पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/६९५

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of you कोई प्रारमण था, उसी ने पंचकोशी का उद्धार किया है। मुझे शिव मूर्ति अनेक प्रकार की मिली हैं १ पचमुख दशभुज, २ एक मुख द्विभुज, ३ एक मुख चाज, ४ पद्मपर से पैर लटकाए हुए बैठे और पार्वती गोद में बैठी, ५ पालथी मारे, ६ पार्वती को आलिंगन किए हुए इत्यादि । तो इस अनेक प्रकार की शिव मूत्तियों की प्राप्ति से शंका होती है कि आगे लिग पूजन का आग्रह नहीं काशी में किसी समय में दश नामी गोसाइयों का बना प्राबल्य था और इन महात्माओं ने अनेक कोटि मुद्रा पृथ्वी के नीचे दबा रखी है अतएष अनेक ताम्र पत्र पर बीवक लिखे हुए मिलते हैं, पर वे द्रव्य कहाँ है इसका पता नहीं । इन गोसाइयों ने अनेक बड़े बड़े मठ बनवाए थे और वे सब ऐसे इट बने है कि कभी हिल भी नहीं सकते । इन गोसाइयों में पीछे मद्यपान की चाल फैली और इसी से इन का तेजोनाश हुआ और परस्पर की उन्मत्ता और अवलत की कृपा से इन का सब धन नाश हो गया. पर अद्यापि ये बड़े बड़े मठ खड़े है । इन गोसाइयों के समय में भैरव की पूजा विशेष फैली थी । कालिज में एक विस्तीर्ण पत्थर पड़ा है उस पर एक गोसाइयों के बनाए मठ और शिवाले और उसकी विभूति का सविस्तार वर्णन है में उस को ज्यों का त्यों आगे प्रकाश करूंगा जिससे स्वयं स्पष्ट हो जायेगा यहाँ जिस मुहल्ले में मैं रहता हूँ उस के एक भाग का नाम चौखम्भा है । इस का कारण यह है कि वहां एक मसजिद कई सी धरस की परम प्राचीन है। उसका कुतबा कालबल से नाश हो गया है पर लोग अनुमान करते है कि ६६४ बरस की बनी है और मसजिदे चिहल सुतून, यही उस की 'तारीख' पर यह दृढ़ प्रमाणी भूत नहीं है । इस मसजिद में गोल गोल एक पक्ति में पुराने चाल के चार खमे बने है अतएव यह नाम प्रसिद्ध हो गया है । यही व्यवस्था बाई कनगरे के मससिद की है. यह मसविद भी बड़ी पुरानी है । अनुमान होता है कि मुगलों के काल के पूर्व की है । इसकी निर्मिति का काल में १०५९ ई. बतलासे है । इस से निश्चय होता है कि इस मुहल्ले में आगे अब सा हिंदुओं । प्राचल्य नहीं था. पर यह मुहल्ला प्राचीन समय से बसा है। मैने जो अनेक स्थलों पर लिखा है कि जेन मूर्ति बहुत मिलती है इमसे यह निश्चय नहीं कि काशी में जैन के पूर्व हिंदूधर्म नहीं था, क्योंकि जैन काल से पूर्व की और सम काल की हिंदुओं की अनेक मुर्ति अद्यापि उपलव्य होती है। कालिज में एक प्रस्तर संड पड़ा है और उस की लिपि परम प्राचीन है। पंडित शीतलाप्रसाद जी का अनुमान है कि यह लिपि पाती के भी पूर्व की है। इस पत्थर पर एक काली के मदिर प्रतिष्ठा समाचार है और इस का काल अनेक सहस वर्ष पूर्व है और उस में ये शोक लिखे है। १ ख्याता वाराणसीय त्रिभुवनभवने भोगचौरीति दुरात् । सेबन्ते यां विरक्ताः जननमरणयो मोक्षमझकरक्ता॥ २ यन्त्र देवोऽणिमुक्त: यो हप्ठ्या ब्रह्माहा ऽपि च्युतकलिकलुषो जायते शुद्धमावः । अस्यामुत्तुंगशृंगस्पुटशशि किरिणा ॥ ३ प्रतुलिविविधजनपदस्त्रीविलासा 5 मिराम विधा बेदान्ततत्ववतणपनियमध्यग्रञ्चंद्रा- भिजुष्टं ॥ श्रीमत्स्थान सुसेव्य । ४ तवा मृत सार्थनामा शिशुरपि विनयव्यापदोभवभूत्तिः त्यागी धीरः कृतः परिलविभबोप्यात्मवृत्यामिजीवी। वर्णा चडनरोत्तमांगरचितव्यालम्बिमालोत्कटा। सर्वत्सप्पविवेष्टिांगरपशुव्याविजिशुष्कामिया लीला नृत्यसचितपिलोत्प यस्यापि न तस्य तुष्टिरभवन यावत् भवानीग्रहं शुशिलष्टाऽमलसन्धि बन्धघटित borte पुरावृत्त.संग्रह ६५१ 44