पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६८८

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इदमतितरचित्रं सर्च सत्वानुकम्पिने । भवनवरमदारजितमाराय पतये ।। सु (शु) द्वात्मा कारयामास बोधिमार्गरतोयति : । बोधि घे (से) णो (नो) तिबिख्यातो दत्तगल्लनिवासक : ।। भवबन्धविमुत्क्याथ पित्रोर्वन्धुजनस्य च । तथोपाध्यायपूर्वाणामाहवाग्ननिवासिनां ।। ली।। ए. ग्रोट साहिब (A. Grote Esqr.) प्रेसिडेन्ट बंगाल एशियाटिक सोसाइटी ने निम्नलिखित लिपि, जो एक सांढ़ (नंदी) की मूर्ति के पीठ पर लिखी हुई है, एशियाटिक सोसाइटी में भेज दी थी। यह लेख कुटिलाक्षर (Kutila Character) में लिखा हुआ है । के पुत्र श्री सुफंदी भट्टारक ने यह मूर्ति संवत ७८१ में सन्तति के लिए चाई थी। ए सम्ब ७८१ वैखाख वदि ९ षरूध्य ग्रामव Xxxx तम भिमक उल्लसुतेन श्री सुफन्दिनभट्टारक अ (?) ग्र (?) त मतया XX । त्मनापत्यहेतो : वृषभट्टारकप्रतिष्ठितेति । भीमकउल्ला जनरल कनिंगहम (General Cunningham) ने बोधगया के मंदिर के फाटक के चूर के नीचे एक पत्त्थर देखा था जिस पर निम्न लिखित लिपि लिखी खुदी हुई है । यह लेख २० लाइन में है और कुटिलाक्षर में लिखा हुआ है। (१) नमोबुदाय ।। आसीदृप्तनरेन्द्रवृन्दविजयी श्रीराष्ट्रकूटान्वय : श्रीमान्नन्द इति त्रिलोकविदितस्तेज- स्विनामग्रणी : । सत्येन प्रययेन शौचविधिना श्लाघ्येन विख्यातिपतस्त्यागैः कल्प महीसह : प्रणयिपु प्राज्ञो नरेन्द्रात्मज : ।। (२) यो मत्तमातंगमभिद्रवन्तन्नरेन्द्रवीथ्यांऽतुरगेन्द्रगागी । कशाभिघातेन विजित्य वीर : प्रख्यातवानहस्तितलप्रहार : ।। (३) दुर्ग दुर्जयमूर्षितक्षितिमुजामत्युत्तमैर्विक्रम : श्रीमदम कृपाण पुण्यविभवैरुच्चैर्विजग्ये च य: । येनाद्यापि नरेन्द्रसंसदि सदा सम्भूतरोमोदग्मैवर्ण मणिपूरदुर्गधवल : संवर्ण्य सूरिभिः ।। (४) य: शौर्यातिशयादनल्पसदृशातख्यातो महोभृद्रक : (१) सन्मार्गेण गुणावलोक इति च श्लाघ्यामभिख्यान्दधौ । गेयैर्बुदगुणावयैरभिन वस्वान्तविंशोषोद्गतैय॑श्चान्ते तनुमुतससर्ज विधि वद्योगीव तीर्थाश्रयः ।। (५) तस्यालि सूनुर्विजितारिवर्ग : प्रतापसंतापितदिग विभाग : । प्रहर्षितार्थिवजपद्मषण्ड : पूषेव पादाश्रितसर्च लोक : ।। (६) धर्मार्थकामेषु गृहीतसार : श्रिया सदाराधिपतपादपद्म : । अरातिमातंगकुलैकसिहस्त्रिलोकविख्यात यश: पताक: ।। (७) कोपे यम: कल्पतरु ः प्रसादे प्रयोगमार्गप्रणयी कलानां । अगण्यविक्रान्तविलासभूमि : प्रभूतसवर्णशशांककीर्ति: ।। रूपोदयैरपितचित्रयोनिर्मतीगजारोहनलब्धशब्द : । तुरंगमाध्यासनकौशलाप्त : प्रभासते राजसु कीर्तिराज : ।। (८) तस्यात्मज : शुभशतोदितपुण्यमूर्ति : साक्षान्मनोभव इव प्रयतात्मभाव : । दृप्तद् विषद्विपिनवन्हिरु- दीर्णदीप्तिरस्तीह तुंग इतिसान्वयनामधेय : ।। (९) कामिनीवदनपंकजतिग्मभानुर्विद्वन्मन : कुमुदकाननकान्तरश्मिः: शास्त्रप्रयोगकुशल : कुशलानुवर्ती धर्मवलोकइति च प्रथित पृथिव्याम् ।। (१०) शैलेन्द्रस्य द्विमूर्तीननवरतगलबानमत्तद्विरेफश्रेणीसंकीर्णनादप्रतिगजविजयोद्गारिभेरीविरावान् । दृष्ट्वा यो दन्तिशास्त्रे षु गुरु रिव गुरु : प्रो गुxxxx लोल : कालज : पुण्यपूत : कलयति मृगवदन्यकानवारणन्द्रान् ।। OK भारतेन्दु समग्र ६४४