पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६९१

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११। धिमण्डो नाम होति ।। एवं अतिच्दरिय मन्वच्चरिय महाबोधिवृक्ष एकसत विदित्वा अभिप्रसादमानसो । यथा कालि x चक्रवत्तिसिरिधम्मासोको प ४ महिकोसलो । महार्य यतिर्वा महाबोधिमभिपूजेसु । यथा पूजेतुकामो । सिरिपबरसुधाममहाराजाधिराजाति । मूलमासाय श्रीप्रबरधम्मिक राजा xxx मल । १२। उचतो अनेकश्चेति X प्रतिसरदकुमुदकुन्दइन्दु प्रभासमानबर्णच्छदन्तगजराजस्वामिमहाधर्मराजा । पुरोहित महाराजिन्द अगग महाधर्मराज गुरुभि x नं भूमिनन्दभारिकामत पञ्चमहाराजाभिरूप सागरसूरमकः । अनेकशतपरिजनेहि मूद । द्विसहससत्रिशतपञ्चषष्टिसासनवर्षे । एकसहस्मै । १३। शिक शतत्याशीतिसकराजे कार्तिकमाससरदक्रतुपं । स्वबिजिनरक्तांगदेन नु सार जलजस्थलजमार्गण पेसेत्वा सरिच्चर महाराजिन्दाररता देवी नामिकाय अगमहेसिया साई । महाबोधिमूले बुद्धत प्राप्त भगवन्तमुद्देष्य । दक्षिणोदक पादन्तो । इमं महापृथुवि साक्षि कृथ्वा महाय॑ । १४। हि सोर्ण रोप्य माणिवथ विचित्रेहि। ल । X । छत्र । ध्वज । पद्योत । कलश । मालांग लेहि महाबोधिमभिपूजेसि । संसारौधनिर्मुग्ग सत्वगग्णताणही पि बुद्धत प्रयतमकासि । मातापीतुपीता- महआय्यक पाय्यकादिन पि सत्वानं पुण्यभागमदासि । यथानेह रबिससि । यावत् क्षयाबतिष्ठति । १५। तथापि दसेलक्षरं । तिष्ठतं अनुमोदयति । इदमनेकश्चेतिभप्रतिच्छदन्तगजराजस्वाभिमहाधर्मराजोत्तर पुज्यसेलदार । महाजेयसहसनामेन पण्डितामन्येन बन्धित । इदं सेलक्षरं सिराजिन्दमहाधर्मराज- गुरूनामिकेन पुरोहितेन नागरीलेखाय लिक्षितं ।।।। : ।। राजा जन्मेजय का दानपत्र यह दानपत्र युधिष्ठिर के संवत् १११ का है, जो गौज अगराहर तालाका अनंतपुर जिला महानाद नगर इलाका मैसूर में मिला है । इस में सर्पयाग और सूर्यपर्व का वर्णन है । कर्नेल एलिस साहिब सोचते हैं कि यह उस जन्मेजय का नहीं है, विजयनगर के राजाओं में से किसी का है । यह कहते हैं कि जैसा सूर्यग्रहण इस में लिखा है वैसा स. १५२१ ई. में हुआ था । कोलब्रुक साहिब कहते हैं कि यह प्राचीन काल में ब्राह्मणो ने जाल करके बनाया होगा । परंतु उन दोनों साहिबों की बात का कोई प्रमाण नहीं । इस की लिपि प्राचीन कालवन्द अथवा नन्दिनागर अक्षरों में है । इसके पीछे का भाग बहुत सा टूट गया है और यहाँ हम भी इस का वह भाग नहीं लिखते जिस ने उन दक्षिणी ग्रामों के और उन की चारों सीमाओं का वर्णन बड़े कठिन कठिन कर्णाटकी शब्द लिखे हैं। "जयत्याविष्कृत विष्णोर्वा राह क्षोधितार्णवम् । दक्षिणोन्नतदंष्ट्राग्ने विश्रान्तम्भूवनंवपुः ।। स्वस्ति समस्तीभुवनाश्रय श्री पृथ्वी वल्लभ महाराज परमेश्वर परम भट्टारक हस्तिनापुरवराधीश्वर आरोहभगदत्तरिपुराय कान्तादत्त वैरिवैधव्यपाण्डव कुलकमलमार्तण्डकदन प्रचण्ड कलिंग कोदण्ड मार्तण्ड एकांगवीर रणरंगधीर अश्वपतिराय दिशापति गजपतिराज्य संहारक नरपतिराय मस्तक तलप्रहारिहयारूढ़ा- प्रौढरेखरे सामन्त मृगचामर कोंकण चतुर्दश भयंकरनित्यकर मरांगनापुत्र सुवर्णवराहलाञ्छनध्वजसमस्न राजावलिविराजित समा लिंगित श्री सोमवंशोद्भव श्री परीक्षित चक्रवर्ती । तस्यपुत्रो जन्मेजयचक्रवर्ती हस्तिनापुरे सुखसंकथाविनोदन राज्यकरोति । दक्षिण दिशावरे दिग्विजययात्रेयविजयंकरोमि । तुंगभद्राहरिद्रा- संगमे श्री हरिहरेश्वरसन्निधौ कटकमुत्क्रमितचैत्रमासे कृष्णपक्षदर्शके रवि वासरे ववकरणे उत्तरायण संक्रान्तौ व्यतीपातनिमित्त सूर्यपर्वणि अर्द्धग्रासग्रसित समये सर्वयागंकरोमि । इस के पीछे ३२००० ब्राह्मण जो वनवासे शान्तलिको गौतम ग्राम और दूसरे गाँवों से आए थे जिन में मुख्य गौतमगोत्री कण्वशास्त्रीय गोविन्द पट्टवर्धन कर्णाट ब्राह्मण, काणवशासीय वशिष्ठगोत्री वामन-पट्टवर्दन कर्णाट ब्राह्मण, कण्वशाखीय भारद्वाजगोत्री केशव यज्ञ दीक्षित कर्णाटक ब्राह्मण, कण्वशाखीय श्रीवत्सगोत्री नारायण दीक्षित कर्णाटक ब्राह्मण थे । उनको गौतम ग्राम के बारहों गाँव नाद बल्लि, बूदबल्लि, चिक्कहार, कतरलगेरे, सुरलगोडु. ताग, संगु, जिअलुरु. वाचेन, हल्लिं, त्रपगोडु और किरूसम्य गोडु सब सपा अष्टभोग समेत पूजन करके दिया । इस के नीचे इन गाओं की सीमा लिखी है । उस के पीछे 'सर्वानेतान भाविना पार्थिवेन्द्रान' यह और 'दानं वा पालनं वापि' ये दो प्राचीन श्लोक है। पुरावृत्त संग्रह ६४७