पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/७०४

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मिलिते मंडलाधीश ।।५।। पुरुहूतमिव गुरु मंत्र यंत्रित मंगल मंडित । धननाथमिव धन दानं तोषित चंद्रमौलिमखंडितं । रतिरमणमिव पर युवति कृतनुति महत विषय शरैर्युत परिचिंत्य मंडल राज मह मिह गोदमगममनुब्रतं ।।६।। अंकुरिता शर्मलता कोरकिंता चित चपक व्रतति :। उल्लसिता तनु नलिनी मिलिते त्वयि मंडलाधीश ।।७।। कलधौत विवरण तरल करजल जनित शर्म सदंकुर जनचित्त चंपक कुसुम संभव मधुर तर मधु बंधुर । गणनैक मणि विस्फुरण पुलकित विपुल तनु नलिनी दल अनुभूय मंडल राज मिदमपि भवति हृदय मनाकुलं ।।८।। कर्पूर नयन युगे वपुषि सुधा रश्मि परिषेक : । हृदये परमानंदस्त्वयि मिलिते मंडलाधीश ।।९।। घन सार सारसभाभि मार्दवलोचनं हिमनिर्भरे सकलं प्लुतंवपुरद्य हिमहिम धाम धामनि निझरे । मम मनसि परमानंद संपदुदारतर भभि बढते नरनाथ मवति विलोकिते सति मंडलेश शुचिस्मिते ।।१०।। सुर तरु रद्य नरेश गेहदशं मम कलयति । सुरगिरि रिति यदुराज राजमान संकलयति । सुरपति रयमिति मति रुदेति । संप्रति नर नायक परिरिति नयनानुरक्ति रुदयति । दृढ़सायक अनुपमतम महिम महीप सुतमंडल सकल कला । अष्ट भूति भवमवधि नवनिधि संनिधि रधिकलमा ।। अत्र अंतिम पंक्ति: पठनाशक्यत्वात्परित्यक्ता । गोविंद देवजी के मंदिर की प्रशस्ति। "सम्वत ३४ श्री शकबंध अकबरशाह राज्ये श्रीकुमकुल श्रीपृथीराजाधि । राजवंश महाराज श्रीभगवंतदास सुत श्रीमहाराजाधिराज श्रीमानसिंहदेव श्रीवृन्दावन जोग पीठस्थानकरा श्रीगोविन्ददेव को ।" इस के प्रारंभ होने का यह संवत जानना चाहिए । "श्रीवृन्दाविपिने शिवादिदिविषद्वन्दावलीवन्दिते श्री गोविन्द . ष्णक्सदाराजते ।।१।। श्रीमानकवरोयदा भुवमयात्सवातदैवाधुनासर्व : सौख्यम . . . गणे: स्वधर्ममुच्चैर्भजन् । श्रीगोविन्द पदंतदेतदृयिते वासायसद्वैष्णवालम्भल ... तस्मै सदै वा. प: ।।२।। तस्मिस्तस्यसदान्वितक्षितिपति : श्रीमानसिहाभिध : पृथ्वीराज बिराज. धे श्वन्द्रमा : । भूभृदभारहमल्लजात भगवद्वासात्मजोमन्दिरं कुर्वन्निदरयाबला- दचलया ।।३।।... स्तथाविधमहाराजाधिराजाप्यसौ ये वारि दिगनेन विजयीध्वस्त भ्रम : क्रीड़ति सश्रीमान. सिंह नवायुद्धेयस्य नियत्यं दिव्य पितृया : कीर्तिध्वजत्वंगता : ।।४।। य: क. धिपजांतिरेष विजयीश्री मानसिंहोनृपः... सदा विजत दास सुधी: । श्रीगोविन्दपदारविन्द . स्तनमन्दिर संमदान कुर्वन्नुदममत्रतूर्ण .पू. . . |1५1. श्रीमानसिंहामृतम ।।६।।. . . इन्द्रप्रस्थनिवासि . . . षुगुरुगोविन्द- दासाभिध: ।... भवदाविष्य दखिल श्रीवैष्णवानांसुख श्रीकर्ता हरिणासदानि जदयाया. याविनि. . . ।।७।। श्रीग्रसेन : कृती, तौद्रौश्रीयुतभानसिंहनृपति प्रस्थायितीनन्द ताम् । किम्वाग्ग्नाद्ववनीय . . . प्रतिपदंसौख्यंग्म हदिन्दतु ।।८।। मुनिवेदतुचन्द्राहू १६४७ सम्वन्मन्दिर सम्भवे ..।।९।। श्रीमद्पसनातननामानौती- भजेतज ।।१०।।" इन पद्यों का अविकल न होने से अर्थ लिखना हम उचित नहीं समझते । केवल एक दो बात स्मरण रखने के योग्य है १ म. अकबर का संस्कृत नाम "अर्कवर" है, प्राय : भाषा-रसिक और संस्कृत-रसिक लोगों के उपयोगी है। २ य, मानसिंह की वंशपरम्परा यह है, राजा मारहमल्ल (वा भारामल्ल) राजा भागवतदास वा भगवंतदास राजा मानसिंह । ३ य श्रीरूपगोस्वामी और श्री सनातन गोस्वामी का प्रशंसा जैसी आज काल है वैसी तीन सौ बरस पहिले भी थी लोग आधुनिक कीर्ति कल्पना न समझे । इस लिपि के निकट ही जगमोहन के द्वार के ठीक सामने भूमि पर एक पत्थर की चट्टान में यह सफल संबंधी लिपि है राणा श्री अमर सिंह जी सुत श्री बागजी सुत श्री सबलसिंहजी की जात्रा सफल सम्बत् सतरै सै अगरोतरामंगसेर सुत ७ सो में लखत प्रोहेत जी जबारादास पधारो सम्बत् १७७८ । पाँच छोटे छोटे शिखर के दक्षिण, उत्तर में दो मन्दिर, दक्षिण मन्दिर की शिखर कुछ फूटी है और मंदिर का द्वार दो किष्कु ऊँचा हैं । सीढ़ी के योग से चढ़ते हैं । भीतर एक तल घर में वृंदादेवी (वा पातालदेवी) विराजती हैं । घुमाव की बारह पक्की सीढ़ी उतर कर नीचे दर्शन करना होता है । देवी की मूर्ति शृंगवर (संगमरमर) पाषाण की अष्टभुजी एवं सिंहवाहिनी ११ इञ्च ऊँची और ९ इञ्च चौड़ी है । पास ही एक शृंगच की छोटीसी चौकी पर श्रीराधिका जी के चरणचिन्ह हैं। चौकी के तट पर यह पद्य लिखा है। भारतेन्दु समग्र ६६०