पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६७४

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के रेजिडेण्ड के प्रतिनिधि हुए । सिक्खों की दूसरी लड़ाई के बाद डलहौसी ने पंजाब शासन करने के लिये एक एडमिनिस्ट्रेशन बोर्ड स्थापन किया । उस में यह और इन के बड़े भाई सर हेनरी लारेन्स, चार्लस और मानसेल सभ्य नियुक्त हुए । इन दोनों भाइयों ने राज्य शासन संबंध में अति उत्तम क्षमता और निपुणता दिखाई । जॉन लारेन्स ने १८५७ ई. के गदर में अपनी अद्भुत शक्ति के प्रभाव से पंजाब को शांत रक्खा था, इसी लिये आज तक भारत साम्राज्य अव्याहत है । उस समय लारेन्स पंजाब के चीफ कमिश्नर थे। १८५६ ई. में लारेन्स को के.सी. बी. की उपाधि मिली और बाद ही इन को जी. सी. बी. की भी उपाधि मिली थी। १८५८ ई. में यह महाराज बारनट होकर प्रीवी कोसिल के सभ्य हुए । १८६३ ई. के डिसेम्बर महीने में भारतवर्ष के गवर्नर- जेनरल होकर लार्ड एलगिन के उत्तराधिकारी हुए । १८६९ ई. के मार्च महीने में यह लार्ड उपाधि प्राप्त हो कर पार्लियामेण्ट में सभ्य हुए । लार्ड लारेन्स का धर्म विषय में विशेष अनुराग था । इन्हों ने भारतवर्ष के गवर्नमेंट स्कूल समूहों में बाइब्ल पढ़ाने का प्रस्ताव किया था । और और भी विशेष गुण इन में थे । आज कल यह पार्लियामेण्ट में भारतवर्ष संबंधी विषयों की चर्चा विशेष करने लगे थे। जिस में भारतवर्ष का मंगल हो, इन की यही इच्छा और चेष्टा रहती थी । ऐसे हितकारी मित्र को खोकर जो भारतवर्ष शोकाकुल न होगा, यह कहना बाहुल्य है । उनके सन्मानार्थ १ जुलाई को कलकत्ते के किले का निशान गिरा था और ३१ तोपें दागी गई थीं । लार्ड हेस्टिग्स के बाद और किसी का ऐसा सम्मान नहीं किया गया था । वेस्टमिनिस्टर ऐवे में इन को समाधि दी गई है। १६. महाराजाधिराज जार ता. १३ मार्च (१८८१ ई.) रविवार के दिन रूस के शाहनशाह जार राजकीय गाड़ी में बैठकर भजन मंदिर से अपने मवन में जाते थे कि इस बीच में किसी दुष्ट ने कुलफीदार गोला उन की गाड़ी के नीचे फेंका. परत वार खाली गया । तब दूसरा फेंका । इस बेर गोला फूट गया और उस के भीतर की बारूद और गोलियों ने चारो ओर उड़ कर गाड़ी को विध्वंस किया । और जार के पैरों का पता न लगा । केवल दो बण्टा प्राण रहा, पश्चात शाहनशाह रूस पंचत्व को प्राप्त हुए । इस गोले ने कई मनुष्यों का प्राण लिया । इस दुष्ट घातक के पकड़ने का शोध हुआ और पकड़ा गया । इस की अवस्था केवल २१ वर्ष की है; नाम इस का रोसा काफ है। यह खनन विद्या में निपुण है । पहले तो इस दुष्ट ने अपने अपराध को अस्वीकार कर के बचाव किया था, पर यह गुप्तनाव कब छिपे । अंत में इस ने सब कुछ अपने मुख से प्रगट किया । इस घोर विपत्ति से रुंस में हाहाकार मचा है । यूरोप के लोगों को भी बड़ा दुःख हुआ है । राजकुमार जारविच रूसी राज्य के उत्तराधिकारी अपने पिता के पद पर नियुक्त हुए और उन का राजकीय नाम "तृतीय एलेकअँडर'" रक्ख गया है । ड्यूक आफ एडिम्बरा सपत्नीक सेंटपीटर्सबर्ग में गये हैं । इंगलैंड में इस मास भर अधिकारी लोग शोचसूचक वस्त्र धारण करेंगे । हाउस आफ कामस और लाईस की तरफ से दुःख सांत्वन पत्र भेजे जायंगे । निहिलिस्ट लोग इस दुष्ट कर्म के करने में बहुत दिन से लगे हुए थे और कई बेर जो नहीं सो कर चुके थे पर शाहनशाह की आयुष्य थी, इस से इनका यत्न पूरा नहीं होता था । अब की इन्होंने अपना दुष्ट संकल्प पूरा किया । शाहनशाह रूस जैसे शूर और पराक्रमी थे सो समस्त भूमंडल में प्रख्यात ही है। इस महान व्यक्ति का जन्म सन् १८१८ में हुआ । उस समय इन के चाचा अलेक्ज़ांडर प्रथम रूस के राजसिंहासन पर थे । इन की पूरी सात वर्ष की अवस्म भी नहीं हुई थी कि इन के चाचा साहब स्वर्गवासी हुए। मृत अलेक्जांडर के भाई कांस्टेंटाइन ने राज्य के भार से मुख मोड़ लिया था, इस कारण जार के पिता निकोलस को गद्दी मिली और ये युवराज हुए । इस के अनंतर रूसी सैनिक लोगों में बलवा उत्पन्न हुआ और वह कई दिन तक रहा । इन बलवाइयों का नाम "डेकाविस्टस" था और ये लोग राजकीय कुटुंब के पूर्ण शत्रु थे । इन का यह सकल्प था कि जैसे जर्मनी के छोटे छोटे हिस्से हो गए हैं, वैसे ही इस राज्य के भी हो जावें । परंतु बहुत सी अन्य प्रामाणिक सैन्य समूह ने प्रथम निकोलस को इन के पराजय करने में बड़ी ही सहायता दी, जिस ने इन का दुष्ट संकल्प निर्मूल हो गया । सन् १८२५ में राजकीय व्यवस्था भली भांति स्थापित करके निकोलस अपनी इच्छानुसार राज करने लगे । जार की माता प्रशिया के सम्राट तुतीय फ्रेडिरिक की कन्या थीं। मारतेन्दु समग्न ६३०