । वेसे ही मेजर बर्न भी देखे जाते थे । शौक से आंखें लाल और डबडबाई हुई थी और अनाथ की भाँति अपने स्वामी वरन उस मित्र मारतेन्दु समग्र ६२६