पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६८२

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पुरावृत्त-संग्रह अर्थात इतिहास सम्बन्धी बात इस संग्रह मे ज्यादातर प्राचीन काल की प्रशस्तियां और दान पर हैं। इसमें सन् १८७२ से १८७४ के बीच लिखे गये और एक १८८२ का प्रकाशित लेख है। इनका संग्रह कब और कहां से हुआ इसका उल्लेख कहीं नहीं मिला है। सं. (इस प्रबंध में प्राचीन पुस्तके तथा राजा, बादशाह आदि के वृत्त और आरंभ में सारी अमलदारी की दशा जो कुछ हाथ लगेगी प्रकाशित होगी ।) २. अकबर और औरंगजेब काशी में राजा पटनीमल्ल बहादुर अग्रवाल कुलके भूषण हो गए हैं । इन के उद्योग, अध्यवसाय, साहस, धर्मनिष्ठा, गभीर गवेषणा,बुद्धि और अपूर्व औदार्य सभी गुण प्रशंसा के योग्य हैं । कई बेर राबविप्लव में ऐसे लुट गए कि कुछ भी पास न रहा, किंतु अपने उद्योग से फिर करोड़ों की संपत्ति पैदा किया । गया, काशी. मधुरा, बैतरणी, किस तीर्थ में इन के बनाए मंदिर, घाट, तालाब, आदि नहीं है । कर्मनाशा का पक्का गुल अद्यापि इनकी अतुल कीर्ति का चिन्ह वर्तमान है । फारसी विद्या के ये पारंगत थे । काशीखंड का संपूर्ण फारसी में इन्होंने स्वयं अनुवाद किया है । और भी कई ग्रंथों का हिंदी और फारसी में इन्होंने अनुवाद कराया था । वेद, स्मृति, पुराण, काव्य कोष आदि विषय मा की पुस्तकें इन्होंने संग्रह की थीं । फारसी पुस्तकों के संग्रह की तो कोई बात ही नहीं अंगरेजी यद्यपि स्वयं नहीं जानते थे किंतु दस पंद्रह हजार की पुस्तक अंगरेजी भाषा की संग्रह की थीं और सब के ऊपर फारसी में उस का नाम, विषय, कवि, मूल्य आदि का वृत्तांत लिखा हुआ था । उनका सरस्वती भंडार और औषधालय तीन लाख रुपये का समझा जाता था। किंतु हाय ! यह अमूल्य भंडार नष्ट हो गया । कीट, दीमक, छुईमुई, चूहे आदि उन अमूल्य ग्रंथों को खा गए । उनके स्वकार्य निपुण छ पौत्र और अनेक प्रपौत्रों के होते भी यह अमूल्य संग्रह भस्मावेष हो गया । मैंने दो बेर इस भंडार का दर्शन किया था । रुपये का चार आना तो पहली ही बेर देखा था, दूसरी बेर एक आना मात्र बचा पाया । सो भी खंडित छिन्न भिन्न । इस पुण्य-कीर्ति-उदार मनुष्य की उदारता और अध्यवसाय और उसके संग्रहीत वस्तु की यह दुर्दशा देख कर मेरी छाती फट गई । इस्कन्दरिया का पुस्तकालय मानो अपनी आँखों से जला हुआ देख लिया । अस्तु ! ईश्वर की यही गति है !! नाशान्ताः संचयः सर्वे !!! उन के प्रपौत्र और अपने फुफेर भाई राय प्रहलाद दास से कह कर उस संग्रह की भस्मावशिष्ट हड्डियों में से मैं टूटे फूटे दस पाँच ग्रंथ ले आया हूँ । इन में कुछ सकारी पुराने छपे हुए कागज और कुछ खंडित । इस प्रबंध में बहुत सी बात उन्हीं सबों में से चुन कर लिखी जायेंगी, इस हेतु उस सुगृहीतनामा महापुरुष का भी थोड़ा वृत्तांत लिखे बिना जी न माना । भारतेन्दु समग्न ६३८