पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६९२

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मंगलीश्वर का दानपत्र यह दानपत्र मंगलीश्वर का कलादगी जिले में बदामों में हिंदू मत की बड़ी गुहाओं के पास खुदा है, इसकी लंबाई और चौड़ाई २५४४३ इंच है । यह मंगलीश्वर कीर्ति वर्मा का भाई पुलकेशी का पुत्र था. जो शक ४७७ में राज्य करता था । यह दानपत्र श. ५०० (ई. ५७८) में लिखा गया है जिस के १२ वर्ष पूर्व अर्थात ४८८ (ई. ५६६) में यह राज्य पर बैठा था । इस दानपत्र में मंगलीश्वर ने एक विष्णुमंदिर बनाया और अपने भाई को स्मरणार्थ जो निपिम्मलिंगेश्वर ग्राम दिया है उस का वर्णन है। स्वस्ति । श्रीस्वामिपादानुध्यातानां मण्डव्यसगोत्राणाम् हारीति पुत्राणाम् अग्निष्टोमाग्निचयनवाजपेय- पौंडरीक बहुसु वर्णाश्वमेधावभूधमान पवित्री कृतशिरसाम चाल्क्यानांवंशेसंभूत : शक्तित्रयसंपन्न : चालक्यवशाम्बर पूर्णचन्द : अनेकगुणगणालंकृतशरीर : सर्वशास्त्रार्थतत्वनिविष्टबुद्धि : अतिबलपराक्रमोत्साह- संपन्न : श्रीमंगलिश्वरोरणविक्रान्त : प्रवद्रं मानराज्य रसंवत्सरे द्वादशेशकनृपतिराज्याभिषेक संवत्सरे ष्वतिक्रन्तेषु पंचसुशतेषु निजभुजावसम्बितखंगधारानमितनृपशिरो मकुट मणिप्रभारंजिपादयुगल : चतु: सागरपर्य्यन्तावनिविजय : मांगलिकागार : परमभागवतोलयये मयाविष्णुगृहअतिदैव मानुष्यकाम अत्यद्भुतकर्म विरचितभूमि भागोपभागो परिपर्य्यन्तातिशय दर्शनीय तमकृत्वातस्मिन् महाकार्तिक्यांपौर्णमास्यांब्राह्मणेभ्यो- महाप्रदानत्वाभगवत : प्रलयोदितार्क मण्डलाकारचक्षपितापकारिपक्षरय विष्णो : प्रतिमाप्रतिष्ठापनाभ्युदये निपिमलिंगेश्वरम नामग्रामनारायणावल्युप्रहारार्थ षोड़शमइ.ख्येभ्योब्राह्मणेभ्यश्च सबनिबन्धं प्रतिदिनअनुविधानं कृत्वाशेषं च परिव्राजकभोज्यं दत्वा सकलजगन्मंडलावनसमर्थारधहस्त्यश्च पदातसंकुलानेकयुदलब्ध्वजय पताकालम्बितचतुस्समुद्रोम्मिनिवारितयश : प्रतापनोपशोभिताय देवद्विजगुरुपूजिताय ज्येष्ठायस्मद्भात्रे कीर्तिवर्मणेपराक्रमेश्वरातत् पुण्यो पचयफलम् आदित्याग्निमहाजन समुदामुदक पूर्वविप्राणितमस्मद्भातृशुभूतषणे यत्फलतन्मह्यस्यादितिनकैश्चित्परि हापितव्य : । बहुभिर्व सुधादत्ता बहुभिश्वानुपालिता यस्ययस्ययदा- भूमिस्तस्यंतस्यतदाफलम् । स्वदत्तांपरदत्तावायत्राद्रक्षयुधिष्ठिर । महीमही क्षितांश्रेष्ठदानाच्छे योनुपालनं । स्वदतापरदत्तावायोहरेतवंसुधरम् । श्वविष्ठायांकृमि भूत्वापितृभिस्सहमज्जति । व्यासगीताः श्लोकाः । मणिकर्णिका। अहा ! संसार का भी कैसा स्वरूप है और नित्य यह कुछ से कुछ हुआ जाता है, पर लोग इस को नहीं समझते और इसी में मग्न रहते हैं । जहाँ लाखों रुपये के बड़े बड़े और दृढ़ मंदिर बने थे वहाँ अब कुछ भी नहीं है और जो लाखों रुपये अपने हाथ से उपार्जन व्यय करते थे उन के वंशवाले भीख मांगते फिरते हैं नित्य नए नए स्थान बनते जाते हैं वैसे ही नए नए होते जाते हैं। यह मणिकर्णिका तीर्थ सब स्थानों में प्रसिद्ध है और हिन्दूधर्मवालों को इस का आग्रह सर्वदा से रहा है । इसी कारण जो बड़े-बड़े राजा हुए उन सबों ने इस स्थान पर कीर्ति करनी चाही और एक के नाम को मिटा कर दूसरा अपना नाम करता रहा । इस स्थान पर तीर्थ दो हैं, एक तो गंगाजी दूसरा चक्रपुष्करिणी तीर्थ और इन दोनों पर लोगों की सदा दृष्टि रही । घाट के नीचे ब्रह्मनाल और नीलकंठ तक अनेक घाटों के बनने के चिन्ह मिलते हैं । थोड़े दिन हुए कि मणिकर्णिका पर एक पुराना छत्ता था जिस को लोग राजा कीचक का छत्ता कहते थे, पर न जाने यह कीचक किस वंश में और किस समय में उत्पन्न हुआ था । ऐसा ही राजा मान का एक बनाना घाट है जो गली की भांति ऊपर से पटा है, पर अब इस के ऊपर ब्रह्मनाल की सड़क चलती है। निश्चय है कि योंही घाटों के नीचे अनेक राजाओं के बनाए घाटों के चिन्ह मिलेंगे। हम आजकल में मणिकर्णिका पर से एक प्राचीन पत्थर उठा लाए हैं जिससे उस समय का कुछ वृत्तात मिलता है । यह पत्थर संवत् १३५९ तेरह सौ उनसठ का लिखा है जो ईस्वी सन् १३०२ के समय का होता है । इस के अक्षर प्राचीन काल के हैं और मात्रा पड़े हैं । पर शोच का विषय है कि पूरा नहीं है. कुछ भाग इस का टूट गया है, इससे नाम का पता नहीं लगता कि किस राजा का है । जो कुछ वृत्त उससे जाना गया वह यह है "उक्त समय में क्षत्रिय राजा दो भाई बड़े विष्णुभक्त और ज्ञानवान हुए और इन की कीर्ति परम प्रगट थी, उन लोगों ने मणिकर्णिका घाट बनवाया । उस घाट के निर्माण का विस्तार वीरेश्वर तक था और मध्य में मणिकर्णिकश्वर का भारतेन्दु समग्र ६४८