पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६९

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प्रेम सरोवर हरिश्चंद्र चंद्रिका खंण्ड २ सं. १८७४ अक्टूबर में प्रकाशित समर्पण अक्षय तृतीया है, देखो जल-दान की आज कैली महिमा है। क्या तुम मुझे फिर भी जल-दान दोगे ? कहाँ! यरंच जरांजलि दोगे; देखो मैं कैसा प्यासा हूँ और प्यास में भी चातकाभिमानी हूँ। हाँ! जिस चातक ने एक श्याम घन की आशा पर परिपूर्ण समुद्र और नदियों तथा अनेक उत्तम मीठे-मीठे सोते, झील, कूप, कुंड, बावली औ झरनों को तुच्छ करके छोड़ दिया, उसे पानी बरसना तो दूर रहे, जो मधुर धन की ध्वनि भी न सुन पड़े तो कैसे प्रान बचे ? देखो यह कैसी अनीति है, वही आनंदघन जी का कहना ‘सब छोड़ि अहो हम पायो तुम्है हमै छोड़ि कहो तुम पायो कहा।' यह देखो कैसे संशय की बात है कि मैं तो दोनों लोक के यावत् पदार्थ छोड़ बैठा, उस पर भी आप न पिघले तो इससे तुम्हारे ही विषय में संशय होते हैं जो चित्त के धैर्यो को हिलाते हैं। पर चाहे तुम कुछ कहो;मैं तो व्रत नहीं छोड़ने का। यह बड़ा हठ कौन मिटा सकता है ? जो कहो कि 'तुम कच्चे हो, घर बैठे ही यह संपत लुटा चाहते हो और संसार की वासनाओं से दूषित होकर भी हमें खोजते हो' तो हम कैसे भी हों, तुम तो अच्छे हो और हम कहाते तो तुम्हारे हैं, तो फिर तुमको इससे क्या ? भले आदमी ही बनो ‘सतां सप्तपदौ मैत्री' इसी का निबाह करो, किसी भाँति समझो। ऐ मेरे प्यारे, कुछ तो मानो। जो कहो धर्म तो तुम फल रूप हो। अब धर्म फिर कैसा ? जो कहो कलंक, तो प्रथम तुमको कलंक ही नही, और जो होता भी हो तो हम तुमको ढिंढोरा पीटने तो कहते नहीं। केवल इस अपने दीन को आश्वासन दे दो कि निराश न हो और इन अनिवार्य अक्षुओं को अपने अंचल से निवारण करो और भव-ताप से परम तापित इस दीन-हीन दुखी को अपने चरण- कल्पतरु की छाया में विश्राम दो, क्योंकि वैशाख में छायावान का बड़ा पुण्य है। जो कहो कि वैशाख बड़ा पुण्य मास है, इसमें तुमने क्या किया ? तो मैंने देखो यह कैसा उत्तम तीर्थ प्रेम-सरोवर बनाया है। जो इस तीर्थ का स्नान करेंगे, जो इस तीर्थ की विधि करेंगे, जो इस तीर्थ का ध्यान धरेंगे, वे आप पुण्य-स्वरूप पावन होकर अपने शरीर के वायु से तथा हवा से लोक को पवित्र करेंगे, क्योंकि सत्य प्रेम ऐसी ही वस्तु है। तो क्या इस सीतल सरोवर में तुमन नहाओगे ?अवश्य नहाना होगा, आप नहाओ और अपने जनों को कहो कि इसमें स्नान करें। प्यारे, यह अक्षय सरोवर नित्य भरा रहेगा और इसमें नित्य नए कमल फूलेंगे और कभी मल न आवेगा और इस पर प्रेमियों की भीड़ नित्य लगी रहेगी और प्रेम शब्द को विषय का पूजादिक कहनेवाले वा प्रेमाधिकारी के अतिरिक्त कोई भी इस तीर्थ पर कभी न आवेंगे (एवमस्तु-एबमस्तु) ।तो तुम तो स्नान करो कि मेरा परिश्रम सार्थक हो प्रेम सरोवर २९