पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६८

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'शीतल भोग लगावई करि आनंद बिधान ।७० बा मृद गोमय आँवलनि करि मध्यान्ह स्नान । अथ पूर्णिमा पूछि द्विजन सों यह करे सुभ संकल्प विधान ।७१ माधव कातिक माघ की पूनो परम पुनीत । ता दिन गंगा न्हाइयै करि केशव सों प्रति ८२ (मंत्र) एक मास जो नहिं बने श्रीगंगा-असनान । देव देव नरसिंह जू जानि जनम को जोग । तौ पूनो दिन न्हाइयै अस करियै जल-दान ।८२ आजु करें उपवास हम त्यागि सकल जग भोग ।७२ ब्रत समाप्त या दिन करै देइ द्विजन को दान । इति हाथ जोडि के यह कहै लखि कै श्री भगवान । यह पढ़ि नदी नहाइ के साँझ समै घर आइ । (मंत्र) लक्ष्मी सहित नृसिंह की सुबरन मूर्ति बनाइ ।७३ हे मधुसूदन, कृष्ण हरि राधा-जीवन-प्रान । रात पूजि जागरन करि प्रात पूजि पुनि श्याम । तव प्रताप पूजन भयो माधव बिधिवत स्नान ।८५ पीठक विप्रहि दै करै यह बिनती सुखधाम 1७४ इति (मंत्र) श्याम मृगा के चर्म पै श्याम तिलहि दै दान । नरहरि अच्युत जगतपति लक्ष्मीपति देवेस । पूजी पीठक-दान सों मन-कामना अशेस ।७५ सुबरन सह कहि होंहि प्रिय मधुसूदन भगवान ।८६ जे मम कुल में होयगे होय गए जे साथ । ब्राह्मण बहुत खवावई करि अनेक पकवान । या भव-सागर दुसह तें तिनहिं उधारौ नाथ ।७६ जौ बहु द्विज नहिं होइ तौ बारह सहित बिधान ।८७ एहि बिधि माधव में करै प्रेम सहित असनान । इब्यौ पातक-सिंधु मैं महादुःख, के बारि । ताको सब कछु देहि श्री मधुसूदन भगवान ।८८ दुखित जानि मोहि राखिए नरहरि भुजा पसारि ।७७ श्री नरसिंह रमेश जू भक्तन को भय टारि । लखि कै निरनयसिंधु अरु भगवद्भक्ति-विलास । माधव की यह विधि लिखी 'हरीचंद' हरिदास ।८९ क्षीर समुद्र निवास तुव चक्रपाणि दनुजारि ७८ एक दिवस मैं यह लिखी माधव-बिधि अभिराम । जय जय कृष्ण गुबिन्द हरि राम जनार्दन नाथ । जेहिं पढ़ि के सुख पाइहैं कृष्ण-भक्त सुखधाम ।९० या ब्रत सों मोहिं दीजिए भक्ति मुक्ति दोउ साथ ।७९ लीजौ चूक सुधारि के कविमन सहित अनंद । इति हौं नहिं जानत रचन-विधि नहिं पिंगल नहिं छंद ।११ या बिधि सों ब्रत जे करें कृष्ण-जन्म दिन जानि । माधव-विधि माधव सुमिरि उर अति धारि अनंद । ते चारहु फल पावहीं यह उर निश्चय मानि ।८० परम प्रमनिधि रसिकबर बिरच्यौ श्रीहरिचंद ।९२ जिमि निकसे प्रभु खंभ ते राख्यौ जन प्रहलाद । प्रान-पियारे, प्रमनिधि प्रमिन-जीवन-प्रान । तिमि तिनकी रक्षा करत जे राखत ब्रत स्वाद ।८१ | तिनके पद अरपन कियो यह वैशाख-बिधान ।९३ भारतेन्दु समग्र २८