पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६८३

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प्रकृति मनुसरामः मैंने बादशाहदर्पण नामक अपने छोटे इतिहास में अकबर और औरंगजेब की बुद्धि और स्वभाव का तारतम्य दिखलाया है । अब पूर्वोक्त राजा साहब की अंगरेजी किताबों में सन् १७८२ से लेकर १८०२ तक के जो पुराने एशियाटिक रिसचेंज के नंबर मिले हैं, उन में जोधपुर के राजा जसवंत सिंह का यह पत्र भी मिला है जो उन्होंने औरंगजेब को लिखा था और श्रीयुक्त राजा शिवप्रसाद सी. एस. आई. ने भी अपने इतिहास में जिस का कुछ वर्णन किया है तथा मेरे मित्र पंडित गणेश राम जी व्यास ने मुझ को कुछ पुस्तके प्राचीन दी हैं, उन में महाकवि कालिदास के बनाए सेतुबंध काव्य की टीका मिली है, जिस में कुछ अकबर का वर्णन है । इन दोनों को हम यहाँ प्रकाश करते हैं, जिस से पूर्वोक्त दोनों बादशाहों का स्पष्ट चित्त और विचार policy प्रकट हो जायगी। यह टीका राजा रामदास कछवाहे की बनाई है। अपना वंश उस ने यों लिखा है। कुलदेव को क्षेमराज, उन के पुत्र माणिक्य राय, फिर क्रम से मोकलराय, घोरराय, नापाराय (उन के पौत्र) पातलराय, खाना-राय, चंदाराय और उदयराज हुए । इन्हीं उदयराज का पुत्र रामदास हुआ, जो सर्व भाव से अकबर का सेवक है। अकबर के विषय में वह लिखता है > श्लोक। आमेरोरासमुद्रादवति वसुमती य: प्रतापेन तावत् । दुरे गा: पाति मृत्योरपि करनमुचत्तीर्थवाणिज्य वृत्योः । अव्यश्रौषीत पुराण जपति च दिनकृन्ताम योगं विधत्ते। गगाम्मोर्मिन्नमम्मो न च पिवति जयत्येषजल्लालुदीन्द्रः ॥३॥ अंग-बंग-कलिंग-सिलिहट-तिपुरा-कामता-कामरूपा जान्धं कर्णाट-लाट द्रविड़-मरहट द्वारका-चोल-पाण्ड्यान् । भोटान्नं मारुशारोत्कलमलयखुरासानखान्यारजाम्बू। काशी-काश्मीर ढक्का बलक-बदखशा-काबिलान् यः प्रशास्ति ॥४॥ कलियुगमहिमा पचीयमानच तिसुरमिद्विजधर्मरक्षणाच। धृतसगुणतनं तमप्रमेयं पुरुषमकव्वरशाहमानतोस्मि ॥५॥ अर्थ - जो समुद्र से मेरू तक पृथ्वी को पालता है, जो मृत्यु से गउओं की रक्षा करता है, जिस ने तीर्थ और व्यापार के कर छुड़ा दिए जिस ने पुराण सुने, जो सूर्य का नाम जपता, जो योग धारणा करता है और गंगाजल छोड़कर और पानी नहीं पीता उस जलालुद्दीन की जय ।।३।। अंग वंग कलिंग सिलहट तिपुरा कामता (कामटी ?) कामरूप अध कर्णाटक लाट द्रविड़ महाराष्ट्र द्वारका चोल पाइय भोट मारवाड़ उड़ीसा मलय खुरासान कंदहार जम्बू काशी ढाका बलख बदखशाँ और काबुल को जो शासन करता है ।।४। कलियुग की महिमा से घटते हुए वेद गऊ द्विज और धर्म की रक्षा को सगुण शरीर जिस ने धारण किया है उस अप्रमेय पुरुष अकबरशाह को हम नमस्कार करते हैं ।।५।। पाठक गण ! अकबर की महिमा सुनी । यह किसी भाट की बनाई नहीं है, एक कट्टर कछवाहे क्षत्रिय महाराज की बनाई है, इसी से इस पर कौन न विश्वास करैगा । उसने गो-वध बंद कर दिया था यह कवि परंपरा तरा तो श्रुत था, अब प्रमाण भी मिल गया । हिंदूशास्त्रों को वह सुना करता था । यह तो और इतिहासों में लिखा है कि वह आदित्यवार को पवित्र समझता था । देखिए उसके इस कार्य से, गायत्री के देवता सूर्य के आदर से, हिंदूमात्र उससे कैसे प्रसन्न हुए होंगे । मैं समझता हूँ कि उस समय सूर्यवंशी राजा बहुत थे और सूच को यह सम्मान दिखा कर अकबर ने सहज उन लोगों का चित्त वश कर लिया था । योग साधने से हिंदुओं की प्रसन्नता और शरीर की रक्षा दोनों काम हुए । विशेष यह बात जानी गई कि वह गंगाजल छोड़ कर और पानी he पुरावृत्त संग्रह ६३९