पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६८७

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औतार । काशी क्वीन्स कालिज (Queen's College Benares) के फाटक पर यह लेख है - तालुकदार दाउदपुर के राय पृथ्वीपाल सिंह ने अपने कीर्ती के लिये दो द्वार रचवाये। (१) रामरास बाबू सुघर, वैश्यवंश हर्षचन्द्र तिन के तनय, रचवाये दुईद्वार ।। (२) राजा पटनीमल्ल के नारायण दास । रचवाये दुइदार यह, अचल कीर्ति के आस ।। (३) श्री देवकीनन्दन सूनुरासीघो बनकी पूर्वपद प्रसाद । तदंगजो द्वारमिदं द्रव्य घत राम प्रसन्नोपमहीश्चरोये ।। श्री मत बाबू देवकीनन्दन पौत्र उदार । बाबू रामप्रसन्नो सिंह रचवाये यह द्वार ।। सं. १८०७ ।। दिदित । श्री बाबू भगवानदास बडे दानि मृजापुर बिच धाम तिन रचवाए द्वार दुई ।। (६) सुनव जानकिदास के. नौ विश्वेश्वर दास । रचवाए दुइ दुवार वर, मुक्ति सुजस के आस ।। (७) राजा दसन सिंह के, सुत कुल अति उजियार । राजा रघुबरदयाल जस, चाहि किन दुइ दुयार ।। इण्डियन म्यूजियम (Indian Museum) में एक पत्थर के मुंडेरे के एक टुकड़े पर नीचे की ओर निम्न लिखित लेख लिखा है । वह पत्थर अशोक के चारदिवाली का है, परंतु यह लेख सन् ईसवी दो सौ बरस पहले का नहीं हो सकता । यह गुप्ताक्षर में पुराचीन रीति से लिखा है - दी पढंका कता येषां दान xx मशमनिनाचार्य ।


अशोक के चारदिवाली के मुंडेरे के पत्थर पर निचली ओर निम्न लिखित लेख लिखा है । यह दो लाइन (पक्ति) में है और प्रत्येक लाइन ६ फीट लंबा है। १ । कारितो यन्त्रवज्रासन वृहतग कुटी प्रमादमत्रिकोट्या पश्मतैर्मधुलेपकस्यपुन लटिक : गिक रेदगतुट मादन्यार्कतारकं भगवते बुद्धाय XX रदानेन घृतप्रदीप : X रारिध दिए प्रति समधने रदनी मायां च प्रदह घृतप्रदीपै : गुणे शतदानेनापारेण कारित : बिहारेपि भगवते रेत्यपद । २ । हाटा पाक्षय न : धिकरो धमशत तं दं वं ग प्रदेष च च नं पंxxxx hXX मनीनू माधुर लातीतं तदसं सव्वं चा प्रहतत X क्षनुमत्पादितं तदेतत् सर्वं यन्मया बुद्धौ प्रचेतमभारंतन । मेजर (Major Mead) ने बोधगया के बड़े मंदिर की एक कोठरी से एक मुर्ति निकाली थी उस के पांव के समीप निम्न लिखित लिपि धी- पुरावृत्त संग्रह ६४३